आखिर NATO किस बला का नाम है? क्यों हर बार होती है इस संगठन की चर्चा, जानिए

punjabkesari.in Thursday, Jul 17, 2025 - 04:11 PM (IST)

इंटरनेशनल डेस्क : दुनिया का सबसे बड़ा सैन्य संगठन नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (NATO) एक बार फिर चर्चा में है। NATO प्रमुख मार्क रुटे ने हाल ही में भारत, चीन और ब्राजील को रूस से तेल और गैस का व्यापार जारी रखने पर "100% सख्त सजा" की चेतावनी दी है। इस बयान ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हलचल मचा दी है और एक बड़ा सवाल खड़ा किया है। आखिर NATO जैसे सैन्य संगठन को भारत की व्यापार नीति में हस्तक्षेप करने का क्या अधिकार है?

भारत का NATO से कोई संबंध नहीं है। ऐसे में NATO की ओर से ऐसी धमकी दिए जाने पर यह आशंका भी जताई जा रही है कि क्या यह बयान किसी राजनीतिक दबाव, खासकर डोनाल्ड ट्रंप के प्रभाव, में तो नहीं दिया गया?

क्या है NATO और कब हुआ गठन?
NATO की स्थापना 4 अप्रैल 1949 को अमेरिका के वॉशिंगटन डीसी में हुई थी। इसका उद्देश्य था पश्चिमी यूरोप को सोवियत संघ के प्रभाव से बचाना। संगठन की नींव अमेरिका, कनाडा और 10 यूरोपीय देशों ने मिलकर रखी थी। फिलहाल NATO में कुल 30 सदस्य देश हैं और इसका मुख्यालय ब्रुसेल्स, बेल्जियम में स्थित है।

NATO का मुख्य कार्य क्या है?
NATO एक सामूहिक रक्षा संगठन है। इसका मतलब है कि यदि संगठन के किसी एक सदस्य देश पर हमला होता है, तो यह माना जाता है कि सभी 30 देशों पर हमला हुआ है। NATO ऐसे मामलों में कूटनीतिक समाधान को प्राथमिकता देता है, लेकिन जरूरत पड़ने पर यह सैन्य कार्रवाई से भी पीछे नहीं हटता।

आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया का 70% से अधिक सैन्य खर्च NATO के सदस्य देशों द्वारा किया जाता है। इसमें अमेरिका की हिस्सेदारी सबसे अधिक है, जो इसे संगठन का सबसे प्रभावशाली सदस्य बनाता है।

भारत क्यों नहीं है NATO का हिस्सा?
भारत NATO का सदस्य नहीं है और न ही इस संगठन से उसका कोई सीधा संबंध है। वास्तव में, NATO में एशिया के किसी भी देश को शामिल नहीं किया गया है। भारत को अतीत में NATO से जुड़ने के लिए कई बार अनौपचारिक प्रस्ताव मिले, लेकिन भारत ने हर बार कूटनीतिक संतुलन के चलते इसे ठुकरा दिया।भारत की विदेश नीति गुटनिरपेक्षता और रणनीतिक स्वायत्तता पर आधारित है, और इसी कारण भारत NATO जैसे पश्चिमी सैन्य गठबंधन का हिस्सा नहीं बनना चाहता।

NATO की धमकी पर उठे सवाल
NATO प्रमुख मार्क रुटे के ताजा बयान पर कई राजनयिक और रणनीतिक विशेषज्ञों ने सवाल खड़े किए हैं। उनका कहना है कि NATO का काम सैन्य सहयोग तक सीमित है और इसे व्यापार या ऊर्जा नीतियों में दखल देने का अधिकार नहीं है। रूस से तेल और गैस खरीदने पर भारत को दंडित करने की बात करना न सिर्फ भारत की संप्रभुता का उल्लंघन है, बल्कि यह वैश्विक कूटनीतिक मर्यादाओं के खिलाफ भी है।


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Content Editor

Shubham Anand

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