भाजपा ओछे लाभों के लिए कांग्रेस के ही पदचिन्हों पर चल रही है

punjabkesari.in Saturday, Sep 09, 2017 - 01:47 AM (IST)

स्वयंभू ‘भगवान’ और ब्लात्कार के लिए दंडित गुरमीत राम रहीम का प्रकरण ढेर सारे गंभीर सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को उभार कर सामने लाया है। उन सभी नागरिकों का अवश्य ही इन मुद्दों की ओर ध्यान जाएगा जो हाल ही के वर्षों में देश की पतनोमुखी स्थिति को लेकर चिंतित चले आ रहे हैं। मैं इन घटनाओं को कांग्रेस और इसके यू.पी.ए. के सहयोगी दलों तथा भाजपा व इसके राजग सहयोगियों की तरह किसी राजनीतिक या मजहबी ऐनक में से नहीं देखता। 

न ही मुझे हिन्दुत्ववादियों को बुरा- भला कहने की कोई खुजली हो रही है जैसा कि हमारी कथित सैकुलर व प्रगतिवादी शक्तियों के एक वर्ग की मजबूरी बन चुका है। मैं डेरा सच्चा सौदा प्रमुख के गिर्द घूम रहे इन संवेदनशील मुद्दों को वस्तुनिष्ठ दृष्टि से देखना चाहता हूं और यह पता लगाना चाहता हूं कि सामाजिक, धार्मिक मुद्दों का हमारे समाज में मौजूद पाखंडी बाबाओं ने कैसे और क्यों अपहरण कर लिया? सी.बी.आई. की विशेष अदालत ने बलात्कार के इस दोषी को 20 वर्ष का कारावास सुनाया है। वाजपेयी की सरकार (राजग-1) से लेकर यू.पी.ए.- और यू.पी.ए.-2 तथा अब राजग-2 के दौरान भी अपने राजनीतिक आकाओं का हुक्म बजाते हुए अनुयायियों की भारी संख्या वाले डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख को बचाने के लिए अब तक सक्रिय रही सी.बी.आई. जिस प्रकार पुराने ढर्रे में से बाहर निकली है उसके लिए वह प्रशंसा की हकदार है। 

शायद हम कभी भी नहीं जान पाएंगे कि राम रहीम की संदिग्ध गतिविधियों का पर्दाफाश करने वाले सिरसा के स्थानीय पत्रकार रामचन्द्र छत्रपति की अक्तूबर 2002 में हुई हत्या के 15 वर्ष बाद विभिन्न सरकारों दौरान कौन-सा तमाशा चलता रहा है। आज भी छत्रपति के लिए किसी की आंख नम नहीं लेकिन एक बलात्कारी को सजा मिलने पर अनेक लोगों की मां मरी हुई है। क्या यह कोई छोटी-मोटी शॄमदगी की बात है? क्या राम रहीम प्रकरण हरियाणा के नेताओं की विफलता का प्रमाण नहीं है जिन्होंने संदिग्ध गतिविधियों के बारे में उपलब्ध तथ्यों की जांच करने की बजाय केवल वोट बैंक के लिए हाई प्रोफाइल राम रहीम को संरक्षण दिया? इस प्रकार के राजनीतिक नेताओं के अपराध भी किसी तरह कम गंभीर नहीं हैं क्योंकि उन्हीं के कारण पंजाब और हरियाणा के पिछड़े क्षेत्रों के दलित और गरीब लोग पाखंडी बाबाओं के रहमोकरम के शिकार बन गए जिन्होंने सत्संग, भजन और कीर्तन का मंच प्रयुक्त करते हुए सरकार के समानान्तर अपने साम्राज्य खड़े कर लिए।

आखिर सरकारी अधिकारियों ने इन पाखंडी बाबाओं को ‘सत्ता के अंदर सत्ता’ स्थापित करने की छूट कैसे दे दी? इन बाबाओं के पास जीवन की अपार सुख-सुविधाएं होने के साथ अपनी प्राइवेट सेना तक भी मौजूद थी। कड़वी सच्चाई यह है कि ये सब कुछ उस घटिया गवर्नैंस का नतीजा है जो विशेष रूप में किसी पाखंडी बाबा के हितों के अनुकूल ही गढ़ी जाती रही है। इन पाखंडी बाबाओं की विभिन्न पार्टियों के नेताओं के साथ फाइल तस्वीरें इस बात का प्रमाण हैं कि हमारा समाज कितना बीमार और अज्ञानी बन चुका है जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गरीबों का जीवन बदलने और डिजीटल इंडिया का सपना साकार करने की बातें करते नहीं थकते। 

डिजीटल इंडिया का सपना देखना बुरी बात नहीं लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि देश भर में फैले वंचित और उपेक्षित वर्गों की चिंता कौन करेगा? जो करोड़ों लोग स्वतंत्रता के 71 वर्ष बाद भी दो जून की रोजी-रोटी, अपने बच्चों के लिए न्यूनतम स्वास्थ्य सेवा व शिक्षा के अधिकार तथा रहने की बढिय़ा हालत के लिए संघर्ष कर रहे हैं, उनके आर्थिक उत्थान के वायदे कहां गए? हरियाणा 2 पाखंडी बाबाओं के कारण समाचारों में छाया रहा है। 2014 में रामपाल सिंह के कारण और अब गुरमीत राम रहीम के कारण। पिछले कुछ अर्से से हरियाणा के भाजपा मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी सुर्खियों में छाए हुए हैं। हालांकि वह आर.एस.एस. की पृष्ठभूमि से हैं और उनका जीवन लगभग बेदाग है। सी.बी.आई. की विशेष अदालत ने पंचकूला में अमन-कानून न रख पाने के कारण उनकी ङ्क्षखचाई की है। 

आर.एस.एस. से संबंधित लोगों के बारे में मेरी अवधारणा बहुत बढिय़ा है क्योंकि व्यक्तिगत और सामाजिक मुद्दों के प्रति उनका रवैया बहुत अनुशासित है और वे अपनी आस्था के प्रति सम्पूर्ण समर्पण की प्रतिमूर्ति होते हैं। फिर भी मुख्यमंत्री खट्टर ने कम से कम 3 मौकों पर उत्कृष्ट कारगुजारी नहीं दिखाई। यह अलग बात है कि उन्होंने अपनी कारगुजारी पर सार्वजनिक रूप में प्रसन्नता व्यक्त की है, फिर भी जानकार लोगों का विचार अलग है। मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें तब तक खतरा नहीं जब तक प्रधानमंत्री मोदी का वरदहस्त उन्हें प्राप्त है। जमीनी हकीकतों की परवाह कौन करता है? 

मेरा तो एक सरल-सा सवाल है: भाजपा हाईकमान कुंजीवत पदों पर अक्षम लोगों को कैसे सहन कर लेती है? भाजपा नेतृत्व की त्रासदी यह है कि यह ओछे लाभों के लिए कांग्रेस के ही पदचिन्हों पर चल रही है। ऐसे में क्या मैं यह जायज सवाल पूछ सकता हूं: भाजपा किस मुंह से कहती है कि यह अलग तरह की पार्टी है? इस बिन्दू पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी को बहुत से सवालों का जवाब देना होगा। वैसे आम जनता जानती है कि किसकी औकात क्या है? महत्वपूर्ण बात यह नहीं कि गिलास आधा भरा हुआ है या आधा खाली है। महत्वपूर्ण बात यह है कि भारतवर्ष की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जटिलताओं के संबंध में विभिन्न नेताओं की समझदारी की गहराई के विषय में आम जनता की अवधारणा क्या है? 

इस अंधकारमय परिदृश्य में सबसे ङ्क्षचता की बात तो यह है कि कहीं भी कोई समाज सुधारक दिखाई नहीं दे रहे। कुछ हाईप्रोफाइल स्वामियों ने या तो योग शक्ति के छत्र तले अपना राजनीतिकरण कर लिया है या फिर सीधे-सीधे व्यवसायीकरण की ओर चल निकले हैं। वैसे ऐसा करना अपने आप में कोई गुनाह नहीं, यदि यह महानुभाव सामाजिक उद्देश्यों के लिए प्रतिबद्धता एवं धनार्जन के बीच लक्ष्मण रेखा की पहचान न भूलें। वास्तव में सार्वजनिक जीवन की गुणवत्ता में सर्वांगीण बेहतरी एवं देश के उथल-पुथल रहित वातावरण की कुंजी सही किस्म के राजनीतिक धर्म के निर्वाह में है। रामपाल सिंह एवं गुरमीत राम रहीम जैसे लोग हमारी सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक कार्यशैली में आए भटकावों के उदाहरण हैं। 

ऐसे उदाहरणों को किसी भी कीमत पर हिन्दू धर्म और महान ऋषि-मुनियों की समृद्ध धरोहर को नीचा दिखाने के लिए हथियार के रूप में प्रयुक्त नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि ये ऋषि-मुनि ही इस देश की महानता की बुनियाद हैं और उन्होंने ही हमें सहिष्णुता तथा सौहार्द की गुंजायमान विरासत प्रदान की है। एक तरह से हम यह कह सकते हैं कि रामपाल सिंह जतिन का सतलोक आश्रम और गुरमीत राम रहीम का डेरा सच्चा सौदा गरीबों, वंचितों और आदिवासियों का सशक्तिकरण करने में सत्तातंत्र की विफलताओं का खमियाजा है। जमीनी स्तर पर गवर्नैंस की घटिया पद्धति इन स्वयंभू पाखंडी बाबाओं के प्रफुल्लित होने का कारण बनी है क्योंकि वे राजनीतिक संरक्षण हासिल करने में सफल रहे हैं। 

यह सच है कि पंजाब-हरियाणा इलाके में कुछ एक धार्मिक डेरे सचमुच में जमीनी स्तर पर बहुत अच्छा काम कर रहे हैं और गरीब लोगों की सहायता करते हैं। कुछ एक डेरे तो पंजाब में आतंकवाद के विरुद्ध बहुत दिलेरी से डटे रहे थे। डेरे चाहे कितना भी अच्छे से अच्छा काम करें, समाज के गरीब और दबे-कुचले वर्गों का उत्थान करने में विफलता के लिए सत्ता व्यवस्था को किसी भी स्थिति में माफ नहीं किया जा सकता। हाल ही की चिंताजनक घटनाओं के कारण जो मुद्दे सामने आए हैं उन्हें व्यापक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए और ऐसे न्यायपूर्ण, मानवीय और समतापूर्ण समाज का सृजन करना चाहिए जिसकी देश को बुरी तरह जरूरत है। यही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए सबसे बड़ी चुनौती होनी चाहिए।


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