खुशी की बजाय परेशानी बन रही गरीबों के बैंक खातों में ‘रुपयों की बारिश’

punjabkesari.in Thursday, Dec 29, 2016 - 12:19 AM (IST)

नोटबंदी लागू किए जाने के बाद एक ओर 49 दिनों से देश लाइन में लगा हुआ है तथा दूसरी ओर समाज विरोधी तत्वों व काले धन वालों द्वारा गरीबों के खातों में अपनी काली कमाई डाल कर सफेद करने की कोशिश की जा रही है। अनेक बैंकों के अधिकारियों और कर्मचारियों से सांठगांठ करके काले को सफेद करने का दुष्चक्र चल रहा है। यहीं पर बस नहीं, अज्ञात कारणों से बैंकों द्वारा जन-धन योजना तथा अन्य बचत खातों में भारी-भरकम राशियां क्रैडिट कर दिए जाने से कुछ लोगों के बैंक खातों में हो रही रुपयों की बारिश उनके लिए अनावश्यक परेशानी और सिरदर्दी का कारण बन गई है जिसके चंद उदाहरण निम्र हैं :

24 नवम्बर को आगरा का संदीप तिवारी जब ए.टी.एम. से पैसे निकालने गया तो बैलेंस स्लिप पर अपने खाते में 99 करोड़ 99 लाख 91 हजार 735 रुपए देख कर उसके होश उड़ गए क्योंकि वास्तव में उसके बैंक खाते में मात्र 8000 रुपए ही होने चाहिए थे।

03 दिसम्बर को उत्तर प्रदेश के एटा में तिरपाल सीने वाले कारीगर के जन-धन खाते में 3.72 करोड़ रुपए जमा हो जाने पर वह डर के मारे गायब हो गया तथा बैंक में भी हड़कंप मच गया। अब आयकर विभाग जांच कर रहा है कि उसके खाते में इतनी रकम कहां से आ गई।

09 दिसम्बर को उत्तर प्रदेश में लखीमपुर खीरी के ‘सुंदरवल’ में छोटा सा हेयर कटिंग सैलून चलाने वाले दिलशाद को मोबाइल पर बैंक से जब अपने खाते में 9 करोड़ 99 लाख 99,999 रुपए की रकम क्रैडिट होने का मैसेज आया तो वह खुश होने की बजाय परेशान हो गया।

09 दिसम्बर को ही जयपुर के राजकुमार के खाते में बैंक आफ बड़ौदा के कर्मचारियों ने उसके जमा करवाए हुए 48,000 रुपयों की एंट्री डालने की बजाय 4.80 करोड़ रुपए की एंट्री डाल दी।

हालांकि इसका पता चलते ही बैंक के कर्मचारियों ने गलती को सुधार दिया परंतु आयकर विभाग ने खाताधारी को नोटिस जारी कर दिया और बैंक द्वारा इस संबंध में लिख कर राजकुमार को ‘दोषमुक्त’ बताने के बाद भी आयकर अधिकारी उसे पूछताछ के लिए अपने साथ ले जाकर लगातार दो दिन पूछताछ करते रहे। इसके बाद वह डर के मारे गायब ही हो गया।

13 दिसम्बर को बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के मकरंदपुर गांव के दर्जी मोहम्मद अहमद की पत्नी सल्लो खातून स्टेट बैंक के अपने खाते में अचानक 88 लाख रुपए जमा हुए देख कर परेशान हो गई।

20 दिसम्बर को बिहार में छपरा के नेवारी गांव के विकास सिंह के खाते में मात्र 17,000 रुपए थे परंतु जब वह बैंक से 500 रुपए निकलवाने गया तो बैंक कर्मचारियों ने कहा ‘‘तुम्हारे खाते में 2 करोड़ 17000 रुपए जमा करवाए गए हैं, अत: तुम्हारा खाता ‘सीज’ कर दिया गया है।’’

26 दिसम्बर को मेरठ की शीतल के जन-धन खाते में 99 करोड़ 99 लाख रुपए आ गए। इस बारे महिला द्वारा बैंक अधिकारियों से गुहार लगाने पर कोई सुनवाई न हुई तो पीड़िता ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी तथा आयकर विभाग के अधिकारियों को सूचित किया कि जन-धन योजना के अंतर्गत भारतीय स्टेट बैंक में उसके खाते में तो मात्र 600 रुपए ही जमा थे।

एक ओर जहां अज्ञात लोगों द्वारा अपनी काली कमाई सफेद करने के लिए दूसरे लोगों के जन-धन खातों में भारी रकमें जमा करवाना सरकार और खाताधारियों के लिए सिरदर्द बना हुआ है, वहीं बैंक कर्मचारियों और अधिकारियों द्वारा अनेक खाताधारियों के खातों में की गई भारी रकमों की एंट्री खाताधारियों के लिए परेशानी का कारण बन रही है।

बैंक अधिकारियों का कहना है कि नोटबंदी के बाद रिजर्व बैंक ने सभी बैंकों को अलग-अलग साफ्टवेयर दे रखा है जिस कारण ही यह हो रहा है परंतु ऐसा कह कर वे अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकते और यदि इसके लिए तकनीकी कारण जिम्मेदार हैं तो उन्हें तुरंत दूर करने की जरूरत है।

ये घटनाएं आम लोगों की समस्याओं के प्रति संबंधित अधिकारियों की उदासीनता ही जाहिर करती हैं तथा लोगों को उस ‘अपराध’ का दंड भुगतना पड़ रहा है जो उन्होंने किया ही नहीं है।      —विजय कुमार 


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