राहुल गांधी के बाद कांग्रेस का भविष्य

punjabkesari.in Wednesday, Jul 10, 2019 - 03:34 AM (IST)

राहुल गांधी का त्यागपत्र और अब आधिकारिक तौर पर उनके अध्यक्ष पद छोडऩे के बाद इस पुरानी पार्टी में संकट और ज्यादा गहरा गया है। यह नए संकल्प की तरफ पहला कदम होना चाहिए था लेकिन इससे कई सवाल खड़े हुए हैं, जिनका उत्तर राहुल गांधी को देना होगा यदि वह वास्तव में कांग्रेस को एक मजबूत पार्टी के तौर पर देखना चाहते हैं। 

राहुल की ओर से त्यागपत्र देना इस बात का संकेत है कि वह लोकसभा चुनावों में पार्टी की हार की जिम्मेदारी लेते हुए राजनीतिक शुचिता का मानक स्थापित करना चाहते हैं क्योंकि राहुल गांधी के कंधों पर पार्टी के नेतृत्व की जिम्मेदारी रही है। ऐसे में वह सिर्फ इसलिए अपनी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकते कि वह चुनाव हार गए हैं। ऐसी स्थिति में राहुल गांधी की जिम्मेदारी बनती है कि वह पार्टी के संकट के समय उसकी सहायता करे। वास्तव में नेहरू-गांधी परिवार का सदस्य होने के कारण उन पर दोहरी जिम्मेदारी है। नेहरू-गांधी परिवार 1969 में पार्टी की टूट के बाद अहम रहा है। राहुल गांधी ने अपने इस्तीफे पर यह कहते हुए पुनर्विचार करने से इंकार कर दिया है कि यह जरूरी नहीं है कि गांधी परिवार का सदस्य ही पार्टी का अध्यक्ष हो। 

गैर-गांधी कांग्रेस अध्यक्ष
वास्तव में ऐसा करके राहुल ईमानदारी से काम नहीं ले रहे हैं। गांधी परिवार ने पार्टी को 4 दशकों तक पारिवारिक व्यवसाय के तौर पर चलाया है। 1978 से लेकर अब तक केवल दो गैर-गांधी पार्टी अध्यक्ष रहे हैं। पहले थे पी.वी. नरसिम्हा राव जो राजीव गांधी की हत्या के बाद अध्यक्ष बने थे, जब सोनिया गांधी ने पति का स्थान लेने से मना कर दिया था। दूसरे थे सीताराम केसरी, जिन्होंने 1996 के लोकसभा चुनावों में पार्टी की हार के बाद अध्यक्ष पद की कमान सम्भाली थी। 

इन दोनों ही मौकों पर पार्टी में अंतॢवरोध शुरू हो गया था और कई नेता पार्टी छोड़ कर अन्य दलों में अपना भविष्य तलाशने लगे थे। उसी समय सोनिया गांधी सामने आईं और पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी सम्भाली। सोनिया गांधी का अपने पुराने फैसले से पलट कर सक्रिय राजनीति में आने का कारण हैरानीजनक था। एक टैलीविजन इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि अपने 10 जनपथ आवास पर वह प्रतिदिन अपने पति और सास की आदमकद तस्वीरों के सामने से गुजरती थीं। उन्होंने पूछा ‘‘प्रतिदिन सुबह उठ कर मैं उन तस्वीरों को अपनी ओर घूरते हुए कैसे देख सकती थी।’’ सोनिया गांधी का कहना था कि उन्होंने अपनी जिम्मेदारी समझते हुए अध्यक्ष पद सम्भाला था लेकिन उनका मालिकाना रवैया स्पष्ट झलकता था कि केवल गांधी परिवार का सदस्य ही कांग्रेस का नेतृत्व कर सकता है। 

त्यागपत्र के निहितार्थ
राहुल गांधी के त्यागपत्र में भी कुछ संकेत थे। जब वह हार के लिए खुद को जिम्मेदार मान रहे थे तब वह दूसरों को भी दोषी ठहरा रहे थे। ‘‘पार्टी अध्यक्ष होने के नाते 2019 के चुनावों में हार के लिए मैं जिम्मेदार हूं। पार्टी की तरक्की के लिए जिम्मेदारी तय करना जरूरी है। यही कारण है कि मैंने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया है।’’ इसके बाद उन्होंने जोड़ा, ‘‘पार्टी के पुनर्निर्माण के लिए कड़े फैसले लेने होंगे और 2019 की हार के लिए कई लोगों को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।’’ राहुल के शब्द प्रभावशाली हैं लेकिन इनका मतलब क्या है। क्या राहुल की वापसी तब तक अस्थायी है जब तक वे सारे लोग इस्तीफा नहीं दे देते जिनको वे जिम्मेदार मानते हैं। 25 मई को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में उन्होंने कुछ लोगों के नाम लिए थे जिनमें कमलनाथ, पी. चिदम्बरम और अशोक गहलोत शामिल हैं। ये सभी पार्टी के पुराने दिग्गज हैं जिनके बारे में राहुल महसूस करते हैं कि ये लोग उनकी सत्ता को पूरी तरह स्वीकार नहीं करते। 

कामराज प्लान 2.0?
सवाल बरकरार हैं। जब राहुल गांधी कड़े फैसलों की बात करते हैं तो क्या वह इशारा कर रहे हैं कि पुराने दिग्गजों, जिनमें से अधिकतर सी.डब्ल्यू.सी. के सदस्य हैं, को इस्तीफा दे देना चाहिए? कामराज योजना 2.0? फिर क्या होगा? क्या एक युवा नेतृत्व पार्टी की कमान सम्भालेगा। राहुल ने अपने पत्र में कांग्रेस में बुनियादी बदलावों की जरूरत पर बल दिया ताकि पार्टी जनता की आवाज बन सके। क्या वह खुद बदलाव का हिस्सा बनेंगे? अथवा क्या वह राजनीति को पूरी तरह से अलविदा कहना चाहते हैं। 

वास्तव में राहुल के त्यागपत्र में कुछ बातें अंतर्निहित हैं। देर-सवेर उन्हें इन प्रश्रों का जवाब देना होगा तथा अपनी भविष्य की योजना के बारे में बताना होगा। कोई गांधी पार्टी के किसी अन्य सदस्य की तरह नहीं है। वह पार्टी में हमेशा ताकतवर स्थिति में रहेगा और उसमें नए अध्यक्ष की काट करने की क्षमता होगी इसलिए राहुल गांधी को अपनी चुप्पी तोडऩी होगी। कांग्रेस पार्टी में इस समय जिस तरह की उधेड़बुन चल रही है, ऐसे में यह काम जितनी जल्दी हो जाए उतना ही अच्छा है। पार्टी में असमंजस और उत्साहहीनता का संकेत उस समय मिला जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा बजट पेश करते समय पार्टी के सांसदों की ओर से कोई खास प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली। 

यहां तक कि जब पैट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाने की घोषणा की गई तो उस समय भी कांग्रेस सांसदों ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। विपक्ष की ओर से तृणमूल कांग्रेस के सांसद सौगत राय ही एकमात्र सांसद थे जिन्होंने इस प्रस्ताव से असहमति जताई और सीतारमण को पूछा कि उन्होंने बजट में मध्यम वर्ग को नजरअंदाज क्यों किया और उन्हें कोई राहत क्यों नहीं दी?-ए.आर. जैरथ


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News