लोकतंत्र का नया चेहरा... अमृतपाल सिंह का जेल से संसद तक का सफर, सलाखों से कैसे करेंगे शपथ ग्रहण ?

punjabkesari.in Thursday, Jun 06, 2024 - 12:08 PM (IST)

नेशनल डेस्क: भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में एक अनूठी घटना सामने आई है, जहां दो कट्टरपंथी नेता जेल से चुनाव जीतकर संसद पहुंच रहे हैं। तिहाड़ जेल में बंद इंजीनियर शेख अब्दुल राशिद ने बारामूला सीट से निर्दलीय चुनाव जीत लिया है। वहीं, असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद वारिस पंजाब दे के मुखिया अमृतपाल सिंह ने पंजाब की खडूर साहिब सीट से जीत दर्ज की है। अब सवाल यह है कि ये दोनों संसद में शपथ ग्रहण कैसे करेंगे। दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद हैं इंजीनियर शेख अब्दुल राशिद। उन्हें गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत जेल में रखा गया है। वहीं से शेख अब्दुल राशिद ने बारामूला सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा और बाजी मार भी ली। ऐसे ही असम की डिब्रूगढ़ जेल में वारिस पंजाब दे के मुखिया और अलगाववादी नेता अमृतपाल सिंह को रखा गया है। 

कानून की राह से संसद तक
भले ही ये दोनों नेता कानून का उल्लंघन करने के आरोप में जेल में हैं, लेकिन अब इन्हें कानून के दायरे में रहकर ही संसद तक पहुंचना होगा। शपथ ग्रहण के लिए उन्हें अदालत से अनुमति लेनी होगी। अनुमति मिलने पर ही कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच इन्हें संसद लाया जाएगा। 

प्रक्रिया की शुरुआत
शपथ ग्रहण के लिए सबसे पहले स्पीकर की ओर से जेल अधीक्षक को निमंत्रण भेजा जाएगा। चूंकि दोनों नेता न्यायिक हिरासत में हैं, इसलिए जेल अधीक्षक को अदालत से अनुमति लेनी होगी। अदालत की अनुमति मिलने पर ही इन्हें सुरक्षा घेरे में संसद लाने की प्रक्रिया शुरू होगी।

सुरक्षा व्यवस्था
जेल अधिकारियों के अनुसार, अदालत की अनुमति मिलने पर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की जाएगी। एसीपी और इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी इन नेताओं को एस्कॉर्ट कर संसद तक ले जाएंगे। संसद के गेट पर पहुंचने के बाद संसद की सुरक्षा टीम इन्हें अंदर ले जाएगी।

अधिकार और शर्तें
संसद के अंदर पहुंचते ही इन नेताओं को अन्य सांसदों के समान अधिकार मिल जाएंगे। हालांकि, हर बार संसद सत्र में शामिल होने के लिए या शपथ ग्रहण समारोह के लिए इन्हें अदालत से अनुमति लेनी होगी। पुलिस सुरक्षा घेरे में इन्हें संसद लाया और वापस जेल ले जाया जाएगा। भारत के लोकतंत्र में यह घटना एक नया अध्याय जोड़ रही है, जहां जेल में बंद दो कट्टरपंथी नेता संसद तक का सफर तय कर रहे हैं। अब देखना यह होगा कि संसद और न्यायपालिका इस चुनौती का सामना कैसे करती हैं और लोकतंत्र की गरिमा को बनाए रखते हुए इन घटनाओं से कैसे निपटती हैं।

 


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Content Editor

Mahima

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