दशकों के संघर्ष बाद अफगान-तालिबान शांति वार्ता फिर शुरू, भारत को होगा बड़ा नुकसान !

punjabkesari.in Sunday, Sep 13, 2020 - 01:10 PM (IST)

इंटरनेशनल डेस्कः अफगानिस्तान में दशकों के संघर्ष के बाद के विरोधी खेमे के बीच लंबे समय से अपेक्षित शांति वार्ता कतर में शुरू हो गई है। इस वार्ता की सफलता से जहां अमेरिका और नाटो सैनिकों की करीब 19 साल के बाद अफगानिस्तान से वापसी का रास्ता साफ होगा वहीं भारत को बड़ा नुकसान होगा। कतर में जहां बातचीत शुरू हुई वहीं अफगानिस्तान तालिबान का राजनीतिक दफ्तर है। इस डील में अमेरिका सक्रिय रूप से भागीदारी कर रहा है क्योंकि वह राष्ट्रपति चुनाव से पहले अफगानिस्तान में फंसे अपने 20 हजार सैनिकों को वापस निकालना चाहता है।

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अमेरिकी चुनाव में अफगानिस्तान से सैनिकों की वापसी भी एक बड़ा मुद्दा है। कतर की राजधानी दोहा में जारी इस वार्ता के दौरान दोनों पक्ष कठिन मुद्दों को सुलझाने का प्रयास करेंगे। इनमें स्थायी संघर्ष विराम की शर्तें, महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकार और हजारों की संख्या में तालिबान लड़ाकों का हथियार छोड़ना भी शामिल है। दोनों पक्ष संवैधानिक संशोधनों और सत्ता बंटवारे पर भी बातचीत कर सकते हैं। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने दो टूक लहजे में कहा कि अफगानिस्तान में शांति का मतलब सत्ता साझा करने का राजनीतिक सौदा नहीं है। उन्होंने कहा कि यह लोगों की इच्छाओं को पूरा करना है जो युद्धग्रस्त देश में हिंसा और खूनखराबा खत्म करना चाहते हैं। हर कोई देश में हिंसा को समाप्त होते देखना चाहता है। दुश्मन चाहे देश को कितना ही नुकसान क्यों न पहुंचाने की कोशिश कर लें, अफगानिस्तान वापस उठ खड़ा होगा।

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भारत पर होगा बुरा असर, कई परियोजनाएं खतरे में
अफगानिस्तान और तालिबान के बीच अगर शांति समझौता हो जाता है तो इससे भारत को नुकसान पहुंच सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, अगर अफगानिस्तान में तालिबान मजबूत होता है तो यह भारत के लिए चिंता का विषय होगा। तालिबान पारंपरिक रूप से पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का करीबी है। ऐसे में अगर तालिबान सत्ता में आता है या मजबूत होता है तो वह पाकिस्तान के कहने पर भारत के हितों को नुकसान पहुंचा सकता है। अफगानिस्तान को विकसित करने के लिए भारत ने अरबों डॉलर का निवेश किया है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने अफगानिस्तान को अबतक 3 अरब डॉलर से ज्यादा की सहायता दी है। जिससे वहां की संसद भवन, सड़कों और बांधों का निर्माण किया गया है।

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भारत अब भी 116 सामुदायिक विकास की परियोजनाओं पर काम कर रहा है। इनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, सिंचाई, पेयजल, रिन्यूएबल एनर्जी, खेल और प्रशासनिक ढांचे का निर्माण भी शामिल हैं। भारत काबुल के लिये शहतूत बांध और पेयजल परियोजना पर भी काम कर रहा है। अफगान शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए भारत नानगरहर प्रांत में कम लागत पर घरों का निर्माण का काम भी शुरू करने जा रहा है। इसके अलावा बमयान प्रांत में बंद-ए-अमीर तक सड़क का निर्माण, परवान प्रांत में चारिकार शहर के लिये पीने के पानी के नेटवर्क को भी बनाने में भारत सहयोग दे रहा है। कंधार में भारत अफगान राष्ट्रीय कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (ANASTU) को भी बना रहा है।

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इन सभी विकास कार्यों के कारण भारत की लोकप्रियता अफगानिस्तान में बढ़ी है। भारत ईरान के चाबहार परियोजना के जरिए अफगानिस्तान, मध्य एशिया और यूरोप में व्यापार को बढ़ाने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए भारत कई सड़कों का निर्माण भी कर रहा है जो अफगानिस्तान से होते हुए भारत के माल ढुलाई नेटवर्क को बढ़ाएगा। अगर तालिबान ज्यादा मजबूत होता है तो वह पाकिस्तान के इशारे पर भारत को परेशान भी कर सकता है। इससे चाबहार से भारत जितना फायदा उठाने की कोशिश में जुटा है, उसे नुकसान पहुंच सकता है।


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Tanuja

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