इस देश पर मंडरा रहा बड़ा खतरा... कुछ ही समय में जाएगा डूब! आधी आबादी ने मांगी ऑस्ट्रेलिया से शरण
punjabkesari.in Saturday, Jul 19, 2025 - 07:15 PM (IST)

नेशनल डेस्क: प्रशांत महासागर में स्थित छोटा द्वीप देश तुवालु जलवायु परिवर्तन की सबसे भयावह मार झेल रहा है। समुद्र के बढ़ते स्तर ने अब यहां के लोगों को मजबूर कर दिया है कि वे अपने वजूद और अस्तित्व को बचाने के लिए देश छोड़ें। इसी के तहत दुनिया में पहली बार एक पूरा देश 'योजना बनाकर पलायन' कर रहा है।
आधी आबादी ने मांगी ऑस्ट्रेलिया में पनाह
16 जून से 18 जुलाई 2025 के बीच ऑस्ट्रेलिया ने तुवालु के लिए विशेष जलवायु वीजा का आवेदन खोला। केवल एक महीने में 5,157 तुवालुवासियों ने ऑस्ट्रेलिया में बसने के लिए आवेदन कर दिया — यह संख्या देश की कुल आबादी (करीब 11,000) का लगभग आधा हिस्सा है। अब हर साल 280 तुवालु नागरिकों को ऑस्ट्रेलिया में स्थायी निवास की अनुमति दी जाएगी। वहां उन्हें काम करने, पढ़ाई करने, स्वास्थ्य सुविधाएं लेने और ऑस्ट्रेलिया में नागरिकों जैसे अधिकार मिलेंगे।
समुद्र निगल रहा है तुवालु की जमीन
तुवालु नौ छोटे एटॉल (मूंगा से बने द्वीपों) से मिलकर बना देश है, जिसकी औसत ऊंचाई मात्र 2 मीटर है। पिछले 30 वर्षों में समुद्र का स्तर 15 सेमी (6 इंच) तक बढ़ चुका है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि:
- 2050 तक देश का 50% हिस्सा हर दिन पानी में डूब सकता है
- 2100 तक 90% भूमि समुद्र में समा सकती है
समुद्र का खारा पानी अब ताजे जल के स्रोतों में घुस रहा है, जिससे न केवल पीने का पानी बल्कि खेती भी प्रभावित हो रही है। लोगों को फसलें जमीन से ऊपर उगानी पड़ रही हैं, लेकिन यह समाधान अस्थायी है।
तुवालु-ऑस्ट्रेलिया संधि: ‘फालेपिली यूनियन’
2023 में तुवालु और ऑस्ट्रेलिया के बीच फालेपिली यूनियन (Falepili Union) नामक ऐतिहासिक समझौता हुआ, जो 2024 में प्रभावी हुआ। यह दुनिया का पहला समझौता है, जिसमें जलवायु संकट से प्रभावित एक संप्रभु राष्ट्र के नागरिकों के व्यवस्थित और वैध पलायन की व्यवस्था की गई है।
पहचान बनाम अस्तित्व की जंग
तुवालु के लोग अपनी संस्कृति और जमीन से गहराई से जुड़े हैं। हालांकि अब यह जुड़ाव संकट में है। कुछ नागरिकों ने साफ कहा है कि वे कभी अपना देश नहीं छोड़ेंगे, वहीं युवा बेहतर भविष्य की तलाश में पलायन के लिए तैयार हैं। यह पलायन केवल जलवायु संकट नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक संकट भी है, क्योंकि एक पूरे देश की पहचान मिटने के कगार पर है।
चिंता का विषय: ब्रेन ड्रेन और असमानता
हर साल सीमित लोगों के पलायन की अनुमति से यह खतरा भी है कि सबसे सक्षम, पढ़े-लिखे और कुशल लोग पहले जाएंगे। पीछे छूटे लोगों के लिए तुवालु में जीवन और कठिन होता जाएगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह ‘सम्मानजनक पलायन’ है, लेकिन अगर देश की 40% जनसंख्या अगले 10 वर्षों में चली गई तो यह मस्तिष्क पलायन (Brain Drain) का बड़ा उदाहरण बन सकता है।