भारत लड़ाकू विमानों के इंजन बनाने में चीन, अमेरिका और रूस से क्यों है पीछे?
punjabkesari.in Thursday, May 22, 2025 - 04:11 PM (IST)

नेशनल डेस्क: लड़ाकू विमान यानी फाइटर जेट की असली ताकत उसके इंजन में होती है. यही इंजन तय करता है कि कोई विमान कितनी ऊँचाई तक जा सकता है, कितनी रफ्तार पकड़ सकता है और दुश्मन की पकड़ से कैसे बच सकता है. लेकिन इस तकनीक को विकसित करना दुनिया के सबसे मुश्किल और महंगे कामों में से एक है. अमेरिका रूस फ्रांस और अब चीन इस क्षेत्र में बहुत आगे निकल चुके हैं लेकिन भारत अभी भी इस होड़ में काफी पीछे है.
भारत का कावेरी इंजन प्रोजेक्ट क्यों नहीं चल पाया?
भारत ने 1986 में अपने पहले स्वदेशी लड़ाकू विमान इंजन ‘कावेरी प्रोजेक्ट’ की शुरुआत की थी. लेकिन ये प्रोजेक्ट कई तकनीकी और वित्तीय कारणों से कभी अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच सका. इंजन में बार-बार कंप्रेशर की गड़बड़ी, थ्रस्ट की कमी और जरूरत से ज्यादा तापमान जैसी दिक्कतें सामने आईं. इसके अलावा प्रोजेक्ट को उतना फंड और तकनीकी समर्थन नहीं मिला जितना इसकी जरूरत थी. अब ये माना जा रहा है कि इसी इंजन का इस्तेमाल ड्रोन और मानव रहित विमानों (UAVs) में किया जा सकता है.
चीन ने कैसे हासिल की ये जटिल तकनीक?
चीन ने इस क्षेत्र में अरबों डॉलर का निवेश किया. वह रूस और अमेरिका की तकनीक को रिवर्स इंजीनियरिंग और साइबर जासूसी के ज़रिए हासिल करता रहा. चीन ने अपनी कोशिशों में निरंतरता बनाए रखी और आज वह WS-10 इंजन बड़े स्तर पर बना रहा है. यह इंजन चीन के J-10, J-11 और J-16 जैसे जेट्स में लगाया जा रहा है. इसके अलावा WS-15 इंजन को चीन J-20 स्टील्थ फाइटर के लिए तैयार कर रहा है.
भारत अब फ्रांस के साथ बढ़ा रहा है कदम
हाल के वर्षों में भारत ने फ्रांस के साथ मिलकर नई इंजन तकनीक पर काम शुरू किया है. भारत का AMCA प्रोजेक्ट (एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट) इसी दिशा में एक बड़ा कदम है. अगर फ्रांस से तकनीकी साझेदारी सही दिशा में बढ़ती है तो भारत भी 2035 तक अपने आधुनिक इंजन बना सकता है. लेकिन इसके लिए भारत को भारी निवेश करना होगा और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर भी तेजी लानी होगी.
भारत कितने साल पीछे है?
तकनीकी जानकारों का मानना है कि भारत अभी चीन से कम से कम 10 से 15 साल पीछे है. वहीं अमेरिका और रूस जैसे देशों की बात करें तो वह एक सदी से इस क्षेत्र में रिसर्च कर रहे हैं. हालांकि फ्रांस अमेरिका और रूस जैसे सहयोगी देशों के समर्थन से भारत इस अंतर को तेजी से कम कर सकता है.