भारत-अमेरिका परमाणु संबंधों में नया मोड़, अमेरिकी सरकार Indian nuclear entities से प्रतिबंध हटाएगी
punjabkesari.in Tuesday, Jan 07, 2025 - 01:12 PM (IST)
इंटरनेशनल डेस्क: सोमवार को, अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका भारतीय परमाणु संस्थाओं पर प्रतिबंध हटाने की प्रक्रिया में है। यह निर्णय भारत के साथ ऊर्जा संबंधों को और गहरा करने और दोनों देशों के बीच 20 साल पुराने परमाणु समझौते को मजबूती देने के उद्देश्य से लिया गया है। 2000 के दशक के मध्य से अमेरिका और भारत के बीच परमाणु रिएक्टरों की आपूर्ति पर चर्चा चल रही है, ताकि भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा कर सके।
साल 2007 का परमाणु समझौता मील का पत्थर
साल 2007 में, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश ने एक ऐतिहासिक परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिससे संयुक्त राज्य अमेरिका को भारत को नागरिक परमाणु प्रौद्योगिकी बेचने की अनुमति मिली। हालांकि, एक प्रमुख समस्या बनी रही: भारत के परमाणु देयता कानूनों को वैश्विक मानकों के अनुरूप लाना, जिसके तहत किसी भी परमाणु दुर्घटना की लागत संयंत्र निर्माता के बजाय ऑपरेटर को दी जानी चाहिए।
नए युग की शुरुआत के साथ परमाणु सहयोग को नया दिशा
नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में सुलिवन ने कहा कि अमेरिका अब उन दीर्घकालिक नियमों को हटाने की दिशा में जरूरी कदम उठा रहा है, जो भारतीय परमाणु संस्थाओं और अमेरिकी कंपनियों के बीच असैन्य परमाणु सहयोग को रोकते हैं। उन्होंने कहा कि जल्द ही औपचारिक कागजी कार्रवाई पूरी हो जाएगी, जिससे भारतीय संस्थाओं को प्रतिबंधित सूचियों से बाहर आने का अवसर मिलेगा।
यह भी पढ़े: माइक्रोसॉफ्ट CEO Satya Nadela और PM Modi की मुलाकात, भारत के AI भविष्य पर हुई चर्चा
इतिहास का प्रतिबंध और प्रगति
साल 1998 में भारत द्वारा परमाणु हथियारों का परीक्षण करने के बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका ने 200 से अधिक भारतीय संस्थाओं पर प्रतिबंध लगा दिए थे। लेकिन द्विपक्षीय संबंधों के सुधार के साथ कई संस्थाओं को सूची से हटा दिया गया है। वर्तमान में, भारत के परमाणु ऊर्जा विभाग की कई इकाइयाँ और कुछ भारतीय परमाणु रिएक्टर और संयंत्र अमेरिकी वाणिज्य विभाग की सूची में शामिल हैं।
भारत का परमाणु मुआवज़ा कानून एक चुनौती
भारत के कड़े परमाणु मुआवज़ा कानून विदेशी बिजली संयंत्र निर्माताओं के लिए एक चुनौती बन गए थे, जिससे कई सौदों में देरी हुई और भारत को साल 2020 से 2030 तक 20,000 मेगावाट परमाणु ऊर्जा जोड़ने के अपने लक्ष्य को स्थगित करना पड़ा। हालांकि, 2019 में भारत और अमेरिका ने भारत में छह अमेरिकी परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनाने पर सहमति व्यक्त की थी, जो ऊर्जा सहयोग की दिशा में एक अहम कदम है।