डेढ़ महीने की बच्ची के दिल के छेद का सफल इलाज, दिल्ली के डॉक्टरों ने गुड़िया को दिया नया जीवन
punjabkesari.in Tuesday, Sep 03, 2024 - 03:03 PM (IST)
नेशनल डेस्क: दिल्ली के फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट, ओखला में डॉक्टरों ने महज 1.8 किलोग्राम वजन की डेढ़ महीने की बच्ची के दिल के छेद का सफल इलाज कर उसे नया जीवन दिया। यह बच्ची गंभीर हालत में अस्पताल लाई गई थी। उसे सांस लेने में परेशानी, तेज़ हृदय गति, अत्यधिक पसीना आना, दूध पीने में असमर्थता, सेप्सिस जैसी समस्याएं और लीवर का बढ़ना जैसे लक्षण थे।
जांच में पता चला, बच्ची के दिल में छेद है
अस्पताल में बच्ची की जांच के बाद पता चला कि उसके दिल में छेद है, जिसे मेडिकल भाषा में 'पेटेंट डक्टस आर्टेरियोसस (पीडीए)' कहा जाता है। पीडीए एक ऐसी स्थिति है जिसमें जन्म के बाद भी एक अतिरिक्त रक्त वाहिका खुली रहती है, जो सामान्य तौर पर कुछ दिनों के भीतर बंद हो जानी चाहिए। पीडीए के कारण फेफड़ों में खून का प्रवाह अधिक हो सकता है, जिससे कई अंगों पर बुरा असर पड़ता है।
पीडीए एक जन्मजात बीमारी- डॉ. अवस्थी
फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट में बाल चिकित्सा कार्डियोलॉजी के निदेशक डॉ. नीरज अवस्थी के अनुसार, "पीडीए एक जन्मजात बीमारी है, जो अक्सर नवजात बच्चों में दिखाई देती है। यदि समय पर इसका इलाज न किया जाए तो यह शरीर के कई अंगों को प्रभावित कर सकता है। इस बच्ची की स्थिति काफी गंभीर थी और उसका वजन भी बहुत कम था।"
आमतौर पर पीडीए का इलाज सर्जरी के जरिए किया जाता है, लेकिन बच्ची की कमजोर हालत और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के कारण सर्जरी करना जोखिम भरा था। इसलिए डॉक्टरों ने पिकोलो डिवाइस नामक एक विशेष तकनीक का उपयोग किया। इस तकनीक में पैर में एक छोटे से चीरे के जरिए एक उपकरण को हृदय तक पहुंचाया गया और छेद को बिना सर्जरी के बंद कर दिया गया।
हमने जोखिम उठाया और सफलतापूर्वक छेद को बंद किया
डॉ. अवस्थी ने बताया, "कम वजन और अन्य जटिलताओं के बावजूद हमने यह जोखिम भरा कदम उठाया और पिकोलो डिवाइस की मदद से सफलतापूर्वक छेद को बंद किया। ऐसे उच्च जोखिम वाले मामलों में यह तकनीक बहुत कम बार अपनाई जाती है। अगर समय पर यह इलाज नहीं होता, तो बच्ची की जान बचाना मुश्किल हो जाता।"
इलाज के बाद बच्ची को चार दिन के भीतर अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। अब उसकी हृदय संबंधी कार्यप्रणाली सामान्य है, उसका वजन भी बढ़ रहा है, और छह हफ्ते के फॉलो-अप में उसकी स्थिति बेहतर पाई गई। डॉक्टरों का कहना है कि इस तरह की तकनीकों से ऐसे मामलों में सर्जरी के बिना भी जीवन को बचाया जा सकता है।