बलिदान दिवस लाला लाजपत राय: मध्यम परिवार में जन्मा बालक बना पंजाब केसरी

punjabkesari.in Friday, Nov 17, 2017 - 07:59 AM (IST)

लाला लाजपत राय का जन्म पंजाब के एक छोटे से गांव ढुढीके (पहले जिला फिरोजपुर, अब जिला मोगा) में हुआ था। उनका जन्म 22 जनवरी, 1865 को एक मध्यम परिवार में हुआ। उन्होंने अपनी आरंभिक शिक्षा गांव के स्कूल में ही ली। अत्यंत कुशाग्र बुद्धि के लाला जी ने कोलकाता विश्वविद्यालय से फारसी तथा पंजाब विश्वविद्यालय से अरबी और उर्दू एवं भौतिक शास्त्र विषय की परीक्षाएं एक साथ पास कीं। 


1886 में उन्होंने हिसार में वकालत करनी आरंभ कर दी। उस समय पंजाब (संयुक्त हरियाणा हिमाचल) में आर्य समाज की लहर बड़ा जोर पकड़ रही थी। लाला जी उस लहर में बह गए और बढ़-चढ़ कर समाज सेवी कामों में भाग लेना आरंभ कर दिया। इसी बीच देश को आजाद कराने का आंदोलन भी गति पकड़ रहा था और वह इसी आंदोलन से प्रभावित होकर इससे भी जुड़ गए। उन्होंने हिन्दू समाज में व्याप्त बुराइयों के विरुद्ध जंग लडऩे की ठान ली। उन्होंने बाल-विवाह, छुआछूत, दहेज प्रथा जैसी कुरीतियों पर जमकर प्रहार किया। वह विधवा विवाह, नारी शिक्षा, समुद्र यात्रा इत्यादि के प्रबल समर्थक रहे। उन्होंने कई किताबें भी लिखीं। 


1905 में अंग्रेजों द्वारा चलाए जा रहे बंग-भंग के विरोध में लालाजी ने इतने जोशीले भाषण दिए कि पंजाब के नौजवानों के हृदय में देशभक्ति की ज्वाला को भड़का दिया। इन्हीं जोशीले भाषणों के कारण लालाजी को पंजाब केसरी की उपाधि से सम्मानित किया गया। लाला लाजपत राय से वह पंजाब केसरी लाजपतराय बन गए।


महाराष्ट्र के बाल गंगाधर तिलक ने जब कहा कि स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और बंगाल के बिपिन चंद्र पाल ने भी नौजवानों में नया जोश भर दिया। सन् 1905 में उत्तर प्रदेश के वाराणसी नगर में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में लाला लाजपत राय के भाषण ने लोगों की अंतर्रात्मा को झकझोर दिया और अंग्रेजों की गुलामी करने वाली कांग्रेस में एक नए गुट का उदय हुआ, जो बाद में गर्मदल के नाम से विख्यात हुआ। 


उन्होंने नौजवानों को संबोधित करते हुए कहा- मेरे देश के नौजवानो यदि तुमने सचमुच वीरता का बाना पहन लिया है तो तुम्हें किसी भी प्रकार की कुर्बानी के लिए तैयार रहना चाहिए। तुम कायर मत बनो, उठो अपने में नई ऊर्जा भरो क्योंकि तुम्हें मरते दम तक पुरुषार्थ का प्रमाण देना है। यह क्या शर्म की बात नहीं कि कांग्रेस अपने 1 वर्ष के कार्यकाल में एक भी ऐसा संन्यासी पैदा नहीं कर सकी जो देश की आजादी के लिए सिर धड़ की बाजी लगा सके। 1907 के आरंभ में ही अंग्रेजों ने दमन चक्र चलाते हुए भूमिकर और चूल्हा टैक्स में भारी वृद्धि कर दी। लाला लाजपत राय ने इसका कड़ा विरोध किया। लालाजी को 16 मई, 1907 में गिरफ्तार कर लिया गया। 


1908 में इंगलैंड, 1913 में जापान और अन्य देशों की यात्रा करने के पश्चात वहां उन्होंने बुद्धिजीवियों के सामने भारतीय आजादी का अपना पक्ष रखा। इसी बीच पंजाब क्रांतिकारियों का केंद्र बन चुका था। लाला लाजपत राय और भाई परमानंद की लोकप्रियता बढ़ रही थी, जिसे अंग्रेज सरकार ने इन दोनों के बढ़ते प्रभाव को कम करने के लिए कई उपाय सोचे लेकिन सब नाकाम हुए।


इसी बीच साइमन कमीशन कुछ नए सुझाव लेकर भारत आया। लाला लाजपत राय और उनके गर्म दल के साथी पूर्ण आजादी के पक्ष में थे, जिसके कारण लाला जी ने 30 अक्तूबर, 1928 को साइमन कमीशन का डटकर विरोध किया। लाला जी शेर की तरह दहाड़ रहे थे, घबराकर पुलिस कप्तान स्काट ने लाठीचार्ज का आदेश दिया। उसने स्वयं लालाजी के सिर पर लाठियों के कई प्रहार किए जिससे लालाजी बुरी तरह जख्मी होकर धरती पर गिर गए। तभी लालाजी ने कहा कि मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी अंग्रेजों के ताबूत में कील की तरह साबित होगी। 


17 नवम्बर, 1928 को लाला लाजपत राय का देहांत हो गया। उन्हीं की पवित्र चिता की भस्म को माथे पर लगाकर भगत सिंह और उनके साथियों ने बदला लेने की प्रतिज्ञा की थी। लगभग एक महीने के पश्चात भगत सिंह और उनके साथियों ने लाहौर पुलिस कार्यालय के बाहर स्कॉट के धोखे में सांडर्स को गोलियों से भून डाला। 


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