अपने हक के लिए लड़ रहे 130 दलित परिवार, मंदिर में पूजा के लिए पैसा देने के बावजूद भी नहीं मिल रही एंट्री

punjabkesari.in Saturday, Mar 08, 2025 - 09:47 PM (IST)

नेशनल डेस्क : पश्चिम बंगाल में पूर्व बर्धमान जिले के एक गांव में धमकी और बहिष्कार का सामना करते हुये हाशिये पर धकेल दिये गये लगभग 130 दलित परिवारों को तीन शताब्दियों से चली आ रही जाति-आधारित भेदभावपूर्ण परंपरा को समाप्त करने तथा भगवान की पूजा करने का संविधान प्रदत्त अधिकार हासिल करने के लिए अब बस पुलिस एवं जिला प्रशासन से आस है। गिधग्राम गांव के दासपारा क्षेत्र के ये सभी परिवार पारंपरिक रूप से मोची और बुनकर समुदाय से संबंधित हैं। उनका आरोप है कि मंदिर समिति और अन्य ग्रामीण इस आधार पर एकमात्र उपासना स्थल गिधेश्वर शिव मंदिर में नहीं घुसने देते हैं क्योंकि वे ‘निम्न जाति' से हैं। भेदभाव के शिकार ये लोग ‘इस लड़ाई को अंत तक ले जाने' की योजना बना रहे हैं।

उनका कहना है कि यदि राज्य प्रशासन संकट का समाधान करने में विफल रहता है तो वे कानूनी सहायता भी ले सकते हैं। स्थानीय लोगों ने दावा किया कि आधुनिक बंगाल में यह भेदभावपूर्ण प्रथा लगभग अनसुनी है तथा संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है। यह अनुच्छेद मौलिक अधिकार के रूप में नागरिकों को पूजा करने और समान स्वतंत्रता की गारंटी प्रदान करता है लेकिन लगभग 300 साल जब पहले यह मंदिर बना था, तब से इस अनुच्छेद का कथित रूप से उल्लंघन हो रहा है। हाल में 26 फरवरी को शिवरात्रि के दौरान दलित परिवारों को मंदिर में प्रवेश की अनुमति देने के लिए दो विधायकों की उपस्थिति में पुलिस और प्रशासन ने हस्तक्षेप किया था तथा दोनों विरोधी समुदायों के बीच कागजी समझौता भी कराया गया था लेकिन बात नहीं बनी।

दरअसल, इस मामले ने जमीनी स्तर पर तनाव बढ़ा दिया है, जिसके कारण पुलिस एवं प्रशासन फिलहाल कथित तौर पर ‘सुरक्षित रुख' अपना रहे हैं। वंचित लोगों का आरोप है कि उनका आर्थिक बहिष्कार भी किया गया है। वे फिलहाल खेतिहर मजदूर के रूप में काम करते हैं और ग्राम डेयरी केंद्र में पशुपालन करते हैं। इसकी शुरुआत 24 फरवरी को छह परिवारों द्वारा कटवा के एसडीओ को लिखित अपील देने के साथ हुई, जिसमें उन्होंने शिवरात्रि पर मंदिर में पूजा करने के अपने निर्णय की जानकारी दी और प्रशासन से सुरक्षा की मांग की। तब प्रशासन ने मंदिर में उनके प्रवेश पर रोक संबंधी इस मध्ययुगीन प्रथा पर ध्यान देने के लिए कदम उठाया।

इस अपील में कहा गया है, ‘‘जब भी हम पूजा करने जाते हैं तो हमे गालियां दी जाती हैं, हमारे साथ बुरा व्यवहार किया जाता है और हमें मंदिर से बाहर निकाल दिया जाता है। गांव वालों का एक वर्ग कहता है कि हम अछूत मोची हैं और निम्न जाति के हैं, इसलिए हमें मंदिर में जाने का कोई अधिकार नहीं है। अगर हम मंदिर में भगवान महादेव की पूजा करेंगे तो वह अपवित्र हो जाएंगे।'' यह अपील बांग्ला भाषा में की गयी है।

पीड़ित लगातार प्रतिरोध के कारण शिवरात्रि की पूजा करने में असफल रहे, लेकिन 28 फरवरी को एक प्रशासनिक बैठक में पीड़ित परिवारों को भविष्य में मंदिर में पूजा की अनुमति देने के लिए एक हस्ताक्षरित प्रस्ताव पारित किया गया। इस बैठक में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के कटवा और मंगलकोट के विधायक, एसडीओ और एसडीपीओ (कटवा), एक स्थानीय सामुदायिक विकास अधिकारी और मंदिर समिति और दास परिवारों के छह-छह सदस्य शामिल हुए।

प्रस्ताव में कहा गया है,‘‘... इस देश में सभी जाति और धर्म के सभी नागरिक समान हैं और सभी को मंदिर में प्रवेश कर पूजा करने का समान अधिकार है।'' लेकिन यह प्रस्ताव कागज़ पर ही रह गया है और अभी तक लागू नहीं हुआ है। इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने वाले एक्कोरी दास ने ‘पीटीआई-भाषा' से कहा, ‘‘अगले ही दिन पुलिस ने एक फोनकर हमसे शिवरात्रि मेले के चलते मंदिर न जाने के लिए कहा । उसने कहा कि इससे कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है। हमारे पास उनकी बात मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।''

मंदिर समिति के सदस्य और प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने वालों में शामिल दीनबंधु मंडल ने कहा, ‘‘उन्होंने प्राचीन परंपरा का पालन करते हुए कभी मंदिर के अंदर पैर नहीं रखा है। इस गांव में कोई भी इस सदियों पुरानी परंपरा को तोड़ना नहीं चाहता। अगर वे जबरन अंदर घुसने की कोशिश करेंगे तो गांव में अशांति फैल सकती है। प्रशासन को सावधानी से काम करना चाहिए।'' 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

News Editor

Parveen Kumar

Related News