अफगानी शरणार्थी पाकिस्तान के लिए समस्या बने

punjabkesari.in Friday, Jul 01, 2016 - 01:01 PM (IST)

अफगान शरणार्थियों की समस्या से जूझ रहे पाकिस्तान ने करीब 30 लाख  इन शरणार्थियों को अपने देश में ठहरने के लिए छह महीने और दे दिए हैं। उसके अधिकारी अफगानिस्तान और संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग (यूएनएचसीआर) के समक्ष शरणार्थियों की वापसी का मुद्दा उठाएंगे।  पाकिस्तान में इस समय 30 लाख अफगान शरणार्थी हैं जिनमें 15 लाख पंजीकृत और करीब इतने ही गैर पंजीकृत हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि वहां लगातार बढ़ रही इनकी संख्या पाक सरकार के लिए चिंता का विषय बन गई है। 

गौरतलब है कि वर्ष 2013 में सीरिया, रूस और अफ़ग़ानिस्तान उन देशों में शामिल रहे, जहां से सबसे ज़्यादा लोगों ने शरण लेने के लिए दूसरे देशों की ओर पलायन किया। आतंकवाद का पोषक पाकिस्तान स्वयं उनकी समस्या से जूझ रहा है। उसके यहां अफगानिस्तान में तालिबानी आतंक से पीडित लोग शरण लेने के लिए आ रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, औद्योगिक देशों में शरण लेने वालों की संख्या बढ़कर 28 फ़ीसदी हो गई है।

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त कार्यालय (यूएनएचसीआर) का कहना है कि दुनिया में सर्वाधिक शरणार्थियों का स्रोत सीरिया है। अफ़ग़ानिस्तान अब तीसरे नंबर पर आ गया है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि पहले के वर्षों में यह देश आतंकवाद से अधिक प्रभावित रहा है। रूस के बाद अमरीकी सेना का यहां प्रवेश हुआ, लेकिन आतंकवादियों पर पूरी तरह नियंत्रण नहीं पाया जा सका। वर्ष 2012 में अफ़ग़ानिस्तान से बाहर जाने वाले शरणार्थी 47,519 थे, लेकिन उनकी संख्या घटकर करीब 38 हजार रह गई है। सबसे ज़्यादा शरणार्थियों के स्रोत दस देशों में से छह ऐसे हैं जो हिंसा या टकराव के दौर से गुज़र रहे हैं। इनमें अफ़ग़ानिस्तान, इरीट्रिया, सोमालिया, इराक़ और पाकिस्तान शामिल हैं।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के विदेशी मामलों के सलाहकार सरताज अजीज का कहना है कि आतंकवादियों के आधारभूत ढांचे को नष्ट कर देने के बाद अब  देश के भीतर के अफगानिस्तानी शरणार्थियों के शिविर उनके लिए सुरक्षित केन्द्र बन गए हैं। अफगान शरणार्थी शिविरों में आतंकवादियों की उपस्थिति पाकिस्तान की सुरक्षा के लिए खतरे का कारण बन रहा है। पाकिस्तान को यह नहीं भूलना चाहिए कि अफगानिस्तान में आंतक फैला रहे तालिबानी आतंकी उसी की शह पर फल फूल रहे है। इन्हीं तालिबानियों से परेशान होकर वहां के मूल नागरिक अपना वतन छोड़ शरणार्थी बनने को मजबूर हो गए हैं।

भारत सरकार ने शरणार्थियों की समस्या को गंभीरता से लिया है। एक वर्ष में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के करीब दो लाख शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने के पहले कदम के तौर पर करीब 4300 हिंदुओं और सिखों को नागरिकता दी गई। इससे पहले कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन दो (संप्रग) के कार्यकाल के दौरान 1,023 लोगों को नागरिकता दी गई थी। 

ऐसी ही उदारता यूरोपीय देशों ने भी दिखाई है। जर्मन चांसलर एंगला मर्केल द्वारा युद्धग्रस्त सीरिया, इराक, अफगानिस्तान और उत्तरी अफ्रीका से आने वाले शरणार्थियों के लिए यूरोप की सीमाएं खोले जाने से यह समस्या वहां भी और बढ़ गई है। पश्चिम एशिया से जो अपनी यात्रा शुरू कर रहे हैं उन पर कोई लगाम नहीं है। इनमें अधिकांश 35 से कम उम्र के युवा है। पाकिस्तान ने अफगानी शरणार्थियों को अपने यहां छह माह और ठहरने की अनुमति दे दी, लेकिन यह समस्या का हल नहीं है। तब तक अफगानिस्तान में हालात सुधर या नियंत्रित हो जाएंगे इसकी कोई गारंटी नहीं है। ऐसी स्थिति में इन देशों को अफगान सरकार की सहायता करनी चाहिए, ताकि वह तालिबानी आतंकी समस्या का ठोस हल निकाल सके।


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