SC ने सुनवाई के दौरान क्यों किया पूर्व CEC टीएन शेषन का जिक्र? जो डस्टबिन में डाल देते थे सरकारी फाइलें.... पढ़े पूरी डिटेल

punjabkesari.in Wednesday, Nov 23, 2022 - 07:18 PM (IST)

नेशनल डेस्कः सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को  मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) की नियुक्ति को लेकर सुनवाई की। मंगलवार को एक मामले पर जिरह के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश में कई मुख्य चुनाव आयुक्त हुए हैं, लेकिन टी एन शेषन कभी-कभार ही होते हैं। हम नहीं चाहते हैं कि उसे कोई उसे दबाए। पांच जजों वाली संविधान पीठ ने इशारों ही इशारों में कह दिया है कि देश को एक ऐसा मुख्य निर्वाचन आयुक्त यानी सीईसी चाहिए, जो सरकार की कठपुतली न बने बल्कि टीएन शेषन की तरह बेखौफ होकर पूरी खुद्दारी के साथ चुनाव सुधारों को लागू करने का माद्दा रखता हो।

कौन थे टीएन शेषन
टीएन शेषन भारत के दसवें मुख्य चुनाव आयुक्त थे। इससे पहले वह कुछ महीनों तक कैबिनेट सेक्रेटरी भी रहे थे। साल 1990 में उन्हें निर्वाचन आयोग का मुख्य चुनाव आयुक्त बनाया गया। उनका कार्यकाल 6 वर्ष तक रहा। उनके कार्यकाल के दौरान चुनाव प्रक्रिया में बहुत से बदलाव देखने को मिले। शेषन को आजाद भारत खुद्दार नौकरशाह थे। जो भ्रष्टाचार से लड़डने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार थे। उनके आलोचक उन्हें सनकी भी कहते थे। लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ वह किसी से भी बगैर किसी डर के किसी भी टकराव के लिए तैयार रहते थे। हर वोटर के लिए वोटर आईडी कार्ड उन्ही की पहल का नतीजा था।

डस्टबिन में डाल देते थे सरकारी फाइल
जब टी एन शेषन को सीईसी बनाया गया था, तब उस वक्त की सरकार को भी ये अहसास नहीं था कि वे इतने मजबूत चरित्र वाले ऐसे खुद्दार नौकरशाह हैं, जो सरकार की मर्जी को ठुकराते हुए ऐसे स्वतंत्र फैसले लेंगे, जो आगे चलकर देश के चुनावी इतिहास में एक नजीर बनेगा। छह साल के अपने कार्यकाल में शेषन ने तत्कालीन सरकारों के हर नाजायज अनुरोध को अपनी टेबल के नीचे रखे डस्टबिन में फेंकने की आदत-सी डाल ली थी।

अगले ही दिन वे चुनाव सुधारों को लेकर किसी कड़े फैसले का ऐलान करने के लिए खासतौर पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करते थे। वे सुनिश्चित करते थे कि सरकार की छत्रछाया में चलने वाले दूरदर्शन के अलावा अंग्रेजी और हिंदी की प्रमुख समाचार एजेंसियों के संवाददाता उसमें अवश्य मौजूद रहें, ताकि चुनाव आयोग के उस फैसले का संदेश हर आम आदमी तक भी पहुंचे।

केंद्रीय मंत्रियों को भी किया नजरअंदाज
उस जमाने में केंद्रीय मंत्रियों तक के फोन को नजरअंदाज करने वाले शेषन की खासियत ये भी थी कि वे निर्वाचन आयोग की बीट कवर करने वाले संवाददाता को खुद फोन करके प्रेस कॉन्फ्रेंस में आने का न्योता देते थे। मकसद होता था कि एजेंसी आयोग के फैसले को विस्तार से कवर करेगी तो अगले दिन के अखबारों में वो खबर प्रमुखता से छपेगी, जिसे दूरदराज के गांव -कस्बों के लोगों को अहसास होगा कि उनके वोट की क्या कद्र है और चुनाव आयोग ने एक आम नागरिक को क्या नया अधिकार दे दिया है।

मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में टीएन शेषन की संवैधानिक दायित्वों के प्रति दबंगई ने चुनाव आयोग को नई पहचान दी। इसी दौरान बिहार में विधानसभा चुनाव हुए। सीईसी के रूप में उनकी सख्ती मिसाल बन गई। शेषन ने चुनाव सुधारों की शुरुआत बिहार से की। तब बिहार बूथ कैप्चरिंग के लिए बदनाम था। शेषन ने चुनाव में केंद्रीय बलों की तैनाती करवाई और बूथ कैप्चरिंग और हिंसा को रोकने में कामयाब रहे।

शायद इसीलिए सुप्रीम कोर्ट को ये कहना पड़ा, "अब तक कई सीईसी रहे हैं। मगर टीएन शेषन जैसा कोई कभी-कभार ही होता है। हम नहीं चाहते कि कोई उन्हें ध्वस्त करे। तीन लोगों (सीईसी और दो चुनाव आयुक्तों) के नाजुक कंधों पर बड़ी शक्ति निहित है। हमें सीईसी के पद के लिए "मजबूत चरित्र वाले व्यक्ति" को खोजना होगा।

चुनाव आयोग के नाजुक कंधों पर भारी शक्तियां
जस्टिस अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, ऋशिकेष राय और सीटी रविकुमार की बेंच ने कहा कि 'देश में कई सीईसी रह चुके हैं और टी एन शेषन कभी-कभार ही होते हैं। हम नहीं चाहते कि कोई इसे दबाने की कोशिश करे। संविधान ने इन तीन लोगों (2 चुनाव आयुक्त, 1 मुख्य चुनाव आयुक्त) के नाजुक कंधों पर भारी शक्तियां दी है। हमें CEC के पद के लिए सर्वोत्तम व्यक्ति को खोजना है। सवाल यह है कि हम उस बेस्ट व्यक्ति को कैसे चुनें और उसे कैसे नियुक्त करें।' कोर्ट ने केंद्र की तरफ से पेश हो रहे अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से कहा कि महत्वपूर्ण बात यह है कि हम अच्छी प्रक्रिया अपनाते हैं ताकि सक्षम व्यक्ति के अलावा मजबूत चरित्र का कोई शख्स ही सीईसी के रूप में नियुक्त किया जा सके।


 

 


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Content Writer

Yaspal

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