वरुण पर ललित के ‘तीर’ से कांग्रेसियों के चेहरे उतरे

punjabkesari.in Sunday, Jul 05, 2015 - 12:04 AM (IST)

(वीरेन्द्र कपूर): अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को परेशान करने के लिए ललित मोदी जैसे फिसलन भरे ‘सज्जनों’ पर भरोसा करने में खतरा यह होता है कि पता नहीं उनका अगला ‘ट्विटर बम’ किसको लक्ष्य बनाएगा। कांग्रेस पार्टी सुषमा स्वराज और उनके बेदाग पति स्वराज कौशल (जोकि सुदूर सिक्किम हाईकोर्ट में वरिष्ठ वकील की हैसियत बनाए हुए हैं) को परेशान करने के लिए ललित मोदी के मुंह से निकलने वाली हर बात को ऐसे दबोच रही है, जैसे यह कोई ब्रह्म वाक्य हो। 

लेकिन मुंहफट ललित मोदी ने भाजपा सांसद और राहुल गांधी व प्रियंका वाड्रा के चचेरे भाई वरुण गांधी पर चुटकी ली तो ललित मोदी की ओर से लगातार मिल रही ‘बारूद की सप्लाई’ पर बांछें  खिलाने वाले कांग्रेसी नेताओं के चेहरे उतर गए। इसका कारण यह था कि वरुण गांधी पर छोड़ा गया तीर वास्तव में उनकी ‘आंटी’ सोनिया गांधी पर लक्षित था। 
 
जैसे कि समाचार पत्रों में रिपोर्टें आ चुकी हैं, कुछ वर्ष पूर्व वरुण गांधी लंदन में ललित मोदी से मिले थे और उनके विरुद्ध भारत में लंबित जांच का मुद्दा सुलझाने की पेशकश की बशर्ते कि वह (और यही बात सबसे महत्वपूर्ण है) 6 करोड़ डालर रिश्वत के रूप में इटली में रहती ‘आंटी की बहन’ को पहुंचाने का जुगाड़ करें। 
 
आप समझ गए होंगे कि वरुण ने किस ‘आंटी’ की ओर संकेत किया है। जैसी कि उम्मीद थी ललित मोदी के ट्वीट को धत्ता बताने में कांग्रेसी नेताओं की होड़ लग गई। इस एक ट्वीट को छोड़कर पार्टी को ललित मोदी के किसी भी अन्य ट्वीट में 100 प्रतिशत से कम सच्चाई दिखाई नहीं दी। 
 
वरुण का इन टिप्पणियों से इंकारी होना स्वाभाविक था। लेकिन जो लोग संजय गांधी की मौत से पूर्व इंदिरा गांधी के परिवार के क्रिया-कलापों से थोड़े-बहुत भी परिचित हैं, उन्हें इन  बातों में सच्चाई की खनक महसूस होगी। सोनिया और राजीव को संजय गांधी ने पूरी तरह हाशिए पर धकेल दिया था क्योंकि वह अपनी मां के घर के साथ-साथ उनकी सरकार पर भी पूरा नियंत्रण रखते थे। ओट्टावियो क्वात्रोच्चि और इतालवी बहू के अन्य कुछ दोस्त जिन भारी-भरकम सौदेबाजी में रुचि ले रहे थे, उनका रास्ता सुखद बना दिया गया ताकि इन लोगों का मूड खराब न हो।
 
वास्तव में समय-समय पर संजय को जो महंगे विदेशी उपहार मिलते थे, उन्हें वह हिकारत भरे ढंग से अपनी पश्चिमी भाभी तक पहुंचा देते थे, ताकि उसका चीजें एकत्र करने का शौक पूरा होता रहे। गांधी परिवार के जो पुराने दोस्त अभी भी राजनीति में मौजूद हैं, वे इन बातों की पुष्टि करते हैं। सोनिया अक्सर ही अपने परिवार से मिलना चाहती थीं। इस यात्रा के लिए टिकटों का प्रबंध गांधी परिवार के सेवादारों द्वारा कर दिया जाता था। उस जमाने में दिल्ली से रोम की सीधी उड़ान मुश्किल से ही मिलती थी, इसलिए सोनिया को लंदन के रास्ते जाना पड़ता था।  
 
यहां इस तथ्य का स्मरण करना भी असंगत नहीं होगा कि सोनिया माइनो गांधी ने तब तक भारतीय नागरिकता हासिल नहीं की थी, जब तक संजय गांधी की मृत्यु के बाद यह भली-भांति स्पष्ट नहीं हो गया था कि इंदिरा गांधी पारिवारिक कारोबार अपने बड़े पुत्र और सोनिया के पति राजीव  को सौंप देंगी। वैसे इंदिरा गांधी की मंडली के बहुत से लोग अभी भी जिन्दा हैं और वे तत्परता से उपरोक्त प्रकरण की पुष्टि कर देेंगे। वे वरुण गांधी द्वारा ललित मोदी को कही गई बातों का महत्व समझ सकते हैं। 
 
केजरीवाल की, केजरीवाल के लिए, केजरीवाल के द्वारा दिल्ली सरकार 
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और उनकी पार्टी हर नए सूरज के साथ बदनाम होते जा रहे हैं। इसका कारण यह है कि अपने निरंतर ‘आप’ राग के बावजूद केजरीवाल इस पार्टी को केवल अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा को आगे बढ़ाने के उपकरण के रूप में प्रयुक्त कर रहे हैं। केजरीवाल के लिए ‘आप’ की बजाय ‘मैं’ हीमहत्वपूर्ण बन चुका है। 
 
उनके दावों की जांच-पड़ताल करने वाला कोई भी व्यक्ति यह जान जाएगा कि केजरीवाल पाखंडी और अवसरवादी हैं। उनके आवास का मासिक बिजली बिल 1 लाख रुपए के करीब है, जो इस तथ्य को रेखांकित करता है कि वह छल-कपट भरा व्यवहार करते हैं। जब वह मुख्यमंत्री के बंगले में डेरा डाल रहे थे, तो मीडिया में यह खबर लगवाई गई कि दिल्ली लोक निर्माण विभाग ने उनके आवासीय क्वार्टरों से एयरकंडीशनर हटाने का आदेश दिया है। 
 
हर किसी ने इस कहानी पर विश्वास कर लिया जोकि पूरी तरह झूठ थी। बिजली का बिल इस बात का प्रमाण है कि कोई ए.सी. हटाया ही नहीं गया था। एक क्षण के लिए यदि हम उनके लोक सम्पर्क अधिकारी की इस बात से सहमत हो जाएं कि वास्तविक बिल तो केवल 15000 रुपए महीना ही है, तो भी सवाल पैदा होता है कि कौन सा ‘आम आदमी’ है जो प्रतिमाह 15000 रुपए बिजली बिल के रूप में देने की क्षमता रखता है?  ऊंची आय वाले अधिकतर परिवार सदा सतर्क रहते हैं कि उनका बिजली का बिल कहीं बढ़ न जाए लेकिन केजरीवाल ठहरे ‘आम आदमी’। उन्हें चिन्ता करने की क्या जरूरत है। करदाता झेलेंगे उनकी फिजूलखॢचयों का बोझ। 
 
वास्तव में यह जानना बहुत दिलचस्प होगा कि जब केजरीवाल अपने घर का बिजली बिल स्वयं अदा करते थे, उस समय बिजली की वास्तविक खपत कितनी थी? सच्ची समाज सेवा और ईमानदारी के लिए मनुष्य को बहुत कुछ का त्याग करना पड़ता है। लेकिन केजरीवाल के व्यवहार में आत्म संयम एवं त्याग की कोई झलक नहीं मिलती। 
 
केजरीवाल की छवि उभारने के लिए दिल्ली के 2015-16 के बजट में 526 करोड़ की भारी-भरकम राशि का प्रावधान किया गया है जो इस तथ्य को रेखांकित करता है कि केजरीवाल के लिए अपना आप ही सबसे महत्वपूर्ण है। इस दलील में कोई दम नहीं कि इस पैसे से दिल्ली सरकार के अच्छे कामों का प्रचार किया जाएगा। 
 
अच्छा काम तो स्वयं ही बोलता है। दिल्ली के लोगों के कान और आंखें हैं। यदि कोई भी अच्छा काम होगा तो वे इसके बारे में देखे-सुने बिना नहीं रह पाएंगे। वे नहीं चाहेंगे कि उनके खून-पसीने के टैक्सों की कमाई रेडियो विज्ञापनों के माध्यम से केजरीवाल का गुणगान करने पर बर्बाद की जाए।         
 

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