हिमाचल से सटी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर ‘गतिविधियां’ बढ़ा रहा चीन

punjabkesari.in Wednesday, Sep 02, 2020 - 06:02 AM (IST)

तिब्बत पर कब्जे के बाद से चीन ने भारत की सीमाओं पर अपना आधारभूत ढांचा बड़े पैमाने पर खड़ा कर लिया है। पिछले कुछ अरसे से चीन लद्दाख की तरफ से सीमा पर अपने नापाक इरादों का परिचय देता आ रहा है। जिसका माकूल जवाब भारतीय सेना द्वारा समय-समय पर दिया जा रहा है। तिब्बत पर कब्जे के बाद हिमाचल प्रदेश की भी 240 किलोमीटर लंबी सीमा चीन के साथ लगती है। इस तरफ से चीन अधिकृत तिब्बत में पिछले कुछ सालों से अनेकों सड़कें, भवन और अन्य आधारभूत ढांचा बनाकर तैयार कर दिया गया है। 

वहीं पिछले कुछ समय से चीन द्वारा सीमा से 20 किलोमीटर भीतर एक रक्षा एयरपोर्ट का भी निर्माण कार्य किया जा रहा है जोकि जल्द पूरा होने वाला है। हालांकि चीन की ऐसी हरकतों के बाद सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण भानुपल्ली-लेह रेल लाइन के अलावा समदो बार्डर तक जाने वाली करीब 202 किलोमीटर लंबी सड़क को डबल लेन करने की स्वीकृति मिल चुकी है। जिसके लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है। वहीं लाहौल-स्पीति में सामरिक दृष्टि से एक हवाई पट्टी की जरूरत भी महसूस होने लगी है। 

क्योंकि पिछले कुछ समय में चीन द्वारा इस अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पर वायु सीमा के उल्लंघन की घटनाएं अंजाम दी जा चुकी हैं। वहीं सीमा पर चीन द्वारा लगातार ड्रोन द्वारा निगरानी भी की जा रही है। इस सीमा के नजदीक भारत की कोई भी हवाई पट्टी नहीं है। इसलिए समय रहते सतर्क होने की जरूरत महसूस की जा रही है। इस बारे में चिंतित हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर केंद्रीय नेतृत्व को इसकी जानकारी दे चुके हैं। 

वहीं राज्यपाल ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से हिमाचल के भारत-चीन सीमावर्ती गांवों में दौरा करने का आग्रह भी किया है। वहीं किन्नौर और लाहौल-स्पीति दोनों जिलों की पुलिस की संयुक्त टीमें सीमावर्ती गांवों में लगातार गश्त कर रही हैं। यह सारे गांव हाई अलर्ट पर चल रहे हैं। चीन अधिकृत तिब्बत सीमा के साथ किन्नौर जिला के 36 और लाहौल-स्पीति के 12 गांव लगते हैं। वहीं जब तक तिब्बत आजाद था पुराने भारत-तिब्बत मार्ग जिसे सिल्क रूट भी कहा जाता था वहां से व्यापार होता था। तिब्बत और हिमाचल के सीमावर्ती जनजातीय जिलों किन्नौर और लाहौल-स्पीति के लोग हर साल आपस में शिपकिला दर्रे के जरिए व्यापार करते आ रहे हैं। लेकिन कुछ सालों में इस सीमा के 20 किलोमीटर भीतर चीन ने अपनी तरफ जिस प्रकार से बहुत बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा किया है, उसकी तुलना में हम कुछ विशेष नहीं कर पाए हैं। 

रोहतांग टनल तैयार, अब भानुपल्ली-लेह रेल परियोजना पर ध्यान
भारत-चीन सीमावर्ती लद्दाख क्षेत्र के लिए सामरिक दृष्टि से अतिमहत्वपूर्ण भानुपल्ली-मनाली-लेह रेल परियोजना के कार्य को लेकर भारत सरकार की गंभीरता दिखने लगी है। वहीं बर्फबारी के दौरान सड़क मार्ग से लद्दाख को जोड़े रखने के लिए महत्वपूर्ण लगभग 9.2 किलोमीटर लंबी रोहतांग टनल बनकर तैयार हो चुकी है। जिसका सितंबर माह के अंत में उद्घाटन किए जाने की उम्मीद है। 

सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस टनल के जरिए अब बर्फबारी के दौरान भी लद्दाख के लिए सेना को रसद आदि भेजने की सुविधा रहेगी। जबकि भारत सरकार ने चीन द्वारा सीमा पर बढ़ाई जा रही गतिविधियों के चलते भानुपल्ली-मनाली-लेह रेल लाइन का राडार सर्वे 15 अगस्त से शुरू कर दिया है जिसके पूरा होने पर इसकी विस्तृत डी.पी.आर. दिसंबर 2021 तक तैयार हो जाएगी। सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस रेल परियोजना पर तकरीबन 83360 करोड़ रुपए की राशि खर्च होगी। करीब 465 किलोमीटर यह रेल रोहतांग, बारालाच और तंगलंगला दर्रों से होते हुए लेह तक पहुंचेगी। 

सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है मंडी में एयरपोर्ट 
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का ड्रीम प्रोजैक्ट मंडी इंटरनैशनल एयरपोर्ट सामरिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इस एयरपोर्ट के बनने से जहां हिमाचल प्रदेश में पर्यटन को बल मिलेगा वहीं राज्य की चीन अधिकृत तिब्बत के साथ लगती सीमाओं के लिए भी यह उपयोगी साबित होगा। हालांकि जयराम ठाकुर के प्रयासों से मंडी में ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट की सैद्धांतिक मंजूरी केंद्र ने दे दी है और इसे बनाने के लिए एयरपोर्ट अथारिटी ऑफ इंडिया और हिमाचल प्रदेश सरकार के बीच एम.ओ.यू. भी हो चुका है। इस एयरपोर्ट के लिए करीब 3490 बीघा जमीन का अधिग्रहण किया जाना है, जिसमें से 3160 बीघा निजी भूमि है। अगर राज्य सरकार प्रयास करे तो मंडी में रक्षा मंत्रालय द्वारा बड़े एयरपोर्ट का निर्माण रक्षा बजट से किया जा सकता है। जो भविष्य में दोनों तरह की जरूरतें पूरी कर सकता है।-डा. राजीव पत्थरिया
 


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