प्रदूषित गंगा नदी के ‘अच्छे दिन’ कैसे आएं

punjabkesari.in Friday, Jun 26, 2015 - 12:59 AM (IST)

(डा. चरणजीत सिंह गुमटाला): गंगा भारत की सबसे बड़ी नदी ही नहीं, बल्कि भारत की जीवनरेखा है। यह 11 प्रदेशों को पानी उपलब्ध करवाती है। देश की लगभग 50 करोड़ आबादी इससे लाभान्वित होती है। जिस क्षेत्र में से गंगा बहती है, वह विश्व का सबसे उपजाऊ  व घनी आबादी वाला क्षेत्र है। इस दृष्टि से देखा जाए तो गंगा दुनिया की नम्बर-1 नदी है।   इसका नाम देवी के नाम पर होने के कारण इसकी पूजा भी की जाती है। हिन्दू धर्म में तो इसे विशेष दर्जा हासिल है। पवित्र नदी समझकर विशेष त्यौहारों पर 7 करोड़ से अधिक लोग अपने पाप दूर करने के लिए इस नदी में स्नान करते हैं। 

परन्तु पवित्र नदी होने के बावजूद यह दुनिया की दूषित नदियों में छठे स्थान पर है। इसके कई कारण हैं। जहां त्यौहारों पर स्नान करते समय करोड़ों श्रद्धालु कई प्रकार की वस्तुएं जल प्रवाह करके गंगा को दूषित करते हैं, वहीं इसके किनारे बसे शहर और कस्बे अपने सीवरों का गंदा पानी इसमें फैंक रहे हैं। इसके किनारे बसे बनारस, इलाहाबाद, पटना, कानपुर इत्यादि शहरों की असंख्य औद्योगिक इकाइयां (जिनमें रासायनिक उद्योग, चमड़ा रंगने के कारखाने, बूचडख़ाने, अस्पताल इत्यादि शामिल हैं) बिना परिशोधित किया गंदा पानी व अन्य अपशिष्ट इसमें फैंक रहे हैं। यही कारण है कि गंगा का पानी अब पीने योग्य नहीं रहा, क्योंकि इसमें पेट, जिगर के रोगों और कैंसर इत्यादि जैसी बीमारियों के कीटाणु तथा जहरीले रसायन मौजूद हैं। और तो और, अब इसका पानी कृषि कार्यों के लिए भी उपयुक्त नहीं रहा। 
 
अकेले कानपुर में चमड़ा उद्योगों की 400 इकाइयां हैं, जिनमें 50000 मजदूर काम करते हैं। ये इकाइयां क्रोमियम युक्त जहरीले पदार्थों का प्रयोग करती हैं। 1995 में बेशक इन सब इकाइयों के लिए एक संयुक्त जलशोधन संयंत्र स्थापित किया गया था, लेकिन इसके बावजूद गंगा के पानी में क्रोमियम की मात्रा कम नहीं हुई। वर्तमान में तो इसकी मात्रा तय सीमा से 70 गुणा अधिक है। इंडियन मैडीकल कौंसिल की 2012 की एक रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल के वे शहर जो गंगा के किनारे बसे हुए हैं। शेष देश की तुलना में कैंसर से कहीं अधिक प्रभावित हैं। 
 
नदी पर बने बांधों के विरुद्ध वातावरण प्रेमी आवाज बुलंद कर रहे हैं क्योंकि इससे न केवल जंगलात क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं, बल्कि वन्य प्राणियों पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है। पानी प्रदूषित होने के कारण मछलियों में पारे की मात्रा बढ़ती जा रही है। फलस्वरूप गंगा की जलधारा मेंपाई जाने वाली डाल्फिन मछली समाप्त होने पर आ गईहै और अब इनकी संख्या 2000 से भी कम रह गई है। 
 
गंगा के शुद्धिकरण हेतु बहुत-सी संस्थाएं कार्यरत हैं। वातावरण प्रेमी प्रो. जी.डी. ने 107 दिन का व्रत रखा था  जिसके फलस्वरूप पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उनकी मांग मानते हुए 20 फरवरी 2009 को नैशनल गंगा बेसिन अथारिटी का गठन किया था और सीवरेज प्लांट लगाने तथा सार्वजनिक शौचालय निर्माण करने के लिए 2600 अरब रुपए इस अथारिटी को जारी किए थे और गंगा नदी को ‘राष्ट्रीय नदी’ घोषित किया था। 2011 में हरिद्वार में अवैध उत्खनन के विरुद्ध स्वामी निगमानंद जी ने आमरण अनशन रखा। जून 2011 में उनकी मृत्यु के पश्चात उनके आश्रम के प्रमुख स्वामी शिवानंद ने 25 नवम्बर 2011 को आमरण अनशन शुरू कर दिया तो उत्तराखंड सरकार ने उनकी मांग मानते हुए अवैध उत्खनन बंद करवाया। 
 
2010 में केन्द्र सरकार ने ‘गंगा स्वच्छता अभियान’ चलाया और 4 अरब रुपए की राशि जारी की ताकि 2020 तक किसी भी शहर का बिना परिशोधित गंदा पानी गंगा में न बहाया जाए। लेकिन गत वर्ष 3 सितम्बर को एम.सी. मेहता की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए माननीय सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को एक समयबद्ध, पड़ावबद्ध योजना पेश करने को कहा ताकि मई 2019 को 5 वर्ष का समय पूरा होने के बाद परिणामों का मूल्यांकन हो सके। शीर्ष अदालत के अनुसार जो योजना सरकार ने पेश की है, उसके चलते तो गंगा आगामी 200 वर्षों में भी साफ नहीं हो सकेगी। याचिकाकत्र्ता का कहना था कि 1985 में शुरू हुए ‘गंगा स्वच्छता अभियान’ पर 40000 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं, लेकिन फिर भी गंगा साफ नहीं हुई। 
 
मोदी सरकार ने 4 वर्षों में 20000 करोड़ रुपए खर्च करके गंगा स्वच्छता अभियान प्रारंभ किया है। इसमें से 7272 करोड़ रुपए वर्तमान में चल रही परियोजनाओं पर और शेष राशि नई परियोजनाओं पर खर्च की जाएगी। 
 
इन सभी परियोजनाओं का उद्देश्य है कि कारखानों और शहरों के सीवरेज का पानी बिना परिशोधित किए गंगा में न डाला जाए और शहरों की गंदगी व मलबा भी गंगा में आने से रोका जाए एवं बिजली और गैस से दाह-संस्कार करने को प्रोत्साहित किया जाए। 
 
हमारी सबसे बड़ी समस्या यह है कि विषय राज्य सरकारों से संबंध रखता है। ये सरकारें अपने कत्र्तव्य का निर्वाह नहीं कर रही हैं। राजनीतिक हस्तक्षेप के बाद प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों और व्यक्तियों के विरुद्ध उचित कार्रवाई नहीं करते। अब भारत सरकार गंगा को प्रदूषित करने वालों के विरुद्ध फौजदारी मामले दर्ज करने हेतु कानून बनाने पर विचार कर रही है। 
 
गंगा के पानी को पीने योग्य तथा कृषि कार्यों के लिए उपयुक्त बनाने हेतु कठोर पग उठाने की जरूरत है। सबसे बढिय़ा तरीका यही है कि केन्द्र सरकार सरकारी अधिकारियों की तरह ही मंत्रियों व मुख्यमंत्रियों के लिए नियम बनाए। जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक भारत में सुधार नहीं हो सकता और ऐसे सुधार किए बिना भारत अमरीका जैसी तरक्की नहीं कर सकता।  
 

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