रोजगार के मोर्चे पर देश में स्थिति गंभीर, प्रधानमंत्री मोदी ने तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा : कांग्रेस

punjabkesari.in Tuesday, Jul 16, 2024 - 04:57 AM (IST)

नेशनल डेस्कः कांग्रेस ने देश में आठ करोड़ नौकरियों के सृजन से संबंधित प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बयान को लेकर सोमवार को आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री ने तथ्यों को तोड़ने-मरोड़ने तथा ध्यान भटकाने का काम किया है, जबकि हकीकत यह है कि रोजगार के मोर्चे पर स्थिति गंभीर है। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि सरकार की तरफ से जिस "रोज़गार वृद्धि" का दावा किया जा रहा है उसमें महिलाओं द्वारा किए जाने वाले अवैतनिक घरेलू काम को भी "रोज़गार" के रूप में दर्ज़ किया गया 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गत शनिवार को मुंबई में एक कार्यक्रम में कहा था कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले तीन से चार वर्ष में देश में आठ करोड़ नई नौकरियां उपलब्ध हुईं जिसने बेरोजगारी के बारे में फर्जी बातें फैलाने वालों की बोलती बंद करा दी। 

रमेश ने एक बयान में कहा, ‘‘ऐसे समय में जब भारत गंभीर रूप से ‘मोदी-मेड बेरोज़गारी' संकट का सामना कर रहा है, जब हर नौकरी के लिए लाखों युवा आवेदन कर रहे हैं, तब स्वयंभू नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करने, ध्यान भटकाने और वास्तविकता से इंकार करने में लगे हैं।'' 

उन्होंने दावा किया, ‘‘आरबीआई के नए अनुमान के आधार पर सरकार जॉब मार्केट में तेज़ी का दावा कर रही है। स्व-नियुक्त परमात्मा के अवतार ने ख़ुद यह दावा किया है कि अर्थव्यवस्था ने आठ करोड़ नौकरियां पैदा की हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि रोज़गार के आंकड़ों में कथित वृद्धि प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में अर्थव्यवस्था की गंभीर वास्तविकताओं के अनुरूप नहीं है, जहां निजी निवेश कमज़ोर रहा है और उपभोग में वृद्धि बेहद सुस्त है।'' 

रमेश ने आरोप लगाया कि सरकार ने रोज़गार की गुणवत्ता और परिस्थितियों पर ध्यान दिए बिना, रोज़गार की बहुत विस्तृत परिभाषा अपनाकर, रोज़गार सृजन का दावा करने के लिए कुछ कलात्मक सांख्यिकीय बाज़ीगरी की है। उनका कहना था, ‘‘जो "रोज़गार वृद्धि" का दावा किया जा रहा है उसमें महिलाओं द्वारा किए जाने वाले अवैतनिक घरेलू काम को भी "रोज़गार" के रूप में दर्ज़ किया गया है। यह रोज़गार वृद्धि के दावे का एक बड़ा हिस्सा है, लेकिन इसमें कोई वेतन नहीं मिलता।'' 

कांग्रेस नेता के अनुसार, ख़राब आर्थिक माहौल के बीच, श्रम बाजार में वेतनभोगी, औपचारिक रोज़गार की हिस्सेदारी में कमी आई है तथा श्रमिक कम उत्पादकता वाली असंगठित और कृषि क्षेत्र की नौकरियों की ओर जा रहे हैं जो एक आर्थिक त्रासदी है। उन्होंने कहा, ‘‘आठ करोड़ नई नौकरी वाली सुर्खियों में नौकरियों की गुणवत्ता पर चर्चा उस तरह से नहीं हुई। लेकिन यह हास्यास्पद है कि सरकार इन कम उत्पादकता, कम वेतन वाली नौकरियों के 'सृजन' को एक उपलब्धि के रूप में पेश कर रही है।'' 

रमेश ने दावा किया, ‘‘आगामी बजट भी निस्संदेह अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीर पेश करने के लिए आरबीआई डेटा का उपयोग करेगा। लेकिन, नौकरियों के मोर्चे पर वास्तविक हालात बेहद गंभीर है और यह बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी और कम गुणवत्ता वाले रोज़गार दोनों के कारण है। अगले मंगलवार को बजट भाषण में इस दोहरी त्रासदी को निश्चित रूप से नज़रअंदाज़ किया जाएगा।'' 


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Content Writer

Pardeep

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