लोकतंत्र के लिए घातक हैं चुनावों में ‘धांधली’ के आरोप

punjabkesari.in Monday, Sep 17, 2018 - 03:53 AM (IST)

पिछले दिनों दिल्ली विश्वविद्यालय और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में छात्र संघ के चुनाव भारी विवादों के बीच सम्पन्न हुए हैं। छात्र समुदाय दो खेमों में बंटा हुआ था। एक तरफ भाजपा समर्थित अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और दूसरी तरफ वामपंथी, कांग्रेस और बाकी के दल थे। टक्कर कांटे की थी। वातावरण उत्तेजना से भरा हुआ था और मतगणना को लेकर दोनों जगह काफी विवाद हुआ। विश्वविद्यालय के चुनाव आयोग पर आरोप-प्रत्यारोपों का दौर चला। 

छात्र राजनीति में उत्तेजना, ङ्क्षहसा और हुड़दंग कोई नई बात नहीं है। पर ङ्क्षचता की बात यह है कि राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने जब से विश्वविद्यालयों की राजनीति  में खुल कर दखल देना शुरू किया है तब से धनबल और सत्ताबल का खुलकर प्रयोग छात्र संघ के चुनावों में होने लगा है, जिससे छात्रों के बीच अनावश्यक उत्तेजना और विद्वेष फैलता है। अगर समर्थन देने वाले राष्ट्रीय राजनीतिक दल इन छात्रों के भविष्य और रोजगार के प्रति भी इतने गंभीर और तत्पर होते तो भी इन्हें माफ किया जा सकता था  पर ऐसा कुछ भी नहीं है। दल कोई भी हो छात्रों को केवल मोहरा बना कर अपना खेल खेला जाता है। जवानी की गर्मी और उत्साह में हमारे युवा भावना में बह जाते हैं और एक दिशाहीन राजनीति में फंसकर अपना काफी समय और ऊर्जा बर्बाद कर देते हैं, यह चिंता की बात है। 

इसका मतलब यह नहीं कि विश्वविद्यालय के परिसरों में छात्र राजनीति  को प्रतिबंधित कर दिया जाए। वह तो युवाओं के व्यक्तित्व के विकास में अवरोधक होगा क्योंकि छात्र राजनीति से युवाओं में अपनी बात कहने, तर्क करने, संगठित होने और नेतृत्व देने की क्षमता विकसित होती है। जिस तरह शिक्षा के साथ खेलकूद जरूरी है, वैसे ही युवाओं के संगठनों का बनना और उनमें आपस में प्रतिस्पर्धा होना स्वस्थ्य परंपरा है। मेरे पिता जो उत्तर प्रदेश के एक सम्मानित शिक्षाविद् और कुलपति रहे, कहा करते थे, ‘‘छात्रों में बजरंगबली की सी ऊर्जा होती है, यह उनके शिक्षकों पर है कि वे उस ऊर्जा को किस दिशा में मोड़ते हैं।’’ 

जरूरत इस बात की है कि भारत के चुनाव आयोग के अधीनस्थ हर राज्य में स्थायी चुनाव आयोगों का गठन किया जाए। ग्राम सभा के चुनाव से लेकर, नगर-निकायों के चुनाव और छात्रों, और हो सके तो किसानों और मजदूर संगठनों के चुनाव यह आयोग करवाए। यह चुनाव आयोग ऐसी नियमावली बनाए कि इन चुनावों में धांधली और गुंडागर्दी की संभावना न रहे। प्रत्याशियों के चयन से लेकर प्रचार और मतदान तक का काम व्यवस्थित और पारदर्शी प्रक्रिया के तहत हो और उसका संचालन इन चुनाव आयोगों द्वारा किया जाए। लोकतंत्र के शुद्धिकरण के लिए यह एक ठोस और स्थायी कदम होगा। इस पर अच्छी तरह देशव्यापी बहस होनी चाहिए। 

इस छात्र संघ के चुनावों में दिल्ली विश्वविद्यालय की ई.वी.एम्स के संबंध में छात्रों द्वारा जो आरोप लगाए गए हैं, वह चिंता की बात है। प्रश्न यह उठ रहा है कि जब इतने छोटे चुनाव में ई.वी.एम्स संतोषजनक परिणाम की बजाय शंकाएं उत्पन्न कर रही हैं, तो 2019 के आम चुनावों में ई.वी.एम. की विश्वसनीयता पर जिस प्रकार राजनीतिक पाॢटयां अभी से आरोप-प्रत्यारोप लगा रही हैं, इससे क्या उनकी आशंकाओं को बल मिलता नहीं दिख रहा है? मजे की बात यह है कि ई.वी.एम. की बात आते ही चुनाव आयोग द्वारा मीडिया के सामने आकर सफाई दी गई कि दिल्ली विश्वविद्यालय के चुनाव के लिए ई.वी.एम. मुहैया नहीं करवाई गई थीं। छात्र संघ के चुनाव के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय ने स्वयं ई.वी.एम. का इंतजाम किया था। 

बात यह नहीं है कि ई.वी.एम. कहां से आईं, कौन लाया, पर आनन-फानन में जिस प्रकार जब चुनाव आयोग पर दिल्ली छात्र संघ के चुनावों में ई.वी.एम. में गड़बड़ी के आरोप लगने लगे तो उसे सामने आकर सफाई देनी पड़ी। यह कौन-सी बात हुई, कोई चुनाव आयोग पर तो आरोप लगा नहीं रहा था पर चुनाव आयोग प्रकट होता है और दिल्ली चुनाव में ई.वी.एम. पर सफाई दे देता है। यानी चुनाव आयोग अभी से बचाव की मुद्रा में दिखने लगा है।

चुनाव कोई हो पर लोकतांत्रिक व्यवस्था की मजबूती में पारदर्शिता प्रथम बिन्दु है और जब चुनावों में धांधली के आरोप जोर-शोर से लगने लगें तो यह लोकतंत्र के लिए अत्यंत घातक है। समय रहते छोटे चुनाव हों या बड़े स्वच्छ और निष्पक्ष चुनाव के लिए आशंकाओं का समाधान कर लेना विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण कदम होगा। देश की राजधानी दिल्ली में हुए इन छात्र संघ के चुनावों के परिणाम देश की राजनीति में अभी से दूरगामी परिणाम परिलक्षित कर रहे हैं इसलिए हर किसी को अपनी जिम्मेदारियों को निष्पक्षता के साथ वहन कर इस महान लोकतंत्र को और मजबूत बनाना चाहिए।-विनीत नारायण


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Pardeep

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