ग्रेट व्यापमं स्कैम: घोटाले से बड़े हो रहे मौतों के रहस्य

punjabkesari.in Thursday, Jul 27, 2017 - 04:56 PM (IST)

नई दिल्ली: व्यापमं महाघोटाले के एक और आरोपी प्रवीन यादव ने बुधवार को आत्महत्या कर ली। अब तक इस मामले में कई मौतें हो चुकी हैं और कई आत्महत्याएं। व्यापमं घोटाला मध्यप्रदेश से जुड़ा प्रवेश एवं भर्ती घोटाला है। मध्यप्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल अथवा व्यापमं (व्यावसायिक परीक्षा मंडल) सरकार द्वारा गठित स्व-वित्त पोषित एवं स्वायत्त निकाय है। यह निकाय राज्य में कई प्रवेश परीक्षाओं का संचालन करता है। ये प्रवेश परीक्षाएं शैक्षिक संस्थानों तथा सरकारी नौकरियों में भर्ती के लिए आयोजित की जाती हैं। इन प्रवेश परीक्षाओं  तथा नौकरियों में अपात्र उम्मीदवारों को बिचौलियों की मिलीभगत से प्रवेश दिया गया और बड़े पैमाने पर अयोग्य लोगों की भॢतयां की गईं। मामला उजागर होने के बाद अब तक 2000 के करीब गिरफ्तारियां हो चुकी हैं। इस केस में 49 के करीब मौतें हो चुकी हैं, जिनमें से कई मौतों को संदिग्ध परिस्थितियों में हुईं माना जाता है। यह घोटाले से भी बड़ा मौतों का रहस्य बनता जा रहा है।  

जगदीश सागर के रैकेट के जरिए होता था सारा घोटाला       
2013 में व्यापमं घोटाले की व्यापकता सामने आने और 20 नकली अभ्यॢथयों की गिरफ्तारी के बाद जगदीश सागर का नाम घोटाले के मुखिया के रूप में सामने आया जो एक संगठित रैकेट के माध्यम से इस घोटाले को अंजाम दे रहा था। जगदीश सागर की गिरफ्तारी के बाद राज्य सरकार ने 26 अगस्त, 2013 को एस.टी.एफ. की स्थापना की। जांच और गिरफ्तारियों से कई नेताओं, नौकरशाहों, व्यापमं अधिकारियों, बिचौलियों, उम्मीदवारों और उनके माता-पिता की घोटाले में भागीदारी का पर्दाफाश हुआ। जून, 2015 तक 2000 से अधिक लोगों को इस घोटाले के सिलसिले में गिरफ्तार किया जा चुका है, जिनमें राज्य के पूर्व शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा और 100 से ज्यादा राजनेता भी शामिल हैं। 

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बचाने का आरोप, मामला खारिज
2014 में प्रशांत पांडे जिन्हें एस.टी.एफ. द्वारा आई.टी. सलाहकार के रूप में रखा गया था, को व्यापमं अभियुक्त को ब्लैकमेल करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। बाद में पांडे ने कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह से संपर्क किया और उसे इस घोटाले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की संदिग्ध भूमिका उजागर करने के कारण प्रताडि़त करने का आरोप लगाया। इसके बाद दिग्विजय सिंह ने शपथपत्र के माध्यम से जांचकत्र्ताओं पर मुख्यमंत्री को बचाने का आरोप लगाया। एस.टी.एफ. ने सिंह की शिकायत का संज्ञान लिया और फोरैंसिक विश्लेषण के लिए एक्सैल शीट के दोनों संस्करणों को फोरैंसिक प्रयोगशाला भेज दिया। फोरैंसिक प्रयोगशाला की रिपोर्ट के आधार पर सिंह द्वारा प्रस्तुत वाद को उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति खानवलकर ने खारिज कर दिया।

घोटाले से जुड़े लोगों की मौतें
इस घोटाले से जुड़े कई लोगोंं की जांच के दौरान संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो चुकी है। 2015 में विशेष कार्य बल (एस.टी.एफ.) ने घोटाले से जुड़े लोगों की मौत को अप्राकृतिक मानते हुए 23 मृतकों की सूची उच्च न्यायालय में प्रस्तुत की और बताया कि अधिकांश की मौत जुलाई, 2013 में एस.टी.एफ. के गठन से पहले हो गई है। कुछ मीडिया रिपोट्र्स का दावा है कि घोटाले से जुड़े 49 से अधिक लोगों की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हुई है। मुखबिर आनंद राय के अनुसार इन मौतों में से 10 संदेहास्पद मौतें हैं जबकि अन्य को उन्होंने संयोग माना। उसके द्वारा संदिग्ध के रूप में होने वाली मौतों में अक्षय सिंह, नम्रता डामोर, नरेंद्र तोमर, डी.के. साकल्ले,  अरुण शर्मा, राजेंद्र आर्य की मौत हो चुकी है और 4 बिचौलियों की सड़क दुर्घटनाओं में हुई मौतें शामिल हैं। एस.टी.एफ. के अनुसार घोटाले में शामिल 25-30 वर्ष आयुवर्ग के 32 लोगों की 2012 से अब तक संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो चुकी है।

आरोपों में फंसे व्यापमं कर्मचारी पंकज त्रिवेदी, व्यापमं परीक्षा नियंत्रक
त्रिवेदी को सितंबर 2013 में गिरफ्तार किया गया। राज्य प्तकी भ्रष्टाचार निरोधक पुलिस ने उसके कब्जे से करीब 2.5 करोड़ रुपए और अज्ञात स्रोतों से जमा की गई बेनामी सम्पत्तियां जब्त कीं जो उसकी आय से कई गुना अधिक हैं। इंदौर स्थित एक मैडीकल कालेज में भी उसकी भागीदारी होने के साक्ष्य पाए गए हैं। जगदीश सागर के रैकेट का पर्दाफाश होने के बाद भी त्रिवेदी सागर के 317 उम्मीदवारों को शपथ पत्र प्रस्तुत करने पर मैडीकल पाठ्यक्रमों में प्रवेश पाने के लिए अनुमति देने संबंधी आदेश प्राप्त करने में कामयाब रहा। अन्य कर्मचारी सी.के. मिश्रा (अधिकारी व्यापमं), नितिन महेन्द्रा (प्रधान सिस्टम विश्लेषक) और अजय सेन (वरिष्ठ सिस्टम विश्लेषक), डा. जी.एस. खनूजा, मोहित चौधरी, नरेन्द्र देव आजाद (जाटव), डा. विनोद भंडारी, अनिमेष आकाश सिंह और जितेंद्र मालवीय।

डा.सागर के अलावा रैकेट के मुख्य सूत्रधार
व्यापमं घोटाले में कई संगठित रैकेट शामिल हैं जिन्हें पी.एम.टी. घोटाले के सूत्रधार के रूप में वॢणत किया गया है। ये गिरोह डा. जगदीश सागर, डा. संजीव शिल्पकार और संजय गुप्ता आदि के नेतृत्व में काम करते थे। पी.एम.टी. 2013 के लिए डा. सागर ने 317, शिल्पकार ने 92 और संजय गुप्ता ने 48 अयोग्य उम्मीदवारों के नाम प्रवेश हेतु दिए थे। नितिन महेन्द्रा ने अपने कम्प्यूटर में इन उम्मीदवारों का विवरण दर्ज किया और बाद में इस सूची को नष्ट कर दिया था। इन उम्मीदवारों को रोल नंबर आबंटित करते समय उनके आसपास के स्लॉट्स खाली छोड़ दिए गए। ये रोल नंबर बाद में नकली उम्मीदवारों को आबंटित कर दिए गए। इन रोल नंबर्स का निर्धारण महेन्द्रा के घर पर किया जाता था और पैन ड्राइव के माध्यम से दफ्तर के कम्प्यूटर में फीड कर दिया जाता था। इसके बाद महेन्द्रा बिचौलियों को टैलीफोन के माध्यम से रोल नम्बर्स के संबंध में आवश्यक जानकारी उपलब्ध करवाता था।


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