‘प्रकृति से छेड़छाड़ का परिणाम’ ‘रहस्यमय रोगों के रूप में निकलने लगा’

punjabkesari.in Friday, Dec 11, 2020 - 02:08 AM (IST)

हिन्दू धर्म ग्रंथों में प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण के लिए प्रकृति पूजन का नियम बताया गया है तथा पेड़-पौधों, नदी-पर्वत, ग्रह-नक्षत्र, अग्नि और वायु सहित प्रकृति के विभिन्न रूपों के साथ मानवीय रिश्ते जोड़े गए हैं। यहां पेड़ की तुलना संतान से की गई है तो नदी और पृथ्वी को मां तथा ग्रह-नक्षत्र, पहाड़ एवं वायु को देव रूप माना गया है। इनकी हमें रक्षा करनी चाहिए परंतु हम अपने ही गलत कार्यों से प्रकृति से खिलवाड़ कर रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप न सिर्फ पर्यावरण बिगडऩे से तरह-तरह के प्राकृतिक प्रकोपों भूकम्पों, बेमौसमी वर्षा, बाढ़ों, आकाशीय बिजली गिरने तथा अन्य प्राकृतिक आपदाओं के चलते भारी विनाश हो रहा है बल्कि लोग गम्भीर बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। 

प्रकृति के इसी प्रकोप की ताजा मिसाल हाल ही में ‘आंध्र प्रदेश के एलुरु’ इलाके में 5 दिसम्बर रात से फैली रहस्यमय बीमारी के रूप में सामने आई जिसके परिणामस्वरूप अब तक इस रोग से 575 से अधिक लोग पीड़ित हो चुके हैं। इन लोगों को घबराहट, उल्टियां, अस्थायी स्मृति लोप, सिर तथा पीठ में दर्द शुरू हो गया। 

अचानक उन्हें 3 से 5 मिनट तक जारी रहने वाले मिर्गी जैसे दौरे पडऩे लगे और वे चक्कर आने से बेहोश होकर गिरने लगे।इस रहस्यमय रोग से मचे हड़कम्प के बीच इसके कारणों का पता लगाने के लिए राज्य में पहुंची ‘ऑल इंडिया इंस्टीच्यूट ऑफ  मैडीकल साइंसेज’ (एम्स) की टीम ने शुरुआती जांच में शहर में पीने के पानी और दूध में ‘निक्कल’(गिलट) और ‘सीसा’ (जस्ता) जैसे भारी तत्वों की मौजूदगी को इसका कारण बताया है। ‘एलुरु’ में ‘गोदावरी’ तथा ‘कृष्णा’ नदियों की नहरों से कारखानों, अस्पतालों, घरों आदि में पानी की सप्लाई की जाती है।

विशेषज्ञों के अनुसार कुछ क्षेत्रों में सप्लाई किए गए पानी में भारी मात्रा में कीटनाशकों के ‘अवशेषों’ की मौजूदगी का भी पता चला जो कहीं-कहीं  ‘जायज’ (परमिसिबल) मात्रा से हजारों गुणा अधिक है। इस रोग से पीड़ित लोगों के खून में भी भारी मात्रा में कीटनाशक पाए गए हैं। 

‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ की ओर से तैनात विशेषज्ञों के अलावा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की तीन सदस्यीय टीम ने 8 दिसम्बर को ‘एलुरु’ पहुंच कर नमूने लेने के लिए प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने के बाद बीमारी के कारणों के बारे मुख्यमंत्री वाई.एस. जगनमोहन रैड्डी को एक रिपोर्ट सौंपी है जिसके आधार पर मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को रोगियों के शरीर में भारी धातु तत्वों की मौजूदगी की गहन जांच का निर्देश दे दिया है।

डाक्टर यह भी मान रहे हैं कि कोविड की रोकथाम के लिए इस्तेमाल किया गया ब्लीच पाऊडर और सैनिटाइजर भी इसका एक कारण हो सकता है क्योंकि इसके तत्व पानी में घुले हुए हो सकते हैं जिससे यह समस्या पैदा हुई है। ‘एलुरु नगरपालिका’ के अधिकारियों के अनुसार किसानों द्वारा भारी मात्रा में अपनी फसलों में कीटनाशकों का इस्तेमाल करने के कारण संभवत: इस वर्ष राज्य में अक्तूबर-नवम्बर में भारी वर्षा के कारण आई बाढ़ के चलते खेतों से बहकर आया पानी अपने साथ कीटनाशक भी ले आया हो। जो भी हो, यह चाहे प्राकृतिक कारणों से हुआ हो अथवा मानवीय भूल से, दोनों ही स्थितियों में इसके कारणों का निवारण करना जरूरी है और यदि इसका कारण मानव का प्रकृति से छेड़छाड़ या शरारत करना पाया जाता है तो हमें और अधिक सतर्क होने और स्वयं में सुधार करने की जरूरत है। 

यह केवल किसी एक राज्य की बात नहीं, देश में बड़े पैमाने पर विभिन्न रूपों में प्रकृति व पर्यावरण से छेड़छाड़ जारी है। इसमें अधिक बच्चे पैदा करके जनसंख्या का संतुलन बिगाडऩा, अधिक उपज के लिए अंधाधुंध रासायनिक खादों व विषैले कीटनाशकों का प्रयोग, नदियों तथा अन्य जलस्रोतों में कल-कारखानों और चमड़ा रंगने वाली इकाइयों का जहरीला पानी छोडऩा, वनों का अंधाधुंध कटान तथा उन्हें आग लगाना आदि शामिल है। अत: विभिन्न आपदाओं के रूप में प्रकृति रह-रह कर मानव जाति को चेतावनी दे रही है कि ‘अभी भी मुझसे छेड़छाड़ करना बंद कर दो’ और संभल जाओ वर्ना मेरा इंतकाम पहले से भी अधिक भयानक और विनाशकारी होगा।-विजय कुमार 


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