भारत में ‘मृत कर्मचारी’ भी लेते हैं वेतन

punjabkesari.in Saturday, Jan 31, 2015 - 02:33 AM (IST)

(जोगिन्द्र सिंह) हमारे देश के नौकरशाह भ्रष्टाचार के नए-नए तरीके खोजने के मामले में दुनिया में किसी से भी पीछे नहीं हैं। इन लोगों ने सरकार का काम केवल यहां तक सीमित कर दिया है कि ‘‘गिरफ्तार हुए बिना और नौकरी खोए बिना सामान्य काम के लिए अधिक से अधिक सरप्रस्ती कैसे हासिल की जाए और अधिक से अधिक पैसा कैसे बनाया जाए।’’ व्यावहारिक तौर पर बहुत ही कम मामलों में किसी अधिकारी को नौकरी खोनी पड़ती है।

हाल ही में एक राज्य सरकार ने तो अदालत में शपथ पत्र दायर करके कहा था कि यह नए-नए सेवारत होने वाले अधिकारियों को केवल परामर्श ही देगी कि भ्रष्टाचार के मामले में वे सावधानी बरतें। उन पर कोई कड़ी कार्रवाई करना उनके करियर को चौपट करने के तुल्य होगा। क्या जनता के पैसे की लूट का इससे अधिक बेशर्मी भरा कोई तरीका हो सकता है?

मजबूरियों की मारी जनता से धन ऐंठने के अलावा भी भ्रष्टाचारियों ने पैसा लूटने और सरकार से धोखाधड़ी करने के नए-नए तरीके खोज निकाले हैं। इस मामले में सबसे नई चालाकी है  उन कर्मचारियों का वेतन निकलवाना, जिनका कहीं अस्तित्व ही नहीं। दिल्ली सरकार की ऐन नाक के नीचे यह काम हो रहा है।

वर्ष 2009 में भी दिल्ली नगर निगम ने हाईकोर्ट को बताया था कि 5 वर्षों में इसे भूतहा कर्मचारियों के वेतन के रूप में 500 करोड़ रुपए का चूना लगा है। नवम्बर 2009 में एक मीडिया रिपोर्ट के कारण यह तथ्य जाहिर हुआ था। दिल्ली नगर निगम ने बताया कि इसकी पे-रोल पर माली, स्वीपर इत्यादि जैसे पदों पर 22853 बोगस कर्मचारी वेतन ले रहे हैं। इनका कोई अस्तित्व नहीं, लेकिन इनके नाम पर वेतन की निकासी हो रही है।

अपनी गलतियों से कोई भी सीखने का प्रयास नहीं करता। इसके बाद दिसम्बर 2013 में भी मुख्य विजीलैंस अधिकारी ने ए.सी.बी. के समक्ष शिकायत की थी कि दिल्ली नगर निगम ने 85 कर्मचारियों को स्थायी नौकरी दी है, जबकि उन्होंने निगम के लिए एक दिन भी काम नहीं किया। यह हेराफेरी निगम की इस स्कीम के बाद हुई थी कि 1994 से 2010 के बीच जिस किसी सफाई कर्मचारी ने एक दिन के लिए भी नौकरी की है, उसे पक्का कर दिया जाएगा।

हैरानी की बात तो यह है कि इतने भारी स्कैंडल में केवल एक सहायक सैनेटरी इंस्पैक्टर पर ही कार्रवाई की गई, जिस पर इन बोगस कर्मचारियों की हाजिरी लगाने का दोष था, जबकि अन्य कई अधिकारियों को मामूली सी कार्रवाई के बाद बख्श दिया गया।

डी.डी.ए. ने भी अगस्त 2014 में पहली बार जब खुलासा किया था कि इसके रजिस्टरों में 2200 भूतहा कर्मचारियों के नाम दर्ज हैं। बाद में इस आंकड़े को संशोधित करके 1600 कर दिया गया।

मर चुके और बोगस लोगों को सबसिडी देने के मामले में हरियाणा का तो कोई मुकाबला ही नहीं। मेवात जिले के ढाणा गांव के हाटी, इब्राहिम और हुरमत में से पहले दो की मौत 2001 में और तीसरे की मौत 2006 में हुई थी। लेकिन हरियाणा बागबानी विभाग के अनुसार उन्होंने 2011 में सबसिडी के लिए आवेदन किया था और राष्ट्रीय सूक्ष्म सिंचाई मिशन के अन्तर्गत उन्हें यह सबसिडी जारी की गई थी। इब्राहिम के बेटे जावेद ने खुद बताया कि जब वे सबसिडी लेने के लिए कार्यालय में गए तो यह सुनकर हैरान रह गए कि 1,48,000 रुपए की सबसिडी तो उनके पिता के नाम पर जारी की भी जा चुकी है। यह समस्या कमोबेश सभी राज्यों और सरकारी संगठनों में मौजूद है लेकिन प्राइवेट सैक्टर में ऐसी कोई शिकायत नहीं मिलती। वहां ऐसी शिकायत पाए जाने का अर्थ है नौकरी का समाप्त होना।

यह कोई ऐसी समस्या नहीं, जिसका हल न हो सके। यदि अधिकारी करना चाहें तो यह समस्या हल हो सकती है। कोई भी छलकपट सभी स्तरों पर नियोक्ताओं की मिलीभगत के बिना संभव नहीं होता। सभी कर्मचारियों का नाम-पता और उनके बैंक खातों के आधार पर ही वेतन जारी किया जाना चाहिए और इसका रिकार्ड सार्वजनिक रूप में तथा इंटरनैट पर उपलब्ध हो जिसे हर माह अपडेट किया जाए।


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