हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: बेटा या पत्नी? किसे मिलेगी परिवार का पेंशन, जानें क्या कहता है कानून

punjabkesari.in Wednesday, Nov 26, 2025 - 04:04 PM (IST)

नेशनल डेस्क: परिवार पेंशन को लेकर अक्सर परिवारों में विवाद खड़े हो जाते हैं। किसे हक़ मिलेगा, पत्नी को या बेटे को। इसी तरह का एक मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट तक पहुंचा और कोर्ट ने ऐसा फैसला सुनाया, जिसने हजारों सरकारी कर्मचारियों के परिवारों के लिए स्थिति बिल्कुल स्पष्ट कर दी। अदालत ने कहा परिवार पेंशन न किसी की निजी संपत्ति है, न ही वसीयत की तरह बांटी जा सकती हैं। यह एक कानूनी अधिकार है जो नियमों के अनुसार ही तय होता है।

क्या था मामला?
यह मामला सहायक शिक्षक रहे प्रभु नारायण सिंह की मृत्यु के बाद शुरू हुआ। उनकी पत्नी ने परिवार पेंशन के लिए आवेदन किया, लेकिन विभाग ने इसे ठुकरा दिया। वजह यह बताई गई कि शिक्षक ने अपनी पत्नी की जगह अपने बेटे अतुल कुमार सिंह को नॉमिनेट कर रखा था। विभाग ने यह भी कहा कि पेंशन फॉर्म के पत्नी की फोटो नहीं थी, इसलिए वह पात्र नहीं मानी जा सकतीं। पत्नी ने इस निर्णय को गलत बताते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की। उनके पास ग्राम प्रधान का विवाह प्रमाण पत्र था, साथ ही फैमिली कोर्ट का वह आदेश भी, जिसमें पति को 2015 में उन्हें ₹8,000 मासिक भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था।

कोर्ट का स्पष्ट रुख: 'पेंशन निजी संपत्ति नहीं'
हाईकोर्ट ने U.P. Retirement Benefit Rules, 1961 और Civil Service Regulations का अध्ययन करते हुए साफ कहा कि—
परिवार पेंशन का हक़ नियमों से तय होता है, नॉमिनेशन से नहीं।


नियमों के अनुसार:
अगर मृत कर्मचारी पुरुष हो
➤ तो परिवार पेंशन की पहली हक़दार उसकी कानूनी पत्नी (eldest surviving widow) होती है।
➤ यह व्यवस्था नियम 7(4) में स्पष्ट रूप से दर्ज है।
➤ बेटे का नॉमिनेशन क्यों अस्वीकार हुआ?
➤ कोर्ट ने पाया कि मृत शिक्षक के बेटे की उम्र मृत्यु के समय लगभग 34 वर्ष थी।


नियमों के मुताबिक:
➤ बेटा तभी परिवार पेंशन का पात्र होता है जब
➤ वह नाबालिग हो, या आर्थिक रूप से पूरी तरह निर्भर हो।
➤ 34 वर्ष की उम्र में बेटा न तो आश्रित माना जा सकता है और न ही पेंशन पाने का अधिकारी।
➤ इसलिए नॉमिनेशन होने के बावजूद बेटे को पेंशन नहीं दी जा सकती।


नॉमिनेशन क्यों महत्वपूर्ण नहीं?
नियम 6 में कहा गया है कि कर्मचारी परिवार पेंशन के लिए परिवार के सदस्यों का नॉमिनेशन कर सकता है, लेकिन—
नॉमिनेशन प्राथमिकता क्रम को नहीं बदल सकता।
➤ पत्नी/पति
➤ बच्चे
➤ माता-पिता
➤ इस क्रम का पालन अनिवार्य है।
➤ इसलिए कर्मचारी चाहे किसी को भी नॉमिनेट करे,
➤ पत्नी का हक़ पहले आता है, यदि वह जीवित है और कानूनी रूप से विवाहित है।


पत्नी की स्थिति—अदालत ने माना 'पूरी तरह निर्भर'
➤ कोर्ट ने यह भी देखा कि:
➤ पत्नी 62 वर्ष की थीं
➤ उनके पास आय का कोई अन्य साधन नहीं था
➤ पति उन्हें वर्षों से भरण-पोषण राशि दे रहे थे


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Content Editor

Mansa Devi

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