वादे करो, तोड़ दो... पैसा फिर भी मांगो! पाकिस्तान का नया फॉर्मूला, IMF भी हुआ हैरान
punjabkesari.in Thursday, Aug 07, 2025 - 11:42 AM (IST)

इंटरनेशनल डेस्क: पाकिस्तान की आर्थिक किताब में शायद एक नया अध्याय जुड़ गया है - "वादे करो, तोड़ दो, और फिर अगली किश्त के लिए हाथ फैला दो!" IMF (अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष) से लिया गया 7 अरब डॉलर का लोन अब पाकिस्तान के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है, लेकिन उससे ज्यादा परेशानी IMF को हो रही है, जिसे बार-बार वादे करके पाकिस्तान भूल जाता है। ताजा रिपोर्ट बताती है कि पाकिस्तान IMF के पांच में से तीन अहम लक्ष्य पूरे नहीं कर सका, फिर भी अगली किश्त यानी 1 अरब डॉलर मिलने की पूरी उम्मीद लगाए बैठा है। अब IMF करे तो क्या करे? पैसा रोके तो परेशानी, दे दे तो अगली बार और बड़े वादे टूटने की गारंटी! आगे पढ़िए कि पाकिस्तान से आखिर कहाँ हुई चूक, किन मोर्चों पर फिसला देश और क्या वाकई IMF अगली किश्त देने पर राज़ी हो सकता है?
पाकिस्तान की डांवाडोल अर्थव्यवस्था एक बार फिर संकट में है। कर्ज के भरोसे चल रहा यह पड़ोसी देश इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (IMF) से मिले 7 अरब डॉलर के लोन पर टिका हुआ है। इस लोन के बदले IMF ने पाकिस्तान के सामने कुछ आर्थिक लक्ष्य तय किए थे जिन्हें हासिल करना जरूरी था। लेकिन अब सामने आई रिपोर्ट बताती है कि पाकिस्तान इन लक्ष्यों में से तीन अहम वादे पूरे करने में नाकाम रहा है।
IMF से मिला था बड़ा लोन
पाकिस्तान ने IMF से लगभग 7 अरब डॉलर (करीब 58,100 करोड़ रुपये) का बेलआउट पैकेज लिया है। यह सहायता देश की आर्थिक स्थिति को स्थिर करने और वित्तीय घाटा कम करने के लिए बेहद जरूरी थी। बदले में IMF ने कुछ सख्त शर्तें रखी थीं जिनका उद्देश्य पाकिस्तान की आर्थिक जवाबदेही और राजस्व संग्रह बढ़ाना था।
कौन से लक्ष्य पूरे नहीं कर पाया पाकिस्तान?
पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति पर हाल ही में जारी की गई वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट ‘फिस्कल ऑपरेशन्स समरी’ में चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान IMF द्वारा तय किए गए पांच लक्ष्यों में से तीन अहम आर्थिक वादे पूरे करने में नाकाम रहा है। सबसे पहले बात करें प्रांतीय बचत की, तो IMF ने पाकिस्तान से अपेक्षा की थी कि उसकी प्रांतीय सरकारें मिलकर 1.2 ट्रिलियन पाकिस्तानी रुपये की बचत करेंगी। लेकिन बढ़ते खर्चों और संसाधनों की कमी के चलते वे सिर्फ 921 अरब रुपये ही बचा सके, यानी लगभग 280 अरब रुपये का अंतर रह गया। दूसरा बड़ा लक्ष्य था एफबीआर (फेडरल बोर्ड ऑफ रेवेन्यू) द्वारा तय किए गए 12.3 ट्रिलियन रुपये के राजस्व को इकट्ठा करना, लेकिन टैक्स वसूली उम्मीद से कमजोर रही और यह लक्ष्य भी चूक गया। तीसरी विफलता रही ‘ताजिर दोस्त स्कीम’, जिसे खुदरा और छोटे व्यापारियों से टैक्स वसूलने के लिए शुरू किया गया था। सरकार को इससे 50 अरब रुपये की वसूली की उम्मीद थी, लेकिन योजना धरातल पर नहीं उतर सकी और लक्ष्य अधूरा रह गया। इन तीन बड़ी चूकों ने IMF की आगामी समीक्षा में पाकिस्तान की स्थिति को और कठिन बना दिया है।
कुछ मोर्चों पर मिली सफलता
हालांकि पाकिस्तान IMF के तीन अहम आर्थिक वादे पूरे नहीं कर सका, फिर भी उसकी सरकार कुछ सकारात्मक संकेतों का हवाला देकर राहत की उम्मीद जताती नजर आ रही है। रिपोर्ट के मुताबिक, देश ने 2.4 ट्रिलियन रुपये के लक्ष्य के मुकाबले 2.7 ट्रिलियन रुपये का प्राइमरी बजट सरप्लस हासिल किया है, जो कि न सिर्फ लक्ष्य से अधिक है बल्कि लगातार दूसरे साल भी सरप्लस दर्ज किया गया है। यही नहीं, बीते 24 वर्षों में यह सबसे अधिक प्राइमरी सरप्लस रहा है, जो सरकार के लिए एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। इसके अलावा, कुल वित्तीय घाटा को भी GDP के 5.4% तक सीमित रखा गया है, जो करीब 6.2 ट्रिलियन रुपये बनता है। ये आंकड़े IMF को यह जताने की कोशिश हैं कि पाकिस्तान आर्थिक सुधार की दिशा में कुछ ठोस कदम उठा रहा है, भले ही सभी लक्ष्य पूरे न हो सके हों।
पाकिस्तान के सामने अब क्या चुनौतियाँ हैं?
IMF की अगली समीक्षा सितंबर में होनी है, जिसमें यह तय किया जाएगा कि पाकिस्तान को 1 अरब डॉलर की अगली किश्त मिलेगी या नहीं। हालांकि पाकिस्तान कुछ आर्थिक संकेतकों को लेकर आशावादी है, लेकिन जिन महत्वपूर्ण वादों को वह पूरा नहीं कर सका, वे इस समीक्षा में उसके रास्ते में बड़ी अड़चन बन सकते हैं। विशेष रूप से देखा जाए तो प्रांतीय सरकारों का खर्च नियंत्रण से बाहर रहा, जिससे बचत का तय लक्ष्य नहीं पूरा हो सका। इसके अलावा, कर वसूली भी अनुमान से काफी कम रही, जिससे सरकारी राजस्व पर असर पड़ा है। वहीं नई टैक्स योजनाएं, जैसे कि खुदरा व्यापारियों के लिए लाई गई ‘ताजिर दोस्त स्कीम’ भी पूरी तरह असफल रही है। इन सब कारणों के चलते IMF की समीक्षा में पाकिस्तान को कड़ी शर्तों या अगली किश्त में देरी का सामना करना पड़ सकता है।
फिर भी IMF से उम्मीद क्यों?
पाकिस्तान सरकार को उम्मीद है कि उसने जिन आर्थिक क्षेत्रों में प्रदर्शन किया है, वे IMF को संतुष्ट कर सकते हैं। खासकर बजट सरप्लस और वित्तीय घाटा नियंत्रण में रखने जैसी उपलब्धियां उसकी उम्मीद को मजबूती दे रही हैं। लेकिन यह भी सच है कि IMF लक्ष्य आधारित फंड रिलीज की नीति पर चलता है। ऐसे में कुछ बड़े वादों के अधूरे रहने से पाकिस्तान को अगली किश्त मिलने में देर या सख्त शर्तों का सामना करना पड़ सकता है।