देवेगौड़ा की बेटे के लिए प्रार्थना पार्टी के काम नहीं आई
punjabkesari.in Sunday, Apr 28, 2024 - 05:03 AM (IST)
तमिलनाडु आंध्र और तेलंगाना की राजनीति में शक्तिशाली क्षेत्रीय दलों का दबदबा है। केरल में भी, 2 गठबंधनों सी.पी.एम. के नेतृत्व वाले एल.डी.एफ. और कांग्रेस के नेतृत्व वाले यू.डी.एफ. ने अपनी विशिष्ट क्षेत्रीय पहचान बनाई है। दक्षिणी राज्यों में, कर्नाटक बिल्कुल अलग गतिशीलता के साथ खड़ा है। आंध्र में द्रविड़ आंदोलन से पैदा हुई तेलुगू सशस्त्र जाति या तमिलनाडु में द्रमुक को एकजुट करने के लिए एन.टी. रामा राव के नेतृत्व में तेदेपा के विपरीत, कर्नाटक में राष्ट्रीय पाॢटयों को चुनौती देने में सक्षम क्षेत्रीय दिग्गज का उदय नहीं हुआ है।
इसका एकमात्र क्षेत्रीय संगठन जद (एस) खुद को एक बड़ी ताकत के रूप में स्थापित करने के लिए 25 वर्षों से संघर्ष कर रहा है, जब एच.डी. देवेगौड़ा ने अपने जनता दल गुट को जे.डी. (सैकुलर) नाम दिया था, और शरद यादव ने अपने धड़े को जे.डी. (यूनाइटेड) नाम दिया था। चुनाव आयोग ने अगस्त 1999 में दोनों को नए प्रतीक दिए और उस समय के लिए दोनों को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिया। 2004 तक, जद (एस) एक क्षेत्रीय पार्टी थी, इसकी विशेष शृंखला की पहुंच कर्नाटक तक सीमित थी। जद (एस) ने तब से अस्तित्व के लिए संघर्ष किया है, जो कई मायनों में बेजोड़ है, लेकिन उसकी आंतरिक लड़ाइयों की संख्या बिना पक्ष की लड़ाइयों से कहीं अधिक है।
खासकर राजनीति में एक क्षेत्रीय पार्टी के रूप में जद (एस) कभी भी पूरे कर्नाटक में प्रभाव नहीं डाल पाया और केवल वोक्कालिगाओं के प्रभुत्व वाले दक्षिण में ही अपना दबदबा बनाए रखा। वोक्कालिगा समुदाय विधानसभा चुनावों में भी जद (एस) को एक सीमा से अधिक मदद नहीं कर सका, जहां पार्टी कभी दूसरे स्थान पर भी नहीं पहुंच पाई। 1990 और 2003 के बीच जद (एस) ने 1,273 उम्मीदवार खड़े किए, जिनमें से केवल 15 प्रतिशत विधायक बने, 56 प्रतिशत की जमानत जब्त हो गई। पार्टी का सबसे अच्छा प्रदर्शन 2004 में अपने पहले विधानसभा चुनाव में आया, जब उसने 58 सीटें जीतीं। इस कदम से गौड़ा ने वह शुरूआत की जो बाद में उनकी पार्टी का अस्तित्व बन गई।
लोकसभा चुनावों में जद (एस) का प्रदर्शन और भी कमजोर रहा है। 2014 में उसने जिन 25 सीटों पर चुनाव लड़ा था उनमें से उसने सिर्फ 2 पर जीत हासिल की थी, 3 पर उसे नोटा से कम वोट मिले थे और 10 विधानसभा क्षेत्रों में नोटा और जद (एस) के बीच का अंतर नि:संदेह 5 प्रतिशत था। 2019 में उसने इससे बेहतर प्रदर्शन किया था। कांग्रेस के साथ सीट बंटवारे के समझौते के अनुसार सिर्फ 6 सीटें, लेकिन जीत सिर्फ एक पर हुई। 2004 एक महत्वपूर्ण वर्ष था जब जद (एस) ने विधानसभा चुनावों में 58 सीटों पर जीत हासिल की। तब जद (एस) सिद्धारमैया को अपने चेहरे के साथ मतदाताओं के पास ले गया, जिन्हें कई लोग गौड़ा का उत्तराधिकारी मानते थे। सिद्धारमैया को कांग्रेस-जद (एस) की धर्म सिंह सरकार में डिप्टी सी.एम. बनाया गया था।
एच.डी.के. नाम से पहचान बनाने वाले कुमार स्वामी पहली बार विधायक बने थे। उन्होंने जनता दल के लिए 1996 का विधानसभा चुनाव जीता और उसके बाद के 2 लोकसभा चुनाव हार गए और 1999 का विधानसभा चुनाव हार गए। 2004 वह वर्ष भी था जब भाजपा ने यहां से अपनी सबसे अधिक 79 विधानसभा सीटें जीतीं। जब 2005 में गौड़ा ने सिद्धारमैया को निष्कासित कर दिया तो जद (एस)ने अपना दूसरा सबसे बड़ा राजनेता खो दिया। इसके तुरंत बाद अप्पमक्कल पक्ष (पिता पुत्र की पार्टी) की फुसफुसाहट एक उपनाम बन गई। गठबंधन चौराहा जब धर्म सिंह की सरकार गिर गई, तो जद (एस) ने भाजपा के साथ गठबंधन किया (2006)। एच.डी.के. सी.एम. बने और बी.एस. येदियुरप्पा डिप्टी सी.एम. बने, जिसे 20-20 की सत्ता सांझेदारी कहा गया- प्रत्येक 20 महीने के लिए सी.एम.शिप।
लेकिन एच.डी.के. ने समझौते का सम्मान नहीं किया, जिससे येदियुरप्पा के प्रति भारी सहानुभूति पैदा हुई। एच.डी.के. द्वारा पीठ में छुरा घोंपने से 2008 में 224 सीटों वाली विधानसभा में भाजपा को 110 सीटें मिलीं। 2013 में सिद्धारमैया-जद (एस) ने भाजपा को 44 सीटों पर समेट दिया, कांग्रेस को 122 सीटें मिलीं। भाजपा ने 2018 में 104 के साथ वापसी की, परन्तु जादुई संख्या से पीछे रह गई। 2018 और 2023 के बीच कई मुख्यमंत्रियों ने पदभार संभाला। चुनाव के बाद कांग्रेस के साथ गठबंधन होता दिख रहा था, लेकिन जद (एस) को जीवनदान मिलने के बाद गठबंधन टूट गया, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में उनकी संयुक्त विफलता हुई।
परिवार के भीतर हासिल की गई सारी ‘शक्ति’ ने पार्टी को नुकसान पहुंचाया क्योंकि सिद्धारमैया के बाहर निकलने के बाद कई लोग पार्टी छोड़कर चले गए। इस समय जद (एस) 3 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ रहा है। देवगौड़ा परिवार से एच.डी.के.मांड्या से और वर्तमान में भतीजा प्रज्वल रेवन्ना, हासन से चुनाव लड़ रहे हैं। परिवार का एक तीसरा सदस्य भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहा है। एच.डी.के. के बहनोई जाने-माने काॢडयोलॉजिस्ट सी.एन. मंजूनाथ का 26 अप्रैल को बेंगलुरु ग्रामीण में कांग्रेस के फायरफाइटर डी.के. शिव कुमार के भाई सुरेश से मुकाबला हुआ। भगवा पार्टी के साथ विलय की सुगबुगाहट के साथ कहा जाता है कि देवेगौड़ा इसका विरोध कर रहे हैं-2024 इस दक्षिणपंथी पार्टी के लिए अब तक का सबसे महत्वपूर्ण वर्ष हो सकता है। -चेतन कुमार (साभार : टी.ओ.आई.)