अपराध के लिए दंड नहीं, अब मिलेगा न्याय, देश में लागू हुए नए क्रिमिनल लॉ
punjabkesari.in Monday, Jul 01, 2024 - 12:44 PM (IST)

नेशनल डेस्क: भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनयम लागू होने के साथ देश में त्वरित इन्साफ मिलने और तंत्र को जवाबदेह बनाने की राह सुनिश्चित होगी। इन कानूनों ने पहली बार आपराधिक न्याय प्रणाली में ऐसे सुधार किए हैं जो समाज में व्यापक बदलाव लाने वाले साबित हो सकते हैं। न्याय अब तय समय में मिलेगा और खास बात है कि इसके लिए दर-दर की ठोकर नहीं खानी होगी। घर बैठे एफआईआर से लेकर मुकदमों की अपने फोन पर जानकारी हासिल करने तक टेक्नोलॉजी का व्यापक इस्तेमाल किया जाएगा।
1. महिलाओं और बच्चों की बढ़ेगी सुरक्षा
महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित काने के लिए उनके प्रति अपराधों के खिलाफ विशेष ध्यान दिया गया है। इसमें यौन अपराधों में निपटने के लिए महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध नाम से नया अध्याय जोड़ा गया है। नाबालिग बच्चियों से दुष्कर्म को पॉक्सो के साथ जोड़ा गया है। ऐसे अपराधों में उम्रकैद से मृत्युदंड तक का प्रावधान है। नाबालिग के साथ सामूहिक दुष्कर्म को नए अपराध की श्रेणी में रखा गया है। सामूहिक दुष्कर्म के सभी मामलों में 20 साल की मजा या आजीवन कारावास का प्रावधान। धोखे से यौन यौन संबंध बने या शादी करने के सची इरादे के बिना विवाह करने का वादा करने वालों पर लक्षित दंड का प्रावधान है।
2. संगठित अपराध: पहली बार व्याख्या
- पहली बार संगठित अपराध की व्याख्या की गई है।
- सिंडिकेट बनाकर की गई कानून विरुद्ध गतिविधियों को दंडनीय बनाया गया है। संगठित अपराध से होने परमुत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा का प्रवधान। 10 लाख रुपये या उससे अधिक का जुर्माना। ऐसे अपराधों में मदद करने वालों के लिए सना का प्रावधान।
- सहस्त्र विद्रोह, विध्वंसक और अलगाववादी गतिविधियों को भारत की संप्रभता, एकता एवं अखंडता को खतरे में डालने बाले कृत्यों से जोड़ा गया है। छोटी संगठित आपराधिक गतिविधियों में सात साल की कैद का प्रावधान है।
3. आर्थिक अपराध
करेंसी नोट, बैंक नोट और सरकारी चताना या किसी बैंक वित्तीया में गड़बड़ीक अपराध है।
4. भीड़ हिंसा: आजीवन कारावास या मृत्युदंड
- नस्ल, जाति और समुदाय को आधार बनाकर की गई हत्या से संबंधित अपराध का प्रावधान। इसके लिए आजीवन काराकस या मृत्युदंड।
- स्नैचिंग जैसे अपराधों के नया प्रावधान।
- गंभीर चोट के कारण निष्क्रिय स्थिति में जाने या स्थायी दिव्यांगता पर और कठोर दंड का प्रावधान।
5. आतंकवाद की पहली बार व्याख्या: मिलेगा मृत्युदंड या आजीवन कारावास... पैरोल नहीं
- पहली बार आतंकवाद की व्याख्या की गई है। इसके तहत जो कोई भी भारत की एकता, खंडता संप्रभुता सुरक्षा या आर्थिक सुरक्षा को संकट में डालने या संकट में डालने की मंशा से देह वा विदेश में लोगों या लोगों के किसी वर्ग में आतंक फैलाने में आतंक फैलाने के मंसूबे में बम, डायनामाइट, विस्फोटक बिषैली गैसो, आणविक या रेडियोधर्मी पदायों का इस्तेमाल कर ऐसा कार्य करता है, जिससे किसी व्यक्ति या व्यक्तियों की मृत्यु होती है, संपत्ति को नुकसान होता है या करेंसी के निर्माण या उसकी तस्करी या परिचालन हो तो इन्हें आतंकवादी गतिविधियां माना जाएगा।
- सार्वजनिक सुविधाओं या निजी संपति को नष्ट करना अपराध है। इसमें ऐसे कृत्यों को भी शामिल किया है, जिनमें महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की विनाश के कारण व्यापक हानि होती है।
- जातंकवादी गतिविधियों के लिए मृत्युदंड या आजीवन कारावास का प्रावधान है। इसमें पैरोल नहीं मिलेगा।
6. देशद्रोह : राजद्रोह कानून की लेगा जगह
• ऐसा कोई भी कृत्य, जिससे देश की सुरक्षा और संप्रभुता पर आंच आती हो, देश में आर्थिक संकट की आशंका बनती हो... अब देशद्रोह के दायरे में आएंगे। नए कानून में राजद्रोह को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है।
• अलगाववादी गतिविधियों को भावनाओं को प्रोत्साहित करना भी धारा-152 के तहत अपराध होगा।
• सरकार की आलोचना कर सकते हैं, लेकिन देश की आलोचना अपराध होगा।
• देशद्रोह की परिभाषा में आशय या प्रयोजन की बात है, जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सेफगार्ड मिला है। पुराने कानून यानी आईपीसी में आशय या प्रयोजन की बात नहीं थी।
• घृणा और अवमानना जैसे शब्दों को हटाकर सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक व अलगाववादी गतिविधियों जैसे शब्द जोड़े गए हैं।
तय अवधि में मिलेगा न्याय
आपराधिक कार्यवाही की शुरुआत करने, गिरफ्तारी, जांच, आरोप तय करने, मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही, संज्ञान, प्ली बारगेनिंग, सहायक लीक अभियोजक की नियुक्ति, ट्रायल, जमानत, फैसला च सजा, दया याचिका के लिए समय-सीमा निधर्धारित को गई है। इसका मकसद तेज रफ्तार से न्याय देना है।
- व्हाट्सएप जैसे अन्य इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन माध्यमों से शिकायत करने पर तीन दिन के भीतर एफआईआर को रिकॉर्ड पर लिया जाएगा।
- मजिस्ट्रेट की ओर से आरोप की पहली सुनवाई से 60 दिनों के भीतर आरोप तय करना होगा।
- किसी भी आपराधिक न्यायालय में मुकदमा खत्म होने के बाद फैसले की घोषणा अधिकतम 45 दिन में करनी होगी।
- सत्र न्यायालय को बहस पूरी होने के 30 दिनों के भीतर बरी करने या दोषसिद्धि पर अपना फैसला सुनाना होगा। यह अवधि 45 दिनों तक बढ़ाई जा सकती है।