तो इस कारण सुदामा को भोगनी पड़ी गरीबी

punjabkesari.in Thursday, Jan 17, 2019 - 04:07 PM (IST)

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कृष्ण और सुदामा की दोस्ती से तो सब वाकिफ ही होंगे। अगर किसी को कभी दोस्ती की मिसाल देनी हो तो सबसे पहला नाम कृष्ण सुदामा का ही आता है। कृष्ण का जन्म एक संपन्न परिवार में हुआ था और वही सुदाम एक गरीब ब्राह्मण थे। दोनों में जमीन आसमान का फर्क हुआ करता था। लेकिन फिर भी दोनों की दोस्ती की मिसालें आज भी दी जाती हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि सुदाम भी एक समय में बहुत अमीर हुआ करते थे। लेकिन क्या किसी को पता है कि सुदामा गरीब कैसे हुए। क्या थी इसकी पीछे की वजह। तो चलिए आज जानते इसके पीछे की एक पौराणिक कथा के बारे में- 
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पौराणिक कथा के अनुसार एक ब्राह्मणी थी जो बहुत गरीब निर्धन थी। भिक्षा मांग कर जीवन व्यतीत करती थी। एक समय ऐसा आया कि पांच दिन तक उसे भिक्षा नहीं मिली वह प्रतिदिन पानी पीकर भगवान का नाम लेकर सो जाती थी। छठवें दिन उसे भिक्षा में दो मुट्ठी चना मिले। कुटिया पे पहुंचते-पहुंचते रात हो गई। ब्राह्मणी ने सोचा अब ये चने रात मे नहीं खाऊंगी सुबह भगवान को भोग लगाकर फिर खाऊंगी। यह सोचकर ब्राह्मणी चनों को कपड़े में बांधकर रख दिया और वासुदेव का नाम जपते-जपते सो गई।
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लेकिन कुछ समय बाद कुछ चोर चोरी करने के लिए उसकी कुटिया मे आ गए। इधर-उधर बहुत ढूंढा चोरों को कुछ नहीं मिला लेकिन वे चनों की बंधी पोटली चुराकर ले गए। क्योंकि उनको उस पोटला में सोने के सिक्के लगे। इतने में ब्राह्मणी जाग गई और शोर मचाने लगी। गांव के सारे लोग चोरों को पकडने के लिए दौड़े। चोर वे पोटली लेकर भागे। पकड़े जाने के डर से सारे चोर संदीपन मुनि के आश्रम में छिप गए, जहां भगवान श्री कृष्ण और सुदामा शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। 
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कुछ समय बाद चोर उस आश्रम से भई भाग गए लेकिन वे चनों की पाटली वहीं पर भूल गए। इधर भूख से व्याकुल ब्राह्मणी ने श्राप दे दिया कि,  मुझ दीनहीन असहारा के जो भी चने खाएगा वह दरिद्र हो जाएगा। प्रात:काल गुरु माता आश्रम में झाड़ू लगाने लगी और उसे वही चने की पोटली मिली। गुरु माता ने पोटली खोल के देखी तो उसमें चने थे। सुदामा और कृष्ण भगवान जंगल से लकड़ी लाने जा रहे थे। तो गुरु माता ने वह चने की पोटली सुदामा को दी और कहा बेटा कि भूख लगे तो खा लेना।

सुदामा तो जन्मजात से ही ब्रह्मज्ञानी थे। ज्यों ही चने की पोटली सुदामा ने अपने हाथ में ली त्यों ही उन्हें सारा रहस्य मालुम हो गया। सुदामा जी ने सोचा गुरु माता ने कहा है यह चने दोनों लोग बराबर बांट के खाना। लेकिन ये चने अगर मैंने श्री कृष्ण को खिला दिए तो सारी सृष्टि दरिद्र हो जाएगी। मैं ऐसा नहीं करुंगा, मेरे जीवित रहते मेरे प्रभु दरिद्र हो जाएं ऐसा कदापि नहीं होगा।
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तो इसी बात के डर से सुदामा ने सारे चने खुद खा लिए। दरिद्रता का श्राप सुदामा जी ने स्वयं ले लिया। लेकिन अपने मित्र श्री कृष्ण को एक भी दाना चने का नहीं दिया। ऐसे निभाई सुदामा ने अपनी दोस्ती और खुद बन गए गरीब।
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