अमरीका की कभी हां कभी न में क्या फिलिस्तीन पर इसराईल का कब्जा होने ही वाला है?

punjabkesari.in Monday, May 13, 2024 - 05:16 AM (IST)

इसराईल द्वारा विश्व व्यापी विरोध के बावजूद गाजा पर ताबड़तोड़ हमलों से जान-माल की भारी हानि हो रही है। अभी गत 10 मई को ही इसराईल द्वारा दक्षिणी गाजा में राफा पर भीषण हमले के परिणामस्वरूप 1.10 लाख से अधिक लोग वहां से भागने के लिए विवश हो गए जबकि इस क्षेत्र में भोजन और ईंधन के रूप में राहत पहुंचाने की कार्रवाई न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुकी है। 

उल्लेखनीय है कि इसी वर्ष मार्च में अमरीका सरकार ने इसराईल-फिलिस्तीन टकराव समाप्त करने के लिए ‘टू नेशन सॉल्यूशन’ का सुझाव पेश किया था जिस पर राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी सहमति व्यक्त की थी, परंतु इसके मात्र एक महीने बाद ही जब संयुक्त राष्ट्र ने अपनी सभा में फिलिस्तीन को अलग देश मानने संबंधी प्रस्ताव पेश किया तो सभी सदस्य देशों ने इस प्रस्ताव को स्वीकार किया, परंतु अमरीका ने इसे वीटो कर दिया। राष्ट्रपति जो बाइडेन की यह बड़ी कठिन स्थिति है क्योंकि देश की आंतरिक राजनीति में पारंपरिक रूप से उनके सभी सांसद, चाहे वे डैमोक्रेटिक पार्टी से सम्बन्ध रखते हों या रिपब्लिकन पार्टी से, इसराईल की ओर हैं। 

वास्तव में फिलिस्तीन पर इसराईल के हमले को लेकर अमरीका की नीति कभी इधर तो कभी उधर वाली है और वे कोई स्पष्ट स्टैंड नहीं ले रहे। हालांकि अमरीका ने अब इसराईल को हथियार न भेजने की बात कही है, परंतु वास्तव में अमरीका द्वारा इसराईल को हथियार भेजे जा रहे हैं और उसकी सफाई में यह कहा जा रहा है कि कुछ ही हथियार भेज रहे हैं। जिस प्रकार फिलिस्तीन में इसराईल की सैन्य कार्रवाई के विरुद्ध अमरीका के विश्वविद्यालयों में आंदोलन चल रहे हैं और वहां अमरीका सरकार ने पुलिस भेज दी है, उससे अमरीकी युवाओं में इसराईली कार्रवाई के विरुद्ध व्याप्त रोष का अनुमान लगाया जा सकता है। 

परंतु चूंकि बाइडेन की नजर अमरीका में इसी वर्ष के अंत में होने वाले चुनावों पर है, वह यह कह कर इस संबंध में अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाडऩे की कोशिश कर रहे हैं कि इस समस्या का टू नेशन सॉल्यूशन देखना चाहिए अर्थात फिलिस्तीन अलग और इसराईल अलग देश हों, परंतु ऐसा होना अत्यंत कठिन प्रतीत होता है क्योंकि इसराईल इस पर सहमत नहीं होने वाला। इसका कारण यह है कि इसराईल ने अपनी बस्तियां हर जगह बना रखी हैं चाहे वह फिलिस्तीन का गाजा हो या वैस्ट बैंक इलाका ही क्यों न हो। जहां पहले ही उत्तर और मध्य गाजा का सारा इलाका तबाह हो चुका है, वहीं अब इसराईल ने दक्षिण गाजा को अपना निशाना बनाना शुरू कर रखा है और वह वहां से सभी फिलिस्तीनियों को भगा कर सारे इलाके को अपने साथ जोड़ लेना चाहता है। यह क्षेत्र इसराईल के अत्यंत निकट होने के कारण हो सकता है कि इसराईल टू नेशन सॉल्यूशन को स्वीकार न करे। इसराईल तो वन नेशन का सिद्धांत ही मानता आ रहा है और वन नेशन भी ऐसा, जिसमें सभी यहूदी हों। इस तरह के हालात के बीच दोनों पक्षों में बातचीत शुरू होना ही कठिन प्रतीत हो रहा है, जबकि इसराईल के नेता और इसकी बहुसंख्यक जनता फिलिस्तीन को एक देश का दर्जा देने के ही घोर विरुद्ध है।

उल्लेखनीय है कि इसराईल और अरब देशों के बीच जो इब्राहमिक समझौते हुए हैं, उनके अंतर्गत केवल सऊदी अरब ही बचा है, बाकी कतर, मिस्र आदि सबसे समझौते हो गए थे और अब अमरीका कोशिश कर रहा है कि सऊदी अरब के साथ भी समझौता हो जाए और शर्त यह लगाई गई है कि सऊदी अरब दो राष्टों का समर्थन करेगा, साथ ही इसराईल को मान्यता भी देगा। परंतु समस्या यह है कि चाहे सऊदी अरब और अन्य मुस्लिम देश मान भी जाएं, परंतु इसराईल टू नेशन सॉल्यूशन को स्वीकार नहीं करेगा। सबसे बड़ी बात तो यह है कि जब तक अमरीका या बाइडेन इसराईल पर किसी समझौते पर पहुंचने के लिए दबाव डालने का फैसला करेंगे, तब तक तो बहुत देर हो चुकी होगी या शायद अमरीका भी यही चाहता है कि उसे मुखर रूप से कोई फैसला न लेना पड़े। जिस प्रकार इसराईल उत्तर और मध्य गाजा को तबाह करके दक्षिण तक पहुंच गया है और अब दक्षिणी भाग में दो दिनों से जो हमले कर रहा है, उसके परिणामस्वरूप बहुत अधिक लोग तो पहले ही वहां से निकल कर भाग चुके हैं और यदि हमले न रुके तथा बाकी के लोग निकल गए तो क्रियात्मक रूप से यह क्षेत्र इसराईल का हो ही जाएगा। यह तो अब चंद दिनों की बात ही रह गई लगती है। 


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