वोट डालकर पूरी करें लोकतंत्र के प्रति जिम्मेदारी

punjabkesari.in Sunday, Mar 31, 2024 - 05:18 AM (IST)

चुनाव आयोग की रिपोर्ट के अनुसार पिछले चुनाव में भारत के करीब एक तिहाई लोगों ने अपने मत का उपयोग नहीं किया था। वोट न करने वालों में युवा, अमीर और शहरी जनसंख्या वाले लोग शामिल थे। भारत मौजूदा समय में दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। इस देश में 1962 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले वोटर्स की संख्या में चार गुना इजाफा हुआ है। भारत निर्वाचन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल भारत में लगभग 94.5 करोड़ वोटर्स रजिस्टर्ड हुए, इनमें से एक तिहाई लोगों ने लोकसभा चुनाव 2019 में अपने मत का उपयोग ही नहीं किया। पूरे देश में 19 अप्रैल से 1 जून 2024 तक 7 चरणों में चुनाव कराए जाएंगे। 4 जून को लोकसभा चुनाव 2024 का परिणाम जारी किया जाएगा। 

युवा और शहरी अमीरों की नहीं है वोटिंग में रुचि : भारत निर्वाचन आयोग के मुताबिक भारत के लगभग 30 करोड़ लोगों ने लोकसभा चुनाव 2019 में अपने मतदान-महादान का उपयोग नहीं किया था। चुनाव आयोग ने भी माना कि शहरी क्षेत्र के लोग पिछले लोकसभा चुनाव में बड़ी संख्या में वोट डालने बूथों पर नहीं गए थे। इतनी बड़ी संख्या में लोगों का वोट डालने नहीं जाना, भारत जैसे बड़े लोकतंत्र के लिए बिल्कुल भी अच्छा संकेत नहीं है। पिछले लोकसभा चुनाव में वोटर्स की दूरी के चलते चुनाव आयोग ने अवेयरनैस कैंपेन के जरिए वोटर टर्नआऊट को 75 से 80 प्रतिशत तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। 

राजनीति का स्तर उठे तो खुद बढ़ेगा मतदान: मत प्रतिशत बढ़ाने के लिए कई विषयों पर एक साथ जोर देना होगा। मतदाताओं को जागरूक करने के साथ-साथ राजनीति का स्तर भी ऊंचा करना होगा। ये दोनों एक-दूसरे से जुड़े विषय हैं। चुनाव जीतने के बाद नेता पाला बदल लेते हैं। जिस पार्टी के विरोध में नेता चुनाव लड़ते हैं, जीतने के बाद उसी पार्टी के साथ मिलकर सरकार बना लेते हैं। जिस नेता की दिन-रात आलोचना करते हैं, कुर्सी पाने के लिए उसी को अपना नेता मान लेते हैं। देश के भीतर ऐसा लगातार हो रहा है। 

नेता सार्वजनिक रूप से यहां तक कहने से परहेज नहीं करते हैं कि राजनीति में सब कुछ चलता है। क्या सत्ता पाने के लिए विचारों को तिलांजलि देना राजनीति है? रातों-रात या कुछ पल में ही दल-बदल कर लेना या गठबंधन बना लेना राजनीति है? 5 साल या 10 साल तक एक नेता किसी पार्टी में रहकर सत्ता का स्वाद चखता है। जब उसे लगता है कि आगे चुनाव हार जाएंगे तो वह पार्टी बदल लेता है। फिर जिस पार्टी में एक दशक तक रहा, उसकी आलोचना करना शुरू कर देता है। इससे मतदाताओं का विश्वास नेताओं के ऊपर से कमजोर हुआ है। यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए सुखद संकेत नहीं है। 

राजनीति में सिद्धांत को ऊपर लाना होगा : लोगों में मतदान के लिए उदासीनता दूर करने के लिए राजनीति में सिद्धांत को ऊपर लाना होगा। राष्ट्र को ध्यान में रखकर राजनीति करनी होगी, दल-बदल करने से पहले सोचना होगा जिसने मुझे मत दिया है, उसके मन-मस्तिष्क पर क्या प्रभाव पड़ेगा। नेता एक पल में बदल जाते हैं लेकिन मतदाताओं को बदलने में बहुत समय लग जाता है। मत-प्रतिशत बढ़ाने के लिए आवश्यक है कि नेता मतदाताओं की भावनाओं का सम्मान करें। उनकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ न करें। 

तोडऩी होगी उदासीन रवैये की कड़ी : पूर्व राज्य चुनाव आयुक्त एस.के. श्रीवास्तव का कहना है कि देश हमारा है, जनतंत्र हमारा है। इस जनतंत्र में वोट की ताकत सबसे बड़ी होती है। इस वोट की ताकत से हम अपना और अपने बच्चों का भविष्य चुनते हैं। इसलिए मतदान करना 18 वर्ष से अधिक उम्र के हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है। वोट नहीं देने का मतलब है कि अपने लोकतांत्रिक दायित्व से पीछे हट रहे हैं। इसलिए चुनाव को गंभीरता से लेकर हर मतदाता को उसमें हिस्सा लेना चाहिए। जिस तरह हम सब अपने दैनिक कामकाज से समय निकालकर अपनी धार्मिक आस्था के अनुसार धार्मिक स्थलों पर जाते हैं और सुख समृद्धि के लिए कामना करते हैं। इसी तरह संसद हमारे लोकतंत्र का मंदिर है। यह चुनाव इस लोकतंत्र का पर्व है। इसी भांति इस जिम्मेदारी को भी पूरा करना चाहिए। 

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघ चालक मोहन भागवत के शब्दों में उदासीनता को त्यागकर मतदान प्रतिशत बढ़ाने की दिशा में होने वाले सभी प्रयासों में चुनाव कराने वाली व्यवस्थाओं व व्यक्तियों से हमारा सहयोग होना चाहिए। लेकिन चुनाव में मतदान करने भर से और सारा भार चुने हुए लोगों के सिर पर डाल देने से हमारा कत्र्तव्य समाप्त नहीं हो जाता, वरन चुनाव के बाद प्रत्याशी के कार्यों पर नजर रखते हुए उसे सीधे पटरी पर बनाए रखने की जिम्मेदारी भी जनता की होती है। -सुखदेव वशिष्ठ


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