भारत की नई पहल: 4883 करोड़ रुपये की विकास सहायता से पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों को मजबूत बनाने की योजना

punjabkesari.in Tuesday, Jul 30, 2024 - 03:46 PM (IST)

नेशनल डेस्क: 9 जून 2024 को नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली और यह साफ कर दिया कि उनके शासन में पड़ोसी देशों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी की शपथ ग्रहण समारोह में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे जैसे पड़ोसी देशों के नेताओं की उपस्थिति ने इस नीति को मजबूत किया। इसके बाद 23 जुलाई को वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए प्रस्तुत पूर्ण बजट में विदेश मंत्रालय ने विकास सहायता के लिए 4883 करोड़ रुपये आवंटित किए। इस बजट का एक महत्वपूर्ण हिस्सा पड़ोसी देशों को दिया जाएगा, जिसमें नेपाल, श्रीलंका, भूटान, मालदीव, अफगानिस्तान और म्यांमार को शामिल किया गया है।

विकास सहायता की जरूरत और इसका महत्व
विकास सहायता, जिसे विदेशी मदद भी कहा जाता है, बड़े देशों द्वारा छोटे देशों को आर्थिक और सामाजिक सहायता प्रदान करने की प्रक्रिया है। इसका उद्देश्य उन देशों को लंबे समय तक प्रगतिशील बनाना है ताकि वे विकासशील बने रहें। यह सहायता केवल वित्तीय नहीं होती बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, पर्यावरण और राजनीतिक सुधारों में भी मदद करती है। इसे राहत कार्य से अलग रखा जाता है, जो आपातकालीन परिस्थितियों जैसे प्राकृतिक आपदाओं के दौरान प्रदान की जाती है। आधिकारिक विकास सहायता (ODA) के माध्यम से इस तरह की सहायता का आकलन किया जाता है।

कैसे दी जाती है विकास सहायता 
विकास सहायता दो मुख्य तरीकों से दी जाती है: द्विपक्षीय (बिलैटरल) और बहुपक्षीय (मल्टीलेटरल)। द्विपक्षीय सहायता एक देश द्वारा सीधे दूसरे देश को दी जाती है, जबकि बहुपक्षीय सहायता अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं जैसे विश्व बैंक या संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों के माध्यम से दी जाती है। वर्तमान में लगभग 70% सहायता द्विपक्षीय और 30% बहुपक्षीय होती है। आधिकारिक विकास सहायता का 80% हिस्सा सरकारों द्वारा प्रदान किया जाता है, जबकि शेष 20% निजी संस्थाओं, चैरिटीज और एनजीओ द्वारा दिया जाता है। हालांकि, ज्यादातर मदद अमीर देशों से आती है, लेकिन कुछ गरीब देश भी मदद करते हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि जो पैसे विदेश में रहने वाले लोग अपने देश की मदद के लिए भेजते हैं, उसे विकास सहायता नहीं माना जाता क्योंकि ये पैसे सीधे लोगों को मिलते हैं, न कि किसी योजना के लिए।

भारत की पड़ोसी देशों को दी गई मदद
वर्तमान बजट में भारत ने पड़ोसी देशों को बड़ी राशि आवंटित की है। भूटान को 2068 करोड़ रुपये दिए गए हैं, जबकि नेपाल को 700 करोड़ रुपये प्राप्त होंगे। मालदीव के विवादों के बावजूद, इसे 400 करोड़ रुपये मिले हैं। श्रीलंका को 245 करोड़ रुपये, अफगानिस्तान को 200 करोड़ रुपये और ईरान के चाबहार बंदरगाह के लिए 100 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। अफ्रीका के देशों को 200 करोड़ रुपये और सेशेल्स को 40 करोड़ रुपये का बजट दिया गया है।
 

भूटान 2068 करोड़
नेपाल 700 करोड़
मालदीव 400 करोड़
श्रीलंका 245 करोड़
अफगानिस्तान 200 करोड़
ईरान 100 करोड़
अफ्रीकी देश 200 करोड़
सेशेल्स 40 करोड़


पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते और उनकी महत्वपूर्णता
भारत ने अपनी स्वतंत्रता के बाद से ही पड़ोसी देशों के साथ अच्छे रिश्ते स्थापित करने की कोशिश की है। 'पड़ोसी पहले' की नीति की शुरुआत 2008 में हुई, लेकिन इसके पीछे का उद्देश्य काफी पुराना है। दक्षिण एशिया में भारत के पड़ोसी देशों में अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, मालदीव, म्यांमार, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका शामिल हैं। इन देशों के साथ भारत का ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संबंध रहा है। इसके अतिरिक्त, हिंद महासागर में चीन के प्रभाव को कम करने के लिए भी इन देशों के साथ अच्छे रिश्ते बनाए रखना भारत की रणनीति का हिस्सा है। 

सुरक्षा के लिहाज से पड़ोसी देशों की अहमियत
भारत के लिए अपने पड़ोसी देशों के साथ मजबूत संबंध सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवाद से निपटने के लिए म्यांमार की मदद आवश्यक है। समुद्र में सुरक्षा के लिए मालदीव, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे देशों के साथ सहयोग आवश्यक है ताकि समुद्री आतंकवाद और अन्य खतरों से निपटा जा सके। इसके अतिरिक्त, तेल और गैस की आपूर्ति में किसी भी व्यवधान से बचने के लिए पड़ोसी देशों के साथ सहयोग अनिवार्य है। 

भूटान के साथ भारत के गहरे संबंध
भारत और भूटान के बीच संबंध बेहद मजबूत हैं, विशेषकर बिजली उत्पादन के क्षेत्र में। दोनों देशों ने मिलकर कई हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट्स पूरे किए हैं, जिससे भारत को साफ ऊर्जा मिलती है और भूटान को आर्थिक लाभ होता है। भारत ने भूटान की पंचवर्षीय योजनाओं में भी महत्वपूर्ण निवेश किया है, जिससे भूटान को अपने विकास में मदद मिली है।

पड़ोसी देशों के साथ चुनौतियाँ
हालांकि भारत ने पड़ोसी देशों के साथ सकारात्मक संबंध बनाए रखने की कोशिश की है, लेकिन कुछ देशों जैसे चीन और पाकिस्तान के साथ सीमा विवाद और अन्य मुद्दे उत्पन्न होते रहते हैं। पाकिस्तान की आतंकवाद को समर्थन देने की गतिविधियाँ और बांग्लादेश से अवैध प्रवासन की समस्याएँ भारत के लिए सुरक्षा चिंताओं का कारण बनती हैं। नदियों के पानी को लेकर भी विवाद होते हैं, जो दोनों देशों के बीच तनाव का कारण बनते हैं। इस प्रकार, भारत की विदेश नीति में पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना और विकास सहायता के माध्यम से सहयोग बढ़ाना, देश की सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Editor

Mahima

Related News