शवों के साथ सोने वाले लोगों को क्यों मिलती है अजीब खुशी? जानिए क्या होती है इनकी मानसिक स्थिति और क्यों करते हैं ऐसा

punjabkesari.in Wednesday, Sep 10, 2025 - 03:32 PM (IST)

नेशनल डेस्क। हाल ही में उत्तर प्रदेश के नोएडा में एक ऐसी घटना सामने आई जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। एक बेटे ने अपने पिता की बेरहमी से हत्या कर दी और फिर पूरी रात उसी शव के साथ सोता रहा। यह कोई अकेली घटना नहीं है। मध्य प्रदेश, लखनऊ और हापुड़ जैसे शहरों में भी ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं जहां हत्या के बाद आरोपी ने शव के साथ ही समय बिताया। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर लोग ऐसा क्यों करते हैं?

क्यों शव के साथ सोते हैं हत्यारे?

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार हत्या के बाद शव के साथ समय बिताना एक बेहद असामान्य और गंभीर मानसिक स्थिति का संकेत है। इसे मनोविज्ञान में 'नेक्रोफिलिया' कहा जाता है।

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क्या है नेक्रोफिलिया?

नेक्रोफिलिया एक दुर्लभ मानसिक विकार है जिसमें व्यक्ति को मृत शरीर के प्रति यौन आकर्षण या भावनात्मक लगाव महसूस होता है। ऐसे लोगों के लिए मृत शरीर एक वस्तु की तरह होता है जहां उन्हें कोई विरोध या भावनात्मक जटिलता का सामना नहीं करना पड़ता।

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मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसे लोग अक्सर साइकोपैथी या एंटीसोशल पर्सनालिटी डिसऑर्डर से पीड़ित होते हैं। साइकोपैथ्स में सहानुभूति की कमी होती है जिससे उन्हें हत्या के बाद कोई पछतावा नहीं होता।

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इन 4 मामलों ने हिला दिया था देश

नोएडा का मामला: एक बेटे ने अपने पिता की हत्या कर दी और रात भर उसी शव के साथ सोया रहा।

भोपाल का मामला: एक लिव-इन पार्टनर ने अपनी प्रेमिका की गला घोंटकर हत्या कर दी और दो दिनों तक उसी कमरे में शव के पास सोता रहा।

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हापुड़ का मामला: एक परिवार ने पड़ोस के बच्चे की हत्या कर दी और पूरी रात मासूम के शव के पास ही सोते रहे।

लखनऊ का मामला: एक डांसर मां ने अपनी बेटी की हत्या कर दी। बाद में शव को बेड के बॉक्स में बंद कर दिया और बदबू आने पर उसे बाहर निकालकर परफ्यूम छिड़का। इतना ही नहीं शव के सामने बैठकर उसने अपने बॉयफ्रेंड के साथ शराब पार्टी भी की।

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बचपन का ट्रॉमा भी है वजह

विशेषज्ञ बताते हैं कि कुछ मामलों में बचपन का अकेलापन या दुर्व्यवहार भी इस मानसिक स्थिति को जन्म दे सकता है। ऐसे लोग अकेलेपन से बचने के लिए मृत शरीर को साथी बना लेते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि मरा हुआ व्यक्ति कभी छोड़कर नहीं जाएगा।

ऐसे लोगों का इलाज करना बेहद मुश्किल होता है लेकिन थेरेपी और दवाओं की मदद से उनकी स्थिति में सुधार किया जा सकता है।


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Content Editor

Rohini Oberoi

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