अगर बिगड़ रहे हैं बनते हुए काम तो समझ लें शनि कर रहे हैं परेशान

punjabkesari.in Friday, Nov 27, 2015 - 03:35 PM (IST)

जब किसी व्यक्ति पर शनि का प्रभाव पड़ता है तो व्यक्ति बहुत ज़्यादा परेशान हो जाता है। सर्वप्रथम शनि दुष्प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर विभिन्न प्रकार से प्रभाव डालता है। बनते हुए काम बिगड़ जाना, हर काम में नुकसान पहुंचना, जीवन के हर क्षेत्र में असफलता मिलना या अनिष्ट होना। 
 
शनि अपनी तीसरी, सातवीं व दसवीं दृष्टि कुंडली में विभिन्न भावों पर असर डालता है। इसके अलावा शनि अपनी महादशा व अंतर्दशा आदि से व्यक्ति का जीवन झंझोड़ देता है। इसके अलावा जन्मराशि से शनि विभिन्न स्थानों पर गोचर करता हुआ कभी साढ़ेसाती या ढैया के रूप में व्यक्ति पर कंटक का प्रभाव डालता है। 
 
शास्त्रनुसार शनि की साढ़ेसाती व ढैया लगना, यह तभी फलीभूत होते हैं जब शनि की महादशा या अंतर्दशा चल रही हो अथवा जब शनि कुण्डली में खराब भावों का सूचक हो। अगर यह अशुभ नहीं है या दशा नहीं चल रही हो तो शनि व्यक्ति को हानि नहीं देता है। शनि का कार्य मात्र अनुचित व पाप कर्म का फल अपनी दशा व गोचर के दौरान देना है।
 
अब प्रश्न यह है की शनि व्यक्ति पर कब दुष्प्रभाव डालेगा। शनि के प्रभाव जाने हेतु सर्वप्रथम व्यक्ति पर चल रही दशा का ज्ञान ज़रूरी है। जिस ग्रह की दशा चल रही हो, वह कुंडली में कहां स्थित है। इसके अलावा यह देखा जाता है की शनि कौन से भावों का स्वामी है व किस भाव पर शनि का प्रभाव है जिससे व्यक्ति प्रभावित होगा तथा शनि किस राशि में गोचर कर रहा है। इसके अलावा यह देखा जाता है की शनि की कौन सी दृष्टि उन भावों पर या स्वामी ग्रह पर पड़ रही है। यही दृष्टि उस दशा के मिलने वाले फल को प्रभावित करती है। शनि का प्रभाव जानने हेतु चंद्र गोचर भी देखा जाता है व यह ज्ञात किया जाता है की क्या है जन्म कुंडली में चंद्र किस भाव का स्वामी है। चंद्र कुंडली में शुभ भावों से संबंध रखता है या अशुभ भावों के साथ है। कुंडली में चंद्र किस राशि में है तथा शनि किस अंश पर है, कौन सा नक्षत्र है, उस नक्षत्र का स्वामी ग्रह कौन है, स्वामी ग्रह किस भाव का स्वामी है। चंद्र व शनि के अंशों का व्यक्ति के जीवन व मनोदशा पर गहरा असर पड़ता है।
 
शनि जितना कष्ट और हानि देता है, उतना ही लाभ, यश और सम्मान भी देता है, यह सभी कुंडली में चंद्र और शनि की स्थिति और बल पर निर्भर करता है। शनि ब्रह्म ज्ञान व न्याय का स्वामी है। किसी भी जगह को शुष्क और स्वादहीन कर देना शनि का खास गुण है। शनि का बुध से संबंध होने से बेईमानी अवश्य करवाता है। शनि की मंगल, राहु और सूर्य से युति तथा अष्टमेश से संबंध होने पर मारकेश का रूप बना लेता है। चतुर्थ भाव का शनि व्यक्ति को पुराने मकान में निवास करवाता है अगर नया मकान खरीदा भी गया तो उसमें निवास नहीं हो पाता है। शनि शुक्र की दशाओं में किसी परस्त्री या परपुरुष से धन दिलाता है। पंचम शनि संतान कष्ट व दिवालिया योग देता है। छठा शनि व्यक्ति को हठी, निरोगी, शत्रुओं पर विजय व ज़मीन जायदाद दिलाता है। सप्तम का शनि व्यक्ति को झगड़ालू, रोगी, समाज से तिरस्कृत, व व्यभिचारी बनाता है। अष्टम का शनि व्यक्ति को धन नाश, रोगी बनाता है तथा अष्टम में शनि-मंगल की युति पर गुप्त रोग भी देता है। 
 
नवम का शनि उच्च स्थिति में व्यक्ति को देवतुल्य बनाता है। नवम का बलहीन शनि पिता हेतु अरिष्ट देता है। नवां में शुभ शनि की दशा में सरकार से धन दिलवाता है। दशम शनि अपने नवांश में हो तो लक्ष्मी योग होता है। शनि वृष लग्न में दशम या एकादश में हो तो पूर्ण लक्ष्मी योग बनता है। शनि शुक्र की युति चतुर्थ में होने पर व्यक्ति को मित्रों से धन प्राप्त होता है। दशम में होने पर वैभवशाली बनाता है। शनि व चंद्र की एक दूसरे पर दृष्ट होने पर व्यक्ति उच्चकोटि का संत होता है। मेष, मिथुन, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु व मीन का शनि कुंडली में हो तो व्यक्ति को किसी खास विषय पर महारत हासिल होती है। साढ़ेसाती के दौरान अगर किसी भी व्यक्ति की जन्कुंडली में चंद्र पूर्ण बली, उच्च राशि में हो या स्वराशि का हो तो शनि के अशुभ प्रभावों को चंद्र कम कर देता है। चंद्रमा के निर्बल होने या शत्रु की राशि या नीचस्थ राशि होने पर शनि की अशुभता में वृद्धि करता है तथा व्यक्ति को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है और व्यक्ति मानसिक तनाव में रहता है।
 
आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com

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