इन मायावी राक्षसों की रामायण में रही खास भूमिका

punjabkesari.in Wednesday, Mar 14, 2018 - 04:22 PM (IST)

प्राचीन काल में कई मायावी राक्षस हुए, जिन्होंने समय-समय में अपनी खास भूमिका निभाई। उनमें से कुछ ने रामायण में अपना योगदान दिया। इन राक्ष्सों का वर्णन वाल्मीकि द्वारा रचित ग्रंथ रामायण में और रामचरित मानस में भी पढ़ने को मिलता है। आईए जाने इनके बारें, कौन थे यह राक्ष्स-


रावण 
रावण ने लंका को नए सिरे से बसाकर राक्षस जाति को एकजुट किया और फिर से राक्षस राज कायम किया। उसने लंका को कुबेर से छीना था। उसे मायावी इसलिए कहा जाता था कि वह इंद्रजाल, तंत्र, सम्मोहन और तरह-तरह के जादू जानता था। उसके पास एक ऐसा विमान था, जो अन्य किसी के पास नहीं था। इस सभी के कारण सभी उससे भयभीत रहते थे।

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कालनेमि
कालनेमि राक्षस रावण का विश्वस्त अनुचर था। यह भयंकर मायावी और क्रूर था। इसकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक थी। रावण ने इसे एक बहुत ही कठिन काम सौंप दिया था। जब राम-रावण युद्ध में लक्ष्मण को शक्ति लगने से वे बेहोश हो गए थे, तब हनुमान को तुरंत ही संजीवनी लाने का कहा गया था। हनुमानजी जब द्रोणाचल की ओर चले तो रावण ने उनके मार्ग में विघ्न पैदा करने के लिए कालनेमि को भेजा। कालनेमि ने अपनी माया से तालाब, मंदिर और सुंदर बगीचा बनाया और वह वहीं एक ऋषि का वेश धारण कर मार्ग में बैठ गया। हनुमानजी उस स्थान को देखकर वहां जलपान के लिए रुकने का मन बनाकर जैसे ही तालाब में उतरे तो तालाब में प्रवेश करते ही एक मगरी ने उसी समय हनुमानजी का पैर पकड़ लिया। हनुमानजी ने उसे मार डाला। फिर उन्होंने अपनी पूंछ से कालनेमि को जकड़कर उसका वध कर दिया।

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ताड़का
ताड़का के पिता का नाम सुकेतु यक्ष और पति का नाम सुन्द था। सुन्द एक राक्षस था इसलिए यक्ष होते हुए भी ताड़का राक्षस कहलाई। अगस्त्य मुनि के शाप के चलते इसका सुंदर चेहरा कुरूप हो गया था इसलिए उसने ऋषियों से बदला लेने की ठानी थी। वह आए दिन अपने पुत्रों के साथ मुनियों को सताती रहती थी। अयोध्या के पास स्थित सुंदर वन में अपने पति और दो पुत्रों सुबाहु और मारीच के साथ रहती थी। उसी वन में विश्वामित्र सहित अनेक ऋषि-मुनि तपस्या करते थे। ये सभी राक्षसगण हमेशा उनकी तपस्या में बाधाएं खड़ी करते थे। विश्वामित्र एक यज्ञ के दौरान राजा दशरथ से अनुरोध कर एक दिन राम और लक्ष्मण को अपने साथ सुंदर वन ले गए। राम ने ताड़का का और विश्वामित्र के यज्ञ की पूर्णाहूति के दिन सुबाहु का भी वध कर दिया था। राम के बाण से मारीच आहत होकर दूर दक्षिण में समुद्र तट पर जा गिरा।

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मारीच
राम के तीर से बचने के बाद ताड़का पुत्र मारीच ने रावण की शरण ली। मारीच लंका के राजा रावण का मामा था। जब शूर्पणखा ने रावण को अपने अपमान की कथा सुनाई तो रावण ने सीताहरण की योजना बनाई। देवी सीता का हरण करन के लिए रावण से मारीच के कहां कि तुम एक सुंदर हिरण का रूप धारण कर लो, जिसके सींग रत्नमय प्रतीत हो। शरीर भी चित्र-विचित्र रत्नों वाला ही प्रतीत हो। ऐसा रूप बनाओ कि सीता मोहित हो जाए। अगर वे मोहित हो गईं तो जरूर वो राम को तुम्हें पकड़ने भेजेंगी। इस दौरान मैं उसे हरकर ले जाऊंगा। मारीच ने रावण के कहे अनुसार ही कार्य किया और रावण अपनी योजना में सफल रहा। इधर राम के बाण से मारीच मारा गया।

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कुंभकर्ण
 यह रावण का भाई था, जो 6 महीने बाद 1 दिन जागता और भोजन करके फिर सो जाता, क्योंकि इसने ब्रह्माजी से निद्रासन का वरदान मांग लिया था। युद्ध के दौरान किसी तरह कुंभकर्ण को जगाया गया। कुंभकर्ण ने युद्ध में अपने विशाल शरीर से वानरों पर प्रहार करना शुरू कर दिया इससे राम की सेना में हाहाकार मच गया। सेना का मनोबल बढ़ाने के लिए राम ने कुंभकर्ण को युद्ध के लिए ललकारा और भगवान राम के हाथों कुंभकर्ण वीरगति को प्राप्त हुआ।

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