जब गांधी जी को दूध में दिया गया था जहर, इस बावर्ची ने बचाई थी जान

punjabkesari.in Thursday, Feb 01, 2018 - 01:07 AM (IST)

नेशनल डेस्क: 30 जनवरी 1948 की शाम को राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी की हत्‍या कर दी गई थी। बापू नई दिल्ली स्थित बिड़ला भवन में हमेशा की तरह सांयकालीन प्रार्थना के लिए जा रहे थे, तभी नाथूराम गोड्से नाम के व्यक्ति ने पहले उनके पैर छुए और फिर सामने से उन पर बैरेटा पिस्‍तौल से तीन गोलियां दाग दीं। उस समय गांधी जी अपने अनुयायियों से घिरे हुए थे।

बहुत कम लोग जानते हैं कि गोड्से के अलावा गांधी जी को एक और शख्‍स ने मारने की कोशिश की थी। यह साजिश एक अंग्रेज ने रची थी, लेकिन यह सफल नहीं हो पाई।  हत्‍या के इस षडयंत्र से उन्‍हें बचाने वाले एक देशभक्त बावर्ची था, जिसके बारे में भी कम ही लोग जानते हैं।
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दरअसल, बात 1917 की है, जब नील के किसानों का आन्दोलन चरम सीमा पर था। अंग्रेजों का आतंक चरम पर था। आंदोलन के समर्थन में गांधी जी बिहार के मोतिहारी दौरे पर गए हुए थे। दक्षिण अफ्रीका से वापस लौटने के बाद बापू का यह पहला जन-आंदोलन था। यही वह जगह थी, जहां से उन्होंने पहली बार अंग्रेजों के सामने विरोध का आवाह्न किया था। उस समय मोतिहारी के जिला अधिकारी लॉर्ड इरविन थे।
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गांधी जी के मोतिहारी पहुंचने की खबर मिलते ही इरविन ने उन्‍हें भोजन के लिए आमंत्रित किया। बापू ने उनका निमंत्रण सहर्ष स्वीकार भी कर लिया। वे इरविन के घर पर पहुंचे, उसके पहले ही इरविन ने अपने बावर्ची बटक मियां को दूध में जहर मिला कर गांधी जी को पिला देने का हुक्‍म दिया। इरविन के डर के कारण उन्होंने दूध में जहर तो मिला दिया, पर उनका ह्रदय रो रहा था, और जब दूध का प्याला ले कर वे गांधी जी के पास पहुंचे तब उन्होंने दूध में जहर होने की बात से बापू को चुपके से अवगत कर दिया। उनका इशारा समझते हुए बापू ने दूध पीने से इंकार कर दिया और इसके साथ ही इरविन की साजिश नाकामयाब हुई।
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भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद इस घटना से परिचित थे। इस बात के तीन दशक के बाद देश आजाद हुआ। 1950 में जब वे चंपारण के दौरे पर थे, उस वक्त भी उन्‍हें ये बात याद थी कि बटक मियां ने गांधी जी की जान बचाई थी। उन्होंने सब के सामने बटक मियां का सम्‍मान किया। बटक मियां बेहद गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहे थे। उनकी हालत देखते हुए डॉ.राजेंद्र प्रसाद ने 35 बीघा जमीन उनके नाम करने का आदेश किया।
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गौरतलब है कि देश के प्रथम राष्‍ट्रपति का वह आदेश सरकारी फाइलों तक ही सीमित रह गया। बटक मियां ने कई प्रयास किए पर उन्‍हें अपना हक़ मिलने से रहा। आलम यह हुआ कि राष्ट्रपिता गांधी जी का जीवन बचाने वाले बटक मियां अपने हक़ के लिए संघर्ष करते हुए ही 1957 में मृत्यु के आगोश में चले गए।

उनके देहांत के तक़रीबन चार साल बाद उनके परिवार को जमीन तो दी गई, पर बहुत ही कम। उनके इकलौते बेटे महमूद जान अंसारी भी 2002 में चल बसे। 2004 में बिहार विधानसभा में ये बात रखी गईं। वहां के सांसद जाबिर हुसैन के मुताबिक उन्होंने पश्चिम बिहार के बेतिया गांव में बटक मियां की याद में एक संग्रहालय बनवाया है, पर वे तो दुखी होते हुए ही दुनिया छोड़ चले। 2010 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल ने उन्‍हें उनका हक दिलाने के लिए भी आश्वस्त किया था।


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