धन, सुख और वैभव होते हुए भी मन रहता है परेशान तो पढ़ें...

punjabkesari.in Tuesday, Sep 08, 2015 - 08:47 AM (IST)

चंदनपुर का राजा बड़ा प्रतापी था, दूर-दूर तक उसकी समृद्धि की चर्चाएं होती थीं, उसके महल में हर एक सुख-सुविधा की वस्तु उपलब्ध थी पर फिर भी अंदर से उसका मन अशांत रहता था।  एक दिन वेश बदल कर राजा अपने राज्य की सैर पर निकला। घूमते- घूमते वह एक खेत के निकट से गुजरा। तभी उसकी नजर एक किसान पर पड़ी। किसान ने फटे-पुराने वस्त्र धारण कर रखे थे और वह पेड़ की छांव में बैठ कर भोजन कर रहा था। किसान के वस्त्र देख राजा के मन में आया कि वह किसान को कुछ स्वर्ण मुद्राएं दे दे ताकि उसके जीवन में कुछ खुशियां आ पाएं। राजा किसान के समुख जा कर बोला-‘‘मैं एक राहगीर हूं, मुझे तुहारे खेत पर ये 4 स्वर्ण मुद्राएं गिरी मिलीं, चूंकि यह खेत तुहारा है इसलिए ये मुद्राएं तुम ही रख लो।’’

किसान, ‘‘न-न सेठ जी ,ये मुद्राएं मेरी नहीं हैं, इन्हें आप ही रखें या किसी और को दान कर दें, मुझे इनकी कोई आवश्यकता नहीं।’’ 

किसान की यह प्रतिक्रिया राजा को बड़ी अजीब लगी, वह बोला-‘‘धन की आवश्यकता किसे नहीं होती भला आप लक्ष्मी को न कैसे कर सकते हैं ?’’ 

सेठ जी, मैं रोज 4 आने कमा लेता हूं और उतने में ही प्रसन्न रहता हूं, किसान बोला। वह भी बेकार की बहस में नहीं पडऩा चाहता था उसने आगे बढ़ते हुए उत्तर दिया, इन चार आनों में से एक मैं कुएं में डाल देता हूं, दूसरे से कर्ज चुका देता हूं, तीसरा उधार में दे देता हूं और चौथा मिट्टी में गाड़ देता हूं।’’

राजा ने अगले दिन ही सभा बुलाई और पूरे दरबार में कल की घटना कह सुनाई और सबसे किसान के उस कथन का अर्थ पूछने लगा। दरबारियों ने अपने-अपने तर्क पेश किए पर कोई भी राजा को संतुष्ट नहीं कर पाया, अंत में किसान को ही दरबार में बुलाने का निर्णय लिया गया। बहुत खोज-बीन के बाद किसान मिल गया। राजा ने किसान को उस दिन अपने वेश बदल कर भ्रमण करने के बारे में बताया। 

‘‘मैं तुहारे उत्तर से प्रभावित हूं और तुहारे चार आने का हिसाब जानना चाहता हूं, बताओ, तुम अपने कमाए चार आने किस तरह खर्च करते हो जो तुम इतना प्रसन्न और संतुष्ट रह पाते हो ?’’ राजा ने प्रश्न किया।

किसान बोला, ‘‘हुजूर, मैं एक आना कुएं में डाल देता हूं, यानी अपने परिवार के भरण-पोषण में लगा देता हूं, दूसरे से मैं कर्ज चुकाता हूं, यानी इसे मैं अपने वृद्ध मां-बाप की सेवा में लगा देता हूं, तीसरा मैं उधार दे देता हूं, यानी अपने बच्चों की शिक्षा-दीक्षा में लगा देता हूं और चौथा मैं मिट्टी में गाड़ देता हूं, यानी मैं एक पैसे की बचत कर लेता हूं ताकि समय आने पर मुझे किसी से मांगना न पड़े और मैं इसे धार्मिक, सामाजिक या अन्य आवश्यक कार्यों में लगा सकूं।’’ 

राजा को अब किसान की बात समझ आ चुकी थी। राजा की समस्या का समाधान हो चुका था, वह जान चुका था कि यदि उसे प्रसन्न एवं संतुष्ट रहना है तो उसे भी अपने अर्जित किए धन का सही-सही उपयोग करना होगा।


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