ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी पर लगेगा ब्रेक? भारत का मास्टरप्लान तैयार... नई रणनीति से बदलेगा ग्लोबल ट्रेड समीकरण
punjabkesari.in Thursday, Aug 14, 2025 - 01:46 PM (IST)

नेशनल डेस्क: अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए अतिरिक्त टैरिफ ने वैश्विक व्यापार पर एक नई बहस छेड़ दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस से सस्ता तेल खरीदने को लेकर भारत पर पहले से लागू 25% बेस टैरिफ के अलावा अब एक और 25% की पेनल्टी टैरिफ लगाने की घोषणा की है। यानी कुल मिलाकर अब अमेरिका में भारतीय निर्यातकों पर 50% तक का शुल्क लग सकता है। इसके साथ ही अमेरिका ने चेतावनी दी है कि अगर 15 अगस्त को प्रस्तावित अमेरिका-रूस वार्ता विफल रही, तो भारत के खिलाफ टैरिफ की यह कार्रवाई और भी आक्रामक हो सकती है।
भारत पर असर और अर्थव्यवस्था की चिंता
विशेषज्ञों की मानें तो यह कदम भारतीय व्यापारियों और निर्यातकों के लिए एक बड़ा झटका है। लगातार बढ़ते टैरिफ का बोझ केवल व्यापार ही नहीं, बल्कि देश की जीडीपी ग्रोथ पर भी सीधा असर डाल सकता है। मूडीज़ की एक हालिया रिपोर्ट में यह आशंका जताई गई है कि इस तरह की व्यापारिक बाधाएं भारत के ‘मेक इन इंडिया’ और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को पीछे धकेल सकती हैं।
अमेरिका ने भारत पर लगाए गए बढ़ते टैरिफ ने भले ही वैश्विक व्यापार जगत में हलचल मचा दी हो, लेकिन अब भारत भी पीछे हटने के मूड में नहीं है। भारतीय अर्थव्यवस्था पर टैरिफ के बढ़ते दबाव को देखते हुए केंद्र सरकार ने इसका मुकाबला करने के लिए एक सशक्त और दीर्घकालिक रणनीति तैयार कर ली है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इन शुल्कों का प्रभाव जल्द नहीं रोका गया, तो इसका सीधा असर भारत की जीडीपी ग्रोथ, निर्यात सेक्टर और ‘मेक इन इंडिया’ जैसे अभियानों पर पड़ सकता है। ऐसे में सरकार ने 25,000 करोड़ रुपये की एक नई समर्थन योजना के ज़रिए इस झटके को संभालने की तैयारी कर ली है।
भारत की रणनीतिक तैयारी: 25,000 करोड़ की सहायता योजना
इस चुनौतीपूर्ण माहौल में भारत सरकार ने निर्यातकों को राहत देने और व्यापार को पुनर्जीवित करने के लिए एक व्यापक योजना तैयार की है। बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने 25,000 करोड़ रुपये की एक समर्थन योजना का मसौदा तैयार किया है, जिसे छह वर्षों की अवधि में लागू किया जाएगा।
इस योजना का मुख्य उद्देश्य अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव को कम करना और निर्यातकों को वित्तीय, तकनीकी और बाज़ार आधारित सहायता प्रदान करना है। फिलहाल यह प्रस्ताव वित्त मंत्रालय के पास भेजा जा चुका है और जल्द ही इसे कैबिनेट की मंजूरी के लिए प्रस्तुत किया जाएगा।
योजना की प्रमुख बातें:
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कोलैटरल-फ्री लोन: छोटे और मध्यम निर्यातकों को बिना गारंटी के ऋण देने की व्यवस्था की जाएगी, जिससे उनकी नकदी संबंधी जरूरतें पूरी होंगी और वे बाजार में प्रतिस्पर्धा कर सकें।
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उच्च जोखिम वाले बाजारों में प्रोत्साहन: जिन देशों में व्यापार जोखिम अधिक है, वहां निर्यात को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रोत्साहन और बीमा सहायता दी जाएगी।
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क्रॉस-बॉर्डर फैक्टरिंग को बढ़ावा: पारंपरिक बैंकिंग के अलावा, नए वित्तीय उपकरणों जैसे क्रॉस-बॉर्डर फैक्टरिंग को अपनाने के लिए कंपनियों को मार्गदर्शन और समर्थन दिया जाएगा।
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निर्यात में विविधता: योजना के तहत भारत अपने निर्यात बाजारों को अमेरिका पर निर्भर रखने के बजाय वैकल्पिक बाजारों जैसे लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और एशिया के देशों में विस्तार करेगा।
निर्यातकों की मांग
देश के निर्यातक संगठनों का कहना है कि इस चुनौती से निपटने के लिए सरकार को जल्द और निर्णायक कदम उठाने होंगे। उनका मानना है कि अमेरिका के टैरिफ नीति के असर को तटस्थ करने के लिए केवल वित्तीय मदद ही नहीं, बल्कि राजनयिक स्तर पर भी ठोस कार्रवाई ज़रूरी है।