पूरी तरह बदल चुकी है ‘राजनीति’

punjabkesari.in Tuesday, Apr 16, 2019 - 04:13 AM (IST)

अब जबकि राजनीतिक सरगर्मियां जोरों पर हैं और देश के विभिन्न राज्यों में मतदान प्रक्रिया शुरू हो गई है, मैंने अब से पहले इस तरह की राजनीति नहीं देखी। इन चुनावों में जिस तरह के विज्ञापन, रोड शो, बेशर्मी से रुपयों का आदान-प्रदान और शक्ति प्रदर्शन देखा जा रहा है वह अभूतपूर्व है। गांव में कोई गरीब व्यक्ति आजकल जब कोई प्राइवेट न्यूज चैनलों (दूरदर्शन समाचार नहीं) को देखता होगा तो मुझे विश्वास है कि वह निराश ही होता होगा। 

आजकल दिखाए जा रहे विभिन्न समाचारों से किसी भी व्यक्ति का भ्रमित होना स्वाभाविक है क्योंकि उसके लिए ये पता लगाना मुश्किल है कि कौन-सा चैनल सही समाचार दे रहा है और कौन प्रचार कर रहा है तथा वास्तविक समाचार क्या है? मीडिया, राजनीति और व्यवसाय की इस सांठ-गांठ के दौर में आम आदमी के लिए बड़ी दुविधा पैदा हो गई है क्योंकि उसे दुनिया के सही समाचार नहीं मिल पा रहे हैं। हर कोई जानता है कि आज की राजनीति 10 साल पहले की राजनीति से अलग है या पूरी तरह से बदल चुकी है। न केवल वैचारिक स्तर पर बल्कि काम करने का अर्थ भी बदल गया है। वायदे तोडऩे के लिए किए जाते हैं, मेरा मानना है कि आम आदमी भी इस बात को समझता है कि सत्ता में आने के बाद घोषणा पत्र और चुनावी वायदे पार्टियों के लिए कोई मायने नहीं रखते।

बढ़नी चाहिए सांसदों की संख्या
यह सब खेल का हिस्सा बन चुका है। नई क्षेत्रीय पाॢटयां नए मुद्दों के साथ अस्तित्व में आती हैं और नए वायदे करती हैं। राष्ट्रीय दल इन मुद्दों को छीन लेते हैं और वे उससे भी बड़े वायदे करते हैं, बिना यह समझे हुए कि लम्बी अवधि में इनका राज्य पर कब, कहां और कितना असर पड़ेगा। मेरा हमेशा मानना रहा है कि नेता में राजनीतिज्ञ के गुण होने चाहिएं। उन्हें मतदाताओं को समझना चाहिए तथा अपने क्षेत्र में लगभग हर गांव से सम्पर्क रखना चाहिए। यह सम्पर्क व्यक्तिगत होना चाहिए। आज के समय में जनसंख्या में बढ़ौतरी को देखते हुए संसद के सदस्यों की संख्या भी अधिक होनी चाहिए। इस समय जितने लोकसभा क्षेत्रों के लिए चुनाव हो रहा है उनके मुकाबले 200 या 250 अधिक लोकसभा क्षेत्र होने चाहिएं। 

लोकसभा क्षेत्रों के बड़े दायरे को देखते हुए आज के समय में किसी भी नेता के लिए यह असंभव है कि वह अपने क्षेत्र के लोगों से व्यक्तिगत सम्पर्क साध सके। इस बात को ध्यान में रखते हुए कि संसद के गठन से लेकर आज तक जनसंख्या में काफी बढ़ौतरी हो चुकी है, यह उचित समय है कि इस बात की समीक्षा की जाए चाहे कोई भी सत्ता में आए। हमारी संसद में और अधिक सांसदों की सख्त जरूरत है। भगवान का शुक्र है कि विभिन्न राज्यों में क्षेत्रीय दल हैं जो अपने राज्यों के लोगों की समस्याओं को समझते हैं। वे लगातार लोगों के सम्पर्क में रहते हैं। वे मानवीय भावना के साथ राज्य विशेष के लिए काम करते हैं तथा उन्हें अधिक सेवाएं प्रदान करते हैं। इसी कारण अब राष्ट्रीय दलों को भी क्षेत्रीय दलों से गठबंधन करना पड़ रहा है। 

सांसदों में समर्पण भाव की कमी
आज के सांसद शायद इतने समर्पित नहीं हैं जितने 20 साल पहले हुआ करते थे। अब यह एक तरह का व्यवसाय बन चुका है जिसमें शोहरत हो। इसका प्रयोग लोगों की सेवा करने की बजाय ताकत हासिल करने के लिए किया जाता है। हमारी संसद में समर्पित सदस्यों का मिलना कठिन है। पिछले 5 वर्षों में उनमें से अधिकतर की ओर से जनता की मूल समस्याओं पर एक भी शब्द सुनने को नहीं मिला। वे वहां केवल इसलिए होते हैं कि लोगों ने एक पार्टी को सत्ता सौंपी है। 

यह नई राजनीति है, कुछ लोग इसलिए सांसद बनना चाहते हैं क्योंकि उन्हें बहुत-सी सुविधाएं मिलती हैं। उन्हें दिल्ली में घर मिलते हैं तथा मैं सोचती हूं कि उनमें से कितने वापस अपने लोकसभा क्षेत्र में जाते होंगे। कितने सांसदों ने अपने क्षेत्रों में स्कूल, कालेज और स्वास्थ्य सुविधाएं शुरू की होंगी अथवा वे अपने नेताओं की प्रसिद्धि के बल पर संसद में पहुंचे हैं। ऐसे में मुझे इस बात की खुशी है कि भाजपा ने अपने कई वर्तमान सांसदों को बदल कर नए चेहरों को टिकट दी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि वे केवल नेतृत्व की ओर न देख कर जनता की बेहतरी के लिए काम करेंगे।-देवी चेरियन


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