#MannKiBaat: पढ़िए पीएम मोदी के मन की 10 बड़ी बातें

punjabkesari.in Sunday, May 27, 2018 - 01:57 PM (IST)

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिलाओं के रोमांचक अभियानों की सराहना करते हुए आज कहा कि रोमांच से विकास का जन्म होता है और साहसिक कारनामों से कुछ अलग और नया करने की प्रेरणा मिलती है। मोदी ने आकाशवाणी पर अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम‘ मन की बात’ के 44 वें संस्करण में कहा कि अगर मानव जाति की विकास यात्रा देखें तो किसी-न-किसी रोमांच की कोख में ही प्रगति पैदा हुई है। विकास रोमांच की गोद में जन्म लेता है। उन्होंने कहा ,‘ कुछ कर गुजरने का इरादा, कुछ लीक से हटकर के करने का मायना, कुछ असाधारण करने की बात, मैं भी कुछ कर सकता हूं- ये भाव, करने वाले भले कम हों, लेकिन उनसे युगों तक, कोटि-कोटि लोगों को प्रेरणा मिलती रहती है।
 

प्रधानमंत्री ने भारतीय नौसेना की छह जांबाज महिला अधिकारियों के तारिणी अभियान दल को बधाई देते हुए कहा कि यह विश्व में अपने आप में अकेली घटना है। उन्होंने कहा,‘नाविका सागर परिक्रमा- मैं उनके विषय में कुछ बात करना चाहता हू। भारत की इन छह बेटी 250 से भी का्यादा दिन समुद्र के माध्यम से तारिणी में पूरी दुनिया की सैर कर 21 मई को भारत वापस लौटी हैं और पूरे देश ने उनका काफी गर्मजोशी से स्वागत किया।’

मोदी के मन की खास बातें

  •  प्रधानमंत्री ने ईद की बधाई देते हुए आज उम्मीद जताई कि यह त्योहार सदभाव के बंधन को और मजबूत करेगा।
     
  • कभी-कभी चिंता होती है कि कहीं हमारे ये खेल खो न जाएं और सिर्फ खेल ही नहीं खो जाएगा, कहीं बचपन ही खो जाएगा और फिर उस कविताओं को हम सुनते रहेंगे।
     
  • परंपरागत भारतीय खेलों की विविधता में राष्ट्रीय एकता मौजूद है और इनसे पीढ़ियों के अंतर (जेनेरेशन गैप ) को समाप्त किया जा सकता है।
     
  • पारंपरिक खेलों को खोना नहीं है। आज आवश्यकता है कि स्कूल, मौहल्ले, युवा-मंडल आगे आकर इन खेलों को बढ़ावा दें।
     
  • जनता के सहयोग से अपने पारंपरिक खेलों का एक बहुत बड़ा संग्रह बना सकते हैं। इन खेलों के वीडियो बनाए जा सकते हैं, जिनमें खेलों के नियम, खेलने के तरीके के बारे में दिखाया जा सकता है। ऐनिमेनेशन भी बनाई जा सकती हैं ताकि नई पीढ़ी को इनसे परिचित कराया जा सके।
     
  • इन खेलों को खेलने की कोई उम्र तो है ही नहीं। बच्चों से ले करके दादा-दादी, नाना-नानी जब सब खेलते हैं तो पीढिय़ों का अंतर समाप्त हो जाता है। साथ ही यह संस्कृति और परंपराओं का ज्ञान कराते हैं। कई खेल समाज, पर्यावरण आदि के बारे में भी जागरूक करते हैं।
     
  • एक ही खेल अलग-अलग जगह, अलग-अलग नामों से जाना जाता है। मैं गुजरात से हूं मुझे पता है गुजरात में एक खेल है, जिसे चोमल-इस्तो कहते हैं। ये कोड़ियो या इमली के बीज या कोड़ियों के साथ और एक चोकोर खाने के साथ खेला जाता है। यह खेल लगभग हर राज्य में खेला जाता था। कर्नाटक में इसे चौकाबारा कहते थे, मध्यप्रदेश में अत्तू। केरल में पकीड़ाकाली तो महाराष्ट्र में चप्पल, तो तमिलनाडु में दायाम और थायाम, तो राजस्थान में चंगापो न जाने कितने नाम थे लेकिन खेलने के बाद पता चलता है कि हर राज्य में यह खेला जाता है।

     
     
  • ऐसा कौन होगा, जिसने बचपन में गिल्ली-डंडा न खेला हो। गिल्ली-डंडा तो गांव से लेकर शहरों तक में खेले जाने वाला खेल है। देश के अलग-अलग भागों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। आंध्रप्रदेश में इसे गोटिबिल्ला या कर्राबिल्ला के नाम से जानते हैं। उड़ीसा में उसे गुलिबाड़ी कहते हैं तो महाराष्ट्र में इसे वित्तिडालू कहते हैं।’
     
  • ‘फिट इंडिया’ अभियान की बहुत अच्छी प्रतिक्रिया सामने आई है। इससे समाज के सभी वर्गों के लोग जुड़ रहे हैं। भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली से लेकर कई लोग इस तरह खुद और दूसरे को भी ‘फिट’ रख सकते हैं।
     
  • आजकल बच्चें अपना अधिकतर समय इंटरनेट पर बीता रहे हैं और पंरपरागत खेल पिटठू, ऊंच-नीच और खो-खो जैसे खेल खो गए हैं। पारंपरिक खेल कुछ इस तरह से बने हैं कि शारीरिक क्षमता के साथ-साथ वे तर्क क्षमता, एकाग्रता, सजगता, स्फूर्ति को भी बढ़ावा देते हैं। खेल सिर्फ खेल नहीं होते हैं, बल्कि वे जीवन के मूल्यों को सिखाते हैं।

 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Seema Sharma

Recommended News

Related News