मौत के बाद तस्लीमा नसरीन का शरीर नहीं दफनाया जाएगा
punjabkesari.in Tuesday, May 22, 2018 - 08:16 PM (IST)
नेशनल डेस्कः मशहूर बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन अक्सर अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में रहती हैं। एक बार फिर वह अपने बयान को लेकर चर्चा में हैं। तस्लीमा ने मौत के बाद अपने शरीर को दफनाने की बजाय एम्स में रिचर्स के लिए दान देने का फैसला किया है। उन्होंने मंगलवार को अपने ट्विटर अकाउंट पर यह जानकारी दी। लेखिका ने अपने ट्वीट में एम्स के डिपार्टमेंट ऑफ एनॉटमी की डॉनर स्लिप भी साझा की। लोगों ने तस्लीमा के इस नेक काम की जमकर तारीफ की और ट्विटर पर जमकर प्रतिक्रिया दी।
I have donated my body after death to AIIMS for scientific research and teaching purpose. pic.twitter.com/jq1KNLZCZQ
— taslima nasreen (@taslimanasreen) May 22, 2018
Hearty congrats on a noble and courageous decision.
— Priya Kannan (@Priyakannan_pk) May 22, 2018
बंग्लादेश मूल की लेखिका तस्लीमा नसरीन फेमिनिज्म और फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन के मुद्दे पर बेहद मुखर रहीं हैं। इसकी वजह से वह कट्टरपंथियों के निशाने पर भी रहती हैं। साल 1962 में जन्मी तस्लीमा पेशे से एक फिजीशियन हैं और उन्हें स्वीडन की नागरिकता भी प्राप्त है।
कट्टरपंथियों ने किया था इनाम का ऐलान
उन्होंने अपने उपन्यास लज्जा में इस्लाम पर की गई टिप्पणी से तस्लीमा ने कट्टरपंथी मुस्लिमों को नाराज कर दिया था। जिसके बाद कट्टरपंथी मुस्लिमों के निशाने पर आ गई और उन्होंने नसरीन की मौत पर इनाम का ऐलान भी कर दिया, जिसके बाद तस्लीमा साल 1994 में बांग्लादेश छोड़कर स्वीडन में बस गई। वह साल 2005 में भारत आ गई, तब से नसरीन यहां निर्वासित जीवन यापन कर रही हैं।
इस्लाम को लेकर भी रही हैं चर्चा में
कुछ साल पहले तस्लीमा एक बार फिर चर्चा में आ गई थी, जब ढाका में कुछ आतंकियों ने एक रेस्टोरेंट में हमला कर 20 लोगों की हत्या कर दी थी। तब तस्लीमा ने ट्वीट कर कहा था कि “ इस्लाम को शांति का धर्म कहना बंद कीजिए” और उन्होंने एक अन्य ट्वीट में कहा था “ आपको इस्लामिक आतंकवादी बनने के लिए गरीबी, अज्ञानता, अमेरिका की विदेश नीति, इजरायल की साजिश नहीं चाहिए, बस आपको इस्लाम चाहिए”। तस्लीमा खुद एक मुसलमान हैं, लेकिन वह खुद को नास्तिक मानती हैं। तस्लीमा नसरीन देश के विभिन्न मुद्दों पर खुलकर अपनी राय रखने के लिए जानी जाती हैं।