विश्व पर्यावरण दिवस: तय करें क्या चाहिए ?

punjabkesari.in Tuesday, Jun 05, 2018 - 12:30 PM (IST)

नई दिल्ली (संजीव शर्मा): आज विश्व पर्यावरण दिवस है। चौतरफा पर्यावरण बचाने के भाषणों की भरमार है, लेकिन असल सवाल तो यह है कि क्या ये भाषण पर्यावरण बचा पाएंगे। क्या हम ऐसी सुखद स्थिति में हैं कि महज भाषण हमारे पर्यावरण को सहेज सकता है?  कोई फैसला लेने पहले दो तस्वीरें देखना जरूरी है। पहाड़ की चोटी  पर बसे  बर्फ  के घर शिमला का  हलक सूख गया है।  लोग रात-रात भर जाग कर दो बाल्टी पानी के लिए तरस  रहे हैं। पानी के लिए हंगामा करने वाले लोगों को पानी तो नहीं मिल रहा लेकिन अब तक सौ से अधिक लोगों के खिलाफ केस दर्ज हो चुके हैं। ऐसा देश में पहलीबार हुआ है कि  पानी मांगने बाल्टी लेकर सड़क पर उतरे लोगों पर पुलिस की ऐसी  कार्रवाई हुई हो। जबकि जिस हिमाचल की शिमला राजधानी है वहां से सतलुज, यमुना ,ब्यास, रावी सरीखी देश की  बड़ी नदियाँ गुजरती हैं।  हिमाचल भारत के सात और  एशिया के दो बड़े जलाशयों  का पालक भी  है।  इसके बावजूद यह स्थिति है। 
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अब दूसरी तस्वीर जान लें। देश की राजधानी पांच साल के सबसे गर्म सप्ताह से गुजर रही है पारा औसतन 45  डिग्री बना हुआ है जो सामान्य से तीन से पांच डिग्री ज्यादा है। यह गर्मियों की  ही व्यथा नहीं है दिलचस्प ढंग से इन दोनों शहरों में  सर्दियाँ भी दुश्वारियों से भरी  हैं। पिछली ही सर्दी में शिमला में बफऱ्बारी के बाद हफ्ते भर बिजली बहाल  नहीं हो पाई थी।  कई दिनों तक तब भी पानी  नहीं आया था क्योंकि पानी की पाइपें जम गयी थीं। बरसात में भूस्खलन के कारण  शिमला-चंडीगढ़ मुख्य मार्ग दो दिन बंद  रहा था।  उधर सर्दी में दिल्ली का दम  जब धुएं से घुटा तो चर्चा पूरे विश्व में हुई थी। पंजाब के किसान पराली  तो दशकों  से जलाते आ रहे हैं ,लेकिन इसके धुएं से दिल्ली में सम-विषम फार्मूला लागू करने की नौबत अभी आयी। पिछली बरसात में कूड़े का पहाड़ के टूटने से दो लोगों  के दबकर मरने की खबर भी आपने पढ़ी ही होगी।
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शिमला और दिल्ली  तो महज  उदाहरण हैं।  देश-दुनिया के हर शहर का  कमोबेश यही हाल है।  पर्यावरण प्रदूषण  के चलते विश्व की 23 फीसदी  ज़मीन बंज़र हो चुकी है। यही हाल रहा तो विश्व के 100 देशों की एक अरब से ज्यादा आबादी का जीवन संकट में पड़ जाएगा । पर्वतों से विश्व की आधी आबादी को पानी मिलता है। लेकिन पेड़ों के घटने , हिमखण्डों के पिघलने, जंगलों के कटान  के  चलते पर्वतों का पर्यावरण तंत्र  खतरे में है। पूरी दुनिया के ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं। दुनिया की सबसे नवीनतम पर्वतमाला हिमालय पर  वैश्विक ऊष्मीकरण का ज्यादा प्रभाव है। 
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भारत की ही बात करें तो देश में एक दशक  में ग्लेशियर चार मीटर तक पीछे चले गए हैं।  चूँकि ग्लेशियर पिघल रहे हैं लिहाज़ा महासागरों का आकार भी बढ़ रहा है। शोध बताते हैं कि  पिछले 100 साल में समुद्री तल करीब 10 से 20 सेंटीमीटर के बीच बढ़ चुका है। इसके कारण करीब 4.6 करोड़ लोग प्रति वर्ष प्रभावित होते हैं। यदि समुद्र तल बढ़कर 50 सेंटीमीटर  हो गया तो इसकी चपेट में विश्व की 10 करोड़ आबादी आ जायेगी। पर्यावरण के नष्ट होने से करीब 800  से ज्यादा  प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं और यह सिलसिला जारी रहा तो करीब 11000 प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा बढ़ जायेगा। ऊपर से महासागर अजैविक कचरे से  दूषित हो रहे हैं। 
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महासागरों में कचरे की समस्या के विकराल रूप का  सहज अंदाजा यहीं से लगाया जा सकता है कि  इसी वर्ष बाली में  लोगों के समुद्र तटों पर जाने पर प्रतिबंध लगाना पड़  गया था।  पर्यटक यहां इतना कचरा छोड़ जाते हैं जिससे यह स्थितयां पैदा हो गयीं।  यह कचरा जलीय जीवन को प्रभावित कर रहा है। अनुसन्धान कहते हैं कि  प्रदूषण के कारण  समुद्री जीवों की एक पूरी  पीढ़ी समय से पहले मर चुकी है। 
 

 


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Anil dev

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