भारत के राष्ट्रपति के पास अधिकार तो बहुत हैं परन्तु...

punjabkesari.in Saturday, Dec 03, 2016 - 02:20 AM (IST)

(पूरन चंद सरीन): भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद का आज जन्मदिन है। वह सरल और सौम्य स्वभाव, सादगी तथा विनम्रता के प्रतीक थे। इसी के साथ वह अनुशासनप्रियता, दृढ़ता और स्पष्टवादिता के लिए भी जाने जाते थे, कदाचित इसी कारण जब उन्होंने संविधान पीठ के अध्यक्ष के रूप में सदस्यों द्वारा आलोचना किए जाने पर गांधी जी से पदमुक्त करने के लिए निवेदन किया तो गांधी जी ने कहा कि ‘एक आप ही तो नीलकंठ हैं जो विषपान कर सकते हैं, बाकी सब तो अमृत की चाह लगाए हुए हैं।’ 

कांगे्रेस के अध्यक्ष के रूप में उनकी छवि के अनुरूप ही कांग्रेसी उनसे सद्व्यवहार करते थे अन्यथा कांग्रेस का इतिहास बताता है कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए कितनी उठा-पटक होती थी। उनकी सहजता, सहभागिता और सबको साथ लेकर चलने की प्रवृत्ति के कारण ही बहुमत द्वारा उन्हें भारत का प्रथम राष्ट्रपति बनाने का प्रस्ताव रखा गया, हालांकि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को देश का प्रथम राष्ट्रपति बनते हुए देखना चाहते थे।  

हमारे देश में भारतीय संविधान के मुताबिक राष्ट्रपति का पद ऐसा है जिसके पास अधिकार तो बहुत हैं लेकिन वास्तविकता यह है कि राष्ट्रपति द्वारा अधिकार सम्पन्न होने का केवल दिखावा है। व्यवहार में तो प्रधानमंत्री, सत्तारूढ़ दल और संसद ही समस्त अधिकारों से सम्पन्न हैं। वे जो भी नीतियां, कानून और व्यवस्था लागू करना चाहें उन्हें राष्ट्रपति के नाम पर कर सकते हैं। 

राष्ट्रपति के पास केवल दो ही विकल्प होते हैं कि वह या तो सत्तारूढ़ दल द्वारा पारित प्रस्ताव पर अपने हस्ताक्षर कर दें ताकि वे लागू हो जाएं अथवा वह उसे पुनॢवचार के लिए वापस कर दें, किन्तु यदि दोबारा वही प्रस्ताव फिर से राष्ट्रपति के पास आता है तो उन्हें उसे मानना होता है और हस्ताक्षर करने होते हैं।  

राष्ट्रपति  के पास दूसरा विकल्प है कि वह उस प्रस्ताव पर यदि अपने हस्ताक्षर न करना चाहें तो उसे दरी के नीचे सरका दें अर्थात् पैंङ्क्षडग रख दें। जब उनका कार्यकाल समाप्त हो जाए तो नए राष्ट्रपति उसके बारे में जैसा चाहें वैसा निर्णय लें। इस विकल्प का उपयोग ज्यादातर राष्ट्रपति गिने-चुने गैर- राजनीतिक मामलों में ही करते हैं जैसे कि पूर्व राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने मृत्युदंड प्राप्त अपराधियों की याचिकाओं को पैंङ्क्षडग रहने दिया और उनके बाद आए राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी उन पर फैसला ले रहे हैं। 

जहां तक राष्ट्रपति के रूप में डा. राजेन्द्र प्रसादका संबंध है, उनके सामने गिने -चुने मामलों को छोड़कर कोई ऐसी दुविधा उत्पन्न नहीं हुई जिससे उन्हें असहमत होना पड़ा हो। इसमें हिन्दू कोड बिल प्रमुख है। 

डा. राजेंद्र प्रसाद को 2 बार राष्ट्रपति बनने का अवसर मिला और वह भी अपने प्रति विपरीत विचार रखने वाले श्री नेहरू के कार्यकाल में। उनके बाद तो ज्यादातर कोशिश यही रही कि राष्ट्रपति का पद ऐसे व्यक्ति को मिले जिसे सत्तारूढ़ दल और उसके प्रधानमंत्री चाहते हों। अक्सर यह कहा जाता है कि एक गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि से आया व्यक्ति राष्ट्रपति बनने पर किस प्रकार राजनीतिक मामलों पर अंतिम फैसला दे सकता है लेकिन डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम और राजनीति से ज्यादा सरोकार न रखने वाले व्यक्ति जब राष्ट्रपति पद पर आसीन हुए तो उन्होंने अपने विवेक का इस्तेमाल किया। 

इसी प्रकार यह बात भी होती रही है कि जब राष्ट्रपति के पास किसी बात को न मानने का अधिकार ही नहीं होता तो फिर राष्ट्रपति  पद को बनाए रखने का औचित्य क्या है? राष्ट्रपति पद के साथ जुड़े खर्चों को लेकर कहा जाता है कि एक बड़ी राशि इस पद को समाप्त कर बचाई जा सकती है। कुछ लोगोंका सुझाव यह भी रहा है कि राष्ट्रपति भवन के विशाल परिसर का इस्तेमाल समाज केलिए आवश्यक अन्य उपयोगिताओं के लिए किया जा सकता है जैसे कि अस्पताल, शिक्षण संस्थान या कोई बड़ा उपक्रम। 

डा. राजेंद्र प्रसाद बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। शिक्षा, पत्रकारिता और साहित्य में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। ‘आत्मकथा’, ‘चम्पारण सत्याग्रह’ और‘बापू के कदमों में’ उनकी लोकप्रिय रचनाएं रही हैं।  

राष्ट्रपति पद पर कार्यरत रहते हुए उन्होंने किसी प्रकार के राजसुख की कामना नहीं की, यहां तक कि उन्हें मिलने वाला वेतन जो उस वक्त 10  हजार रुपए था, में से भी वह केवल 2 हजार 8 सौ रुपए ही लिया करते थे। 

प्रधानमंत्री हों या मंत्री अथवा किसी भी अन्य पद पर आसीन होने पर अधिकतर राजनीतिज्ञ अपने परिवार, मित्रों और संबंधियों को आगे बढ़ाने तथा उन्हें महत्वपूर्ण पदों पर आसीन कराने में अहम भूमिका निभाते पाए जाते हैं। पंडित नेहरू जिन्होंने अपनी पुत्री इन्दिरा गांधी को राजनीति का चतुर खिलाड़ी बनाया, उन्हीं की भांति दूसरों ने भी अपने परिवार को आगे बढ़ाया। वर्तमान में समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव और राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव इसमें अग्रणी हैं। कहना न होगा कि डा. राजेन्द्र प्रसाद परिवारवाद से बहुत दूर रहे। कदाचित प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही उनके बाद ऐसे राजनेता हैं जो परिवार और मित्रों को कोई तरजीह नहीं देते। 

डा. राजेन्द्र प्रसाद एक सफल वकील थे और वकालत छोड़कर ही राजनीति में आए थे। इस पेशे मेंउन्होंने ईमानदारी, कर्मठता और व्यावसायिक मानदंडों की जो स्थापना की है, उसी के अनुरूप उनके जन्मदिन को भारत में वकील समुदाय द्वारा एडवोकेट्स डे (वकील दिवस) के रूप में मनाया जाता है।
 


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