देसाई सरकार के ‘हश्र’ से सबक सीखें मोदी

punjabkesari.in Sunday, Mar 01, 2015 - 02:57 AM (IST)

(वीरेन्द्र कपूर) इतिहास अक्सर एक महान अध्यापक होता है। 1977-79 के दौर में प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई ने बहुत बढिय़ा सरकार का संचालन किया। उनका मंत्रिमंडल दिग्गजों से भरा हुआ था, जो सभी के सभी अपने-अपने स्थान पर मजबूत नेता थे। जगजीवन राम, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण अडवानी, बीजू पटनायक, चरण सिंह इत्यादि सभी उनकी हैसियत वाले नेता थे तथा सरकार के अंदर व बाहर उनको बहुत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था।

अपने मंत्रालयों पर उनका पूर्ण नियंत्रण था और उन्होंने अनेक नीतिगत पहलें की थीं। इंदिरा गांधी द्वारा आंतरिक आपातकाल के नाम पर सृजित किए गए एमरजैंसी के मनहूस ढांचे को उखाड़ फैंकने के बाद देसाई सरकार ने बढिय़ा गवर्नैंस उपलब्ध करवाने का काम शुरू किया। संजय गांधी और उनके गुंडों द्वारा देश की प्रथम गैर-कांग्रेसी सरकार को घटिया से घटिया रंग में प्रस्तुत करने के प्रयासों के बावजूद जनता काफी हद तक देसाई सरकार की कारगुजारी पर प्रसन्न थी। मुद्रास्फीति नियंत्रण में थी। वृद्धि दर भी इससे पूर्व कभी इतनी ऊंची नहीं रही थी। मंत्रीजन अपनी सरकारी जिम्मेदारियों को निभाने के लिए पूरी तरह मुस्तैद थे और सरकारी नियंत्रण से मीडिया को मुक्त करवाने के प्रयास सच्चे मन से किए गए। इसके अलावा अमन-कानून की स्थिति भी नियंत्रण में थी।

इन सब बातों के बावजूद देसाई सरकार शीघ्र ही अलोकप्रिय हो गई और अपने गठन के 2 वर्ष बाद ही इसका पतन हो गया। कारण बहुत सरल  सा था। इसकी असफलता का कारण न तो इसकी उपलब्धियां थीं और न ही इसकी विफलताएं। देश में पहली बार गठित जनता पार्टी की सरकार के बारे में लोगों का यह प्रभाव था कि यह इसके शीर्ष नेताओं के बीच नंगे-चिट्टे सत्ता संघर्ष के कारण औंधे मुंह गिरी। जगजीवन राम और चरण सिंह की प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षाएं शीघ्र ही बाजारों की गपशप का विषय बन गईं और कालांतर में सत्तारूढ़ पार्टी के विरुद्ध बदनामी भरे प्रचार की बाढ़-सी आ गई।

भ्रष्टाचार का कोई स्कैंडल नहीं था और न ही किसी मंत्री ने हेरा-फेरी की थी। बस यही जन अवधारणा बनी हुई थी कि जनता पार्टी के नेता लगातार आपस में लड़ते रहते हैं और यही बात देसाई सरकार को ले डूबी। परिणामस्वरूप इंदिरा गांधी की सत्ता वापसी का मार्ग प्रशस्त हो गया-वही इंदिरा गांधी, जिसे केवल 2 वर्ष पूर्व  देश ने पूरी तरह रद्द कर दिया था। इससे हमें यह सबक मिलता है कि राजनीति में जनअवधारणाओं का सबसे अधिक महत्व होता है।

हमने यह उदाहरण इसलिए प्रस्तुत किया है ताकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को देसाई सरकार के हश्र से सबक सीखें। यदि वह लंबे-चौड़े संघ परिवार में से उठ रहे अनेक तरह के शोर-शराबे को नकेल लगाने में असफल रहते हैं तो वह विपरीत जनअवधारणाओं के खतरे से बच नहीं पाएंगे। उनकी सरकार ने चाहे कितने भी बढिय़ा काम क्यों न किए हों (और हमारा मानना है कि अब तक इसने काफी हद तक अच्छी कारगुजारी दिखाई है) आम जनता अलग-अलग बेसुरे रागों के विरुद्ध प्रतिक्रियास्वरूप आक्रोशित हो जाएगी।

आप बेशक पसंद करें या न, जिस ढंग से प्रवीण तोगडिय़ा तथा साक्षी महाराज जैसे लोग और यहां तक कि आर.एस.एस. के दिग्गज गत 16 मई के बाद से लेकर अब तक जो व्यवहार करते आए हैं, उससे यही लगता है कि वे मोदी सरकार के मित्र नहीं हैं। आपस में भिड़ते तथा टुकड़ों में बंटे हुए विपक्षी दल संसद में जो काम नहीं कर सकते (और न ही करने के योग्य हो सकेंगे) वह काम संघ परिवार के उन सदस्यों द्वारा किया जा रहा है, जो केन्द्र में भाजपा के सत्तासीन होने के बाद ही अपने बिलों में से बाहर निकले हैं।

गौण मुद्दों को उछालते हुए आम लोगों की भावनाओं को अल्पसंख्यकों के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणियों से आहत करना तथा जनता के विभिन्न वर्गों को उनकी मान्यताओं के संबंध में आक्रामक ढंग से चुनौती देना हिन्दू धर्म के अनुयायियों को भी शोभनीय नहीं लगता। हमारा मानना है कि हिन्दू धर्म की बेहतर सेवा करने के लिए हिन्दुओं को बेहतर इंसान व बेहतर नागरिक बनना चाहिए। अन्य मजहबों को गालियां देकर भला हिन्दू धर्म को क्या लाभ मिलेगा? जैसा कि इस स्तंभ में पहले भी लिखा जा चुका है, आर.एस.एस. और संघ परिवार के घटकों को हिन्दू समाज में हर स्तर पर मौजूद कमियों को दूर करने का मिशन अपनाना चाहिए। हिन्दू समाज में इस हद तक गिरावट आ चुकी है कि सचमुच की नैतिक क्रांति ही इसके चरित्र का कायाकल्प कर सकती है। अल्पसंख्यकों पर अकारण हमला करने से कुछ भी हासिल होने वाला नहीं।

मदर टैरेसा और उन जैसे जिन अन्य महानुभावों को अल्पसंख्यक लोग श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं, उनके विरुद्ध कटु टिप्पणियां करने से अल्पसंख्यक समुदाय के अलावा बहुसंख्यक समुदाय का बहुत बड़ा हिस्सा भी विरोध में उठ खड़ा होगा। इस प्रकार की अनर्गल टिप्पणियां भाजपा नीत सरकार के विरुद्ध दूषित वातावरण का सृजन करेंगी। संघ  के वरिष्ठ नेताओं को सस्ती शोहरत हासिल करने के लालच से बचना चाहिए। यदि संघ की कथनी और करनी से भाजपा सरकार के लिए कोई संकट पैदा होता है, तो इसे स्वयं भी बहुत नुक्सान उठाना पड़ेगा क्योंकि  संघ खुद यह दावा करता है कि वह भाजपा सरकार की चालक शक्ति है, इसलिए इसे कोई भी ऐसा काम करने से बचना चाहिए जिससे मोदी सरकार की छवि आहत होती हो। नहीं तो 1980 जैसी स्थिति फिर पैदा हो सकती है और लोग मोदी सरकार के ‘गुड गवर्नैंस’ के प्रयासों को एक तरफ फैंकते हुए फिर से घोटालेबाजों की शरण में जाने को मजबूर हो जाएंगे।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News