कौन थे आचार्य सत्येंद्र दास? बाबरी विध्वंस के वक्त रामलला को गोद में लेकर थे भागे, 32 साल तक की रामलला की सेवा
punjabkesari.in Wednesday, Feb 12, 2025 - 01:14 PM (IST)
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नेशनल डेस्क: अयोध्या राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का आज बुधवार की सुबह निधन हो गया। उन्होंने लखनऊ पीजीआई में 87 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली। आचार्य सत्येंद्र दास ने 32 साल तक रामलला की सेवा की और वह बाबरी मस्जिद विध्वंस से लेकर राम मंदिर निर्माण तक के महत्वपूर्ण घटनाओं के साक्षी रहे। उन्होंने टेंट में रामलला के दुर्दिन देखे, जब मंदिर में कोई स्थायी संरचना नहीं थी। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के समय उनके खुशी के आंसू छलके थे और यह उनके समर्पण और रामलला के प्रति आस्था को दर्शाता है।
आचार्य सत्येंद्र दास को रामलला की सेवा का जिम्मा 1992 में तब सौंपा गया, जब बाबरी मस्जिद विध्वंस से कुछ ही महीने पहले उन्हें मुख्य पुजारी के रूप में चयनित किया गया था। रामलला की सेवा उन्होंने टेंट में सर्दी, गर्मी और बारिश में की, जब रामलला के पास केवल एक सेट नया वस्त्र मिला करता था। उनका जीवन रामलला की सेवा में समर्पित था। उनकी बढ़ती उम्र और स्वास्थ्य के बावजूद, जब भी वह चाहते, मंदिर आने जाने में उन्हें कोई शर्त नहीं थी। आचार्य सत्येंद्र दास की 87 साल की उम्र में भी उनके सेवा भाव के कारण, उनके स्थान पर किसी अन्य मुख्य पुजारी का चयन नहीं किया गया।
बाबरी विध्वंस के समय रामलला की रक्षा
आचार्य सत्येंद्र दास के सहायक पुजारी प्रेमचंद्र त्रिपाठी बताते हैं कि बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय आचार्य सत्येंद्र दास ने रामलला के विग्रह को सुरक्षित रखा। घटना के दिन जब कारसेवकों ने विवादित ढांचे को तोड़ना शुरू किया, आचार्य सत्येंद्र दास ने रामलला समेत चारों भाइयों के विग्रह को उठाकर सुरक्षित स्थान पर ले जाकर बचाया। इस दौरान, रामलला के विग्रह को कोई नुकसान नहीं हुआ।
रामलला के प्रति आस्था और समर्पण
आचार्य सत्येंद्र दास ने कुछ दिन पहले कहा था कि उन्होंने रामलला की सेवा में लगभग तीन दशकों तक समय बिताया और भविष्य में भी जब भी अवसर मिलेगा, वह अपनी पूरी जिंदगी रामलला की सेवा में ही बिताना चाहेंगे। यह उनकी गहरी आस्था और समर्पण का प्रमाण है। आचार्य सत्येंद्र दास का जीवन रामलला के प्रति उनकी अगाध श्रद्धा और सेवा भाव से भरा हुआ था और उनका योगदान अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन में अविस्मरणीय रहेगा।
रामलला के मुख्य पुजारी से संत तक का सफर
आचार्य सत्येंद्र दास का जीवन भक्ति और सेवा का प्रतीक बन गया है। उनका जन्म संतकबीर नगर के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बचपन से ही वह धार्मिक प्रवृत्तियों में रुचि रखते थे। 1950 के दशक में उन्होंने अयोध्या का रुख किया और वहां के प्रसिद्ध संत अभिराम दास के शिष्य बन गए। संत अभिराम दास वही संत थे जिन्होंने 1949 में विवादित स्थल पर रामलला की प्रतिमा स्थापित की थी। सत्येंद्र दास ने उनसे प्रेरित होकर साधु बनने का संकल्प लिया और 1958 में घर छोड़कर अयोध्या आ गए।
शिक्षा और अयोध्या में सम्मानित स्थान
सत्येंद्र दास ने 1975 में संस्कृत विद्यालय से आचार्य की डिग्री हासिल की। इसके बाद, 1976 में अयोध्या के संस्कृत महाविद्यालय में सहायक शिक्षक के रूप में नौकरी शुरू की। उनका धार्मिक ज्ञान और शिक्षा ने उन्हें अयोध्या में एक सम्मानित स्थान दिलाया। मार्च 1992 में उन्हें राम जन्मभूमि का पुजारी नियुक्त किया गया। उस समय उन्हें केवल 100 रुपए वेतन मिलता था। हालांकि, उनकी सेवा के दौरान उनका वेतन कई बार बढ़ा। 2018 तक उनका वेतन 12,000 रुपए प्रति माह हो गया, और 2019 में इसे 13,000 रुपए कर दिया गया। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद उनका वेतन बढ़कर 38,500 रुपए कर दिया गया। आचार्य सत्येंद्र दास ने 28 साल टेंट में और 4 साल अस्थायी मंदिर में रामलला की पूजा-अर्चना की। राम मंदिर के निर्माण के बाद भी वे मुख्य पुजारी के रूप में अपनी सेवा देते रहे। बढ़ती उम्र और खराब स्वास्थ्य के बावजूद ट्रस्ट ने उन्हें मंदिर में आने और पूजा करने की पूरी स्वतंत्रता दी थी।
राम मंदिर आंदोलन से गहरा संबंध
आचार्य सत्येंद्र दास का जीवन राम मंदिर आंदोलन से गहरे रूप से जुड़ा हुआ था। उनकी निस्वार्थ भक्ति और सेवा ने उन्हें अयोध्या के इतिहास में अमिट स्थान दिलाया। राम मंदिर निर्माण के समय उन्होंने कहा था, "मुझे नहीं पता कि मैं कब तक रामलला की सेवा कर पाऊंगा, लेकिन जब तक सांस है, मैं रामलला के प्रति अपनी सेवा जारी रखूंगा।" उनके ये शब्द उनकी दृढ़ आस्था और समर्पण को दर्शाते हैं। आचार्य सत्येंद्र दास का जीवन एक प्रेरणा है, जो भक्ति, सेवा और समर्पण का उदाहरण प्रस्तुत करता है।