जिस रानी के लिए भंसाली को पड़ा थप्पड़, जानें क्या है उस पद्मावती की असली कहानी
punjabkesari.in Sunday, Jan 29, 2017 - 01:43 PM (IST)

मुंबई: पूरे बॉलीवुड ने जयपुर के जयगढ़ किले में फिल्म ‘पद्मावती’ की शूटिंग के दौरान निर्माता-निर्देशक संजय लीला भंसाली पर हुए हमले की कड़ी निंदा की है। जयगढ़ किले में अपनी नई फिल्म ‘पद्मावती’ की शूटिंग कर रहे निर्देशक भंसाली पर राजपूत समुदाय के कार्यकर्त्ताओं ने शुक्रवार को हमला कर दिया था। समूचे बॉलीवुड ने इस हमले की निंदा करते हुए पूरी फिल्म इंडस्ट्री से इस हमले के खिलाफ खड़े होने और कलाकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एकजुट होने की मांग की है। बता दें कि करणी सेना के लोगों का आरोप है कि भंसाली अपनी फिल्म में रानी पद्ममिनी (पद्मावती) के जीवन से जुड़े तथ्यों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। रानी पद्मिनी के जीवन को आज भी राजस्थान में पढ़ाया जाता है, गौरव बताया जाता है और देश दुनिया से आने वाले पर्यटकों को चित्तौड़गढ़ के किले में वह स्थान दिखाए, बताए और समझाए जाते हैं जहां पर सुल्तान खिलजी ने उन्हें देखा था।
यह है रानी पद्मावती का इतिहास
12वीं और 13वीं सदी में दिल्ली पर सल्तनत का राज था। विस्तारवादी नीति के तहत सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए मेवाड़ पर कई आक्रमण किए। इन आक्रमणों में से एक आक्रमण खिलजी ने सुंदर रानी पद्मिनी (Padmini or Padmavati) को पाने के लिए किया था। ये कहानी खिलजी के इतिहासकारों ने किताबों में लिखी थी। कुछ इतिहासकार इस कहानी को गलत बताते हैं, उनका कहना है कि ये कहानी मुस्लिमों ने राजपूतों को उकसाने के लिए लिखी थी। कहानी के अनुसार, पद्मावती चित्तौड़ की रानी थी। रानी पद्मावती के साहस और बलिदान की गौरवगाथा इतिहास में अमर है। सिंहल द्वीप के राजा गंधर्व सेन और रानी चंपावती की बेटी पद्मावती की शादी चित्तौड़ के राजा रतनसिंह के साथ हुई थी। रानी पद्मावती बहुत खूबसूरत थी और उनकी खूबसूरती पर एक दिन दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की बुरी नजर पड़ गई। खिलजी के भीतर रानी पद्मिनी से मिलने की इच्छा जागी। राजपूतों के बारे में खिलजी पहले से ही जानता था और इसलिए उसने अपनी सेना को चित्तोड़ कूच करने को कहा। कहा जाता है कि खिलजी का सपना रानी पद्मिनी को अपने हरम में रखना था।
पानी में परछाई देख मोहित हो गया था खिलजी
चित्तौड़गढ़ किले की घेरेबंदी के बाद खिलजी ने राजा रतन सिंह को ये कहकर संदेशा भेजा कि वह रानी पद्मिनी को अपनी बहन समान मानता है और उससे मिलना चाहता है। सुल्तान की बात सुनते ही रतन सिंह ने अपना राज्य बचाने के लिए उसकी बात मान ली लेकिन रानी तैयार नहीं थी। उसने एक शर्त रखी कि रानी पद्मिनी ने कहा कि वह अलाउद्दीन को पानी में परछाईं में अपना चेहरा दिखाएंगी। जब अलाउदीन को ये खबर पता चली कि रानी पद्मिनी उससे मिलने को तैयार हो गई है वह अपने कुछ सैनिकों के किले में गया। कहा जाता है कि रानी पद्मिनी की सुंदरता को पानी में परछाईं के रूप में देखने के बाद खिलजी ने रानी पद्मिनी को अपना बनाने की ठान ली। वापस अपने शिविर में लौटते वक़्त खिलजी के साथ रतन सिंह भी थे। इस दौरान खिलजी के सैनिकों ने आदेश पाकर और मौका देखकर रतन सिंह को बंदी बना लिया। रतन सिंह की रिहाई की शर्त थी पद्मिनी।
सेनापति गोरा और बादल ने छुड़ाया था राजा रतन सिंह को
किले में चौहान राजपूत सेनापति गोरा और बादल ने खिलजी को हराने के लिए एक योजना बनाई और खिलजी को संदेशा भेजा कि अगली सुबह पद्मिनी को सुल्तान को सौंप दिया जाएगा। कहा जाता है कि अगले दिन सुबह भोर होते ही 150 पालकियां किले से खिलजी के शिविर की तरफ रवाना की गईं। पालकियां वहां रुक गईं जहां पर रतन सिंह को बंदी बनाकर रखा गया था। अचानक इन पालकियों से सशस्त्र सैनिक निकले और रतन सिंह को छुड़ा लिया और खिलजी के अस्तबल से घोड़े चुराकर भाग निकले। बताया जाता है कि गोरा इस मुठभेड़ में बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ जबकि बादल, रतन सिंह को सुरक्षित किले में तक ले गए।
वीरगति को प्राप्त हुए रतन सिंह
अपने को अपमानित और धोखे में महसूस करते हुए खिलजी ने गुस्से में आकर अपनी सेना को चित्तौड़गढ़ किले पर आक्रमण करने का आदेश दिया। किला मजबूत था और सुल्तान की सेना किले के बाहर ही डट गई। खिलजी ने किले की घेराबंदी कर दी और किले में खाद्य आपूर्ति धीरे-धीरे समाप्त हो गई। मजबूरी में रतन सिंह ने द्वार खोलने का आदेश दिया और युद्ध के लिए ललकारा। रतन सिंह की सेना अपेक्षानुसार खिलजी के लड़ाकों के सामने ढेर हो गई और खुद रतन सिंह वीरगति को प्राप्त हुए।
आबरू बचाने के लिए अग्निकुंड में कूद गईं थी पद्मावती
रतन सिंह की वीरगति की सूचना पाकर रानी पद्मिनी (पद्मावती) ने चित्तौड़ की औरतों से कहा कि अब हमारे पास दो विकल्प हैं या तो हम जौहर कर लें या फिर विजयी सेना के समक्ष अपना निरादर सहे। बताया जाता है कि सभी महिलाओं की एक ही राय थी। एक विशाल चिता जलाई गई और रानी पद्मिनी के बाद चित्तौड़ की सारी औरतें उसमें कूद गईं और इस प्रकार दुश्मन बाहर खड़े देखते रह गए। देखते ही देखते सभी ने जोहर कर दिया मेवाड़ के इस जोहर को आज भी लोकगीतों में याद किया जाता है।