सिर्फ रावण वध नहीं! Dussehra पर क्यों पूजे जाते हैं अस्त्र-शस्त्र? जानें आयुध पूजा की ऐतिहासिक परंपरा
punjabkesari.in Wednesday, Oct 01, 2025 - 02:13 PM (IST)

नेशनल डेस्क : हिंदू धर्म में विजयादशमी का पर्व विशेष महत्व रखता है। यह दिन न केवल असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है, बल्कि इसी दिन आयुध पूजा यानी अस्त्र-शस्त्र और उपकरणों की पूजा का भी विधान है। पंचांग के अनुसार, इस साल विजयादशमी का पर्व 2 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा।
क्या है आयुध पूजा और इसका महत्व?
आयुध पूजा को शस्त्र पूजा या सरस्वती पूजन भी कहा जाता है। यह परंपरा खासतौर पर दक्षिण भारत और अन्य कई क्षेत्रों में प्रचलित है। इस दिन देवी-देवताओं की पूजा के साथ-साथ अस्त्र-शस्त्र, औजारों, मशीनों और वाहनों की विशेष पूजा की जाती है।
पौराणिक मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने इसी दिन रावण का वध कर अच्छाई की जीत हासिल की थी, वहीं मां दुर्गा ने महिषासुर का संहार करने में जिन अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग किया, वे पूजनीय माने जाते हैं। इस कारण यह दिन विजय और आत्मरक्षा के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
उपकरणों और आजीविका का सम्मान
आयुध पूजा केवल शस्त्रों तक सीमित नहीं है। विद्यार्थी इस दिन अपनी पुस्तकों की, व्यापारी अपने तराजू-बहीखातों की, कलाकार अपने औजारों की और सैनिक अपने हथियारों की पूजा करते हैं। यह परंपरा उन उपकरणों के प्रति आभार व्यक्त करने का माध्यम है जो जीवन में सफलता और आजीविका का आधार हैं।
क्षत्रिय परंपरा और ऐतिहासिक महत्व
ऐतिहासिक रूप से यह दिन क्षत्रिय समुदाय के लिए बेहद अहम रहा है। प्राचीन काल में राजा और योद्धा युद्ध से पहले अपने अस्त्र-शस्त्रों की सफाई, धार और पूजा करते थे ताकि युद्ध में विजय प्राप्त कर सकें। यह परंपरा आज भी कई जगहों पर निभाई जाती है।
विजयादशमी 2025 : आयुध पूजा का शुभ मुहूर्त
दशमी तिथि प्रारंभ : 1 अक्टूबर 2025, शाम 7:01 बजे से
दशमी तिथि समाप्त : 2 अक्टूबर 2025, शाम 7:10 बजे तक
विजय मुहूर्त : 2 अक्टूबर 2025, दोपहर 2:09 बजे से 2:56 बजे तक (कुल 47 मिनट)
पंडितों के अनुसार, विजयादशमी के दिन विजय मुहूर्त में पूजा करना सबसे शुभ माना जाता है, क्योंकि यह समय हर कार्य में सफलता दिलाने वाला होता है।
कैसे करें आयुध पूजा?
पूजा से पहले अस्त्र-शस्त्र या उपकरणों को अच्छी तरह साफ करें।
लाल कपड़ा बिछाकर उन पर गंगाजल छिड़कें और रोली, कुमकुम व चंदन का तिलक लगाएं।
फूल, माला और वस्त्र अर्पित करें, साथ ही मिठाई या नैवेद्य का भोग लगाएं।
अंत में धूप-दीप जलाकर आरती करें और प्रार्थना करें कि ये साधन सदैव आपकी रक्षा करें और सफलता प्रदान करें।