कनाडा में खालिस्तानियों के बढ़ते प्रभाव से पंजाब में कानून-व्यवस्था पर संकट का खतरा

punjabkesari.in Wednesday, Sep 20, 2023 - 01:58 PM (IST)

नेशनल डैस्क : कनाडा में लगातार ताकतवर हो रहे खालिस्तानियों का पंजाब में राजनीतिक प्रभाव भले ही न पड़े, लेकिन पंजाब में आने वाले दिनों में इससे सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल जरूर खड़े हो सकते हैं और राज्य में एक बार फिर टार्गेट किलिंग की आशंका पैदा हो गई है। 2016 से लेकर 2017 के बीच भी पंजाब में टार्गेट किलिंग की कई घटनाएं हुई थीं, जिनमें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेताओं के अलावा शिवसेना के नेता, डेरा सच्चा सौदा के अनुयायी और ईसाई समुदाय के लोगों को टार्गेट करके हमले किए गए थे। खालिस्तानियों के बढ़ते प्रभाव के कारण सुरक्षा एजैंसियों को एक बार फिर उसी तरह की चिंता सताने लगी है।

2016-17 में हुई टारगेट किलिंग की घटनाएं

18 जनवरी 2016 को लुधियाना में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखा पर किद्दवई नगर में हमला हुआ था, जिसमें संघ के नेता नरेश कुमार पर गोलियां चलाई गई थीं। इसके बाद 3 फरवरी 2016 को लुधियाना में ही शिवसेना नेता अमित अरोड़ा पर हमला किया गया था। 3 अप्रैल 2016 को नामधारी नेता रहे सतगुरु जगदीश सिंह की पत्नी पर अज्ञात मोटरसाइकिल सवारों ने हमला कर दिया था। 23 अप्रैल 2016 को खन्ना में शिवसेना के नेता दुर्गा प्रसाद गुप्ता को दो मोटरसाइकिल सवारों ने गोली मार दी थी। 6 अगस्त 2016 को आर.एस.एस. के पंजाब के उपाध्यक्ष रिटा.ब्रि. जगदीश गगनेजा पर गोलियां चलाई गई थीं और बाद में उनकी मौत हो गई थी। इसी प्रकार 14 जनवरी 2017 को हिंदू तख्त के नेता अमित शर्मा पर लुधियाना में गोलियां चलाई गई थीं और इस घटना में उनकी मौत हो गई थी। 23 फरवरी 2017 को शिवसेना नेता और डेरा सच्चा सौदा के अनुयायी रमेश कुमार को मोटरसाइकिल सवारों ने जगेड़ा गांव में गोली मार दी थी। 17 अक्तूबर 2017 को लुधियाना में आर.एस.एस. के नेता रविंद्र गोसाई की गोलियां मार कर हत्या कर दी गई थी। जबकि 30 अक्तूबर 2017 को हिंदू संघर्ष सेना के नेता विपिन शर्मा पर अमृतसर में सराज सिंह संधू नाम के व्यक्ति ने गोलियां चला दी थी, जिसमें उनकी मौत हो गई थी।

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पंजाब में खालिस्तानी विचारधारा को राजनीतिक रूप से समर्थन नहीं

कनाडा की राजनीति में भले ही खालिस्तानी तत्वों का बड़ा प्रभाव हो, लेकिन पंजाब की राजनीति में खालिस्तानियों को जनता का समर्थन नहीं है। हालांकि पंजाब में एक दौर ऐसा था, जब जनता इस आंदोलन के साथ जुड़ गई थी, लेकिन उसी काले दौर में पंजाब का बहुत नुक्सान हुआ और लिहाजा अब पंजाब में खालिस्तानी मुहिम राजनीतिक रूप से ज्यादा प्रभावी नहीं रह गई है।

खालिस्तानी विचारधारा पर बनी संगरूर के सांसद सिमरनजीत सिंह मान की पार्टी शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) पंजाब की राजनीति में हाशिये की पार्टी होकर रह गई है। 1992 के लोकसभा चुनाव में अकाली दल (अमृतसर) ने 9 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे, जिनमें से उसे 6 सीटों पर जीत हासिल हुई थी और यह पंजाब की राजनीति में काफी प्रभावी हो गई थी। उस समय शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) को 23,18,872 मत मिले थे। जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में इस पार्टी को महज 52155 वोट ही हासिल हुए। 2022 के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने 81 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, जिनमें से 79 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। 
 


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News Editor

Rahul Singh

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