तो इस वजह से हुआ था भगवान कृष्ण के वंश का अंत

punjabkesari.in Friday, Mar 15, 2019 - 01:10 PM (IST)

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हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के हर अवतार लेने के पीछे कोई न कोई कारण रहा है। उनके सब अवतार ही वैसे तो मन को हरने वाले हैं। लेकिन आज हम उनके कृष्ण अवतार और उनके वंश के बारे में बात करेंगे। हर कोई भगवान कृष्ण और उनकी लीलाओं के बारे में तो जानता ही है। वे बचपन से ही बड़े नटखट रहे हैं और उनका यही स्वभाव सबके मन को मोहित करता रहा है। भगवान ने अपनी हर लीला से लोगों को बहुत सारी शिक्षाएं दी हैं। महाभारत काल में भी केवल अर्जुन को ही गीता का ज्ञान नहीं दिया बल्कि उसके जरिए लोगों के लिए ज्ञान की बातें बताई।
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महाभारत युद्ध इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध माना जाता है और इसमें पांडवों को जीत मिली और कौरवों को हार का सामना करना पड़ा था। जिससे कि पूरे कुरु वंश का नाश हो गया था। अपने कुल के विनाश को जानकर गांधारी ने गुस्से में भगवान कृष्ण को श्राप दे दिया कि जैसे तुमने मेरे कुल का नाश किया है वैसे ही एक दिन तुम्हारे यादव वंश का नाश हो जाएगा। 
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भगवान अपनी माया से सब जान चुके थे, उन्होंने पांडवों का राज तिलक करवाया और द्वारका नगरी वापिस लौट गए। कहते हैं कि भगवान ने लगभग 36 सालों तक द्वारका का शासन संभाला था और उसके बाद से गांधारी के श्राप ने अपना आकार लेना शुरू कर दिया था। श्राप की वजह से  एक दिन प्रभास क्षेत्र में प्रवेश करते ही यदुवंशियों की मति भ्रमित हो गई और वे अकारण ही एक-दूसरे को अपना शत्रु समझने लग गए। कहते हैं कि आज भी ये प्रभास क्षेत्र द्वारका में सोमनाथ के नाम से जाना जाता है। 
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सोमनाथ के पास प्रभास क्षेत्र में एक बार सब इकट्ठे हुए और मदिरापान कर रहे थे, लेकिन अचानक से उनके बीच किसी बात को लेकर विवाद शुरू हो गया था। इसी बीच सबकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई और उन लोगों ने एक-दूसरे को मारना शुरू कर दिया। जब भगवान कृष्ण और बलराम जी को इसका पता चला तो उन्होंने बचे हुए कुछ यदुवंशियों को संभाला। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अपने लोगों का अपने ही लोगों द्वारा रक्तपात देखकर बलराम जी ने श्री कृष्ण से कहा, ‘हे कान्हा अब यहां मन नहीं लगता है और मेरी अपने लोक जाने की इच्छा करने लगी है।’ इतना कहकर बलराम जी बैकुंठ को लौट गए।
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बलराम जी के जाने के बाद भगवान खुद को अकेला और दुखी महसुस करने लग गए थे। लेकिन वे खुद बैकुंठ नहीं लौट सकते थे। अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए एक दिन भगवान वृक्ष की छांव में बैठे अतीत और भविष्य के विषय में विचार कर रहे थे और तभी अचानक से जरा नाम के एक शिकारी का तीर उनके पैर में आकर लग गया। शिकारी ने भगवान से क्षमा प्रार्थनी की और कहा कि मुझसे ये अपराध हुआ है, मुझे क्षमा करें। इस पर भगवान ने कहा कि तुम खुद को अपराधी न समझो, क्योंकि इसके पीछे तुम्हारा ऋण था मुझ पर और मुझे ऐसे ही जाना था। कहते हैं जिस जगह भगवान ने अपने प्राण त्यागे वह स्थान सोमनाथ के पास भालका तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है। कहते हैं कि श्रीकृष्ण के जाने के साथ ही यदुवंश का भी धीरे-धीरे विनाश हो गया।
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