Mahavir Jayanti: भगवान महावीर के अनुसार ये हैं आत्मा से जुड़े गहरे राज़

punjabkesari.in Wednesday, Apr 17, 2019 - 10:38 AM (IST)

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भगवान महावीर कहते हैं कि धर्म सबसे उत्तम मंगल है। अहिंसा, संयम और तप ही धर्म है, जो धर्मात्मा है। जिसके मन में सदा धर्म रहता है उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। धर्म भावना से चेतना का शुद्धिकरण होता है। धर्म व्यक्ति के आचरण को पवित्र एवं शुद्ध बनाता है। इसीलिए भगवान महावीर ने कहा कि एगा धम्म पडिमा, जं से आयो पवज्जवजाए

PunjabKesariअर्थात धर्म ऐसा पवित्र अनुष्ठान है जिससे आत्मा का शुद्धिकरण होता है। भगवान महावीर ने प्राणीमात्र की हितैषिता और उनके कल्याण की दृष्टि से धर्म की व्याख्या की। धर्म के सिवाय संसार में कोई भी मनुष्य का रक्षक नहीं है। भगवान महावीर ने मानवभव दुर्लभता का वर्णन करते हुए गणधर गौतम से कहा था कि हे गौतम सब प्राणियों के लिए चिरकाल में मनुष्य जन्म दुर्लभ है, क्योंकि कर्मों का आवरण उतीव गहन है। अंतत: इस भाव को पाकर एक क्षण के लिए भी प्रमाद व आलस नहीं करना चाहिए। भगवान महावीर का कहना था कि किसी आत्मा की सबसे बड़ी गलती अपने असली रूप को नहीं पहचानना है और यह केवल आत्मज्ञान प्राप्त करके ही ठीक की जा सकती है। मनुष्य को अपने जीवन में जो धारण करना चाहिए वही धर्म है। 

PunjabKesariधारण करने योग्य हिंसा, क्रूरता, कठोरता, अपवित्रता, अहंकार, क्रोध, असत्य, असंयम, व्यभिचार, परिग्रह आदि विकार हैं। यदि संसार का प्रत्येक व्यक्ति हिंसा हो जाए तो समाज का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा और सर्वत्र भय, अशांति व पाशविकता का साम्राज्य स्थापित हो जाएगा। सम्पूर्ण विश्व में एकमात्र जैन धर्म ही इस बात में आस्था रखता है कि प्रत्येक आत्मा में परमात्मा बनने की शक्ति विद्यमान है अर्थात भगवान महावीर स्वामी की तरह ही प्रत्येक व्यक्ति जैन धर्म का ज्ञान प्राप्त करके उसमें सच्ची आस्था रखकर उसके अनुसार आचरण करके बड़े पुण्योदय से उसे प्राप्त करके दुर्लभ मानव योनि का एकमात्र सच्चा व अंतिम सुख, सम्पूर्ण जीवन जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होने वाले कर्म करते हुए मोक्ष महाफल पाने के लिए कदम बढ़ाना और उसे प्राप्त कर वीर महावीर बन दुर्लभ जीवन को सार्थक कर सकता है।

महावीर ने कोई ग्रंथ नहीं लिखा। उन्होंने जो उपदेश दिए गणधरों ने उनका संकलन किया और वे संकलन ही शास्त्र बन गए। इनमें काल, लोक, जीव आदि के भेद-प्रभेदों का इतना विशुद्ध व सूक्ष्म विवेचन है कि यह एक विश्वकोष का विषय नहीं अपितु ज्ञान-विज्ञान की शाखाओं-प्रशाखाओं के अलग-अलग विश्व कोषों का समाहार है। उनके सिद्धांत बताते हैं कि वर्तमान में वर्तन (व्यवहार) को किस प्रकार से रखा जाए ताकि जीवन में शांति, मरण में समाधि, परलोक में सद्गति और परम्परा से परमगति पाई जा सके। आज के भौतिक युग में अशांत जनमानस को भगवान महावीर की पवित्र वाणी ही परम सुख व शांति प्रदान कर सकती है। 

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Niyati Bhandari

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