Exclusive- GST पर मोदी सरकार गलत, डोकलाम पर सही

punjabkesari.in Friday, Sep 29, 2017 - 04:56 PM (IST)

देश की आर्थिक स्थिति कमजोर होती जा रही है, इस बात की चर्चा देश में जोरों पर हो रही है। पूर्व केन्द्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम अर्थ व्यवस्था की नब्ज को बखूबी समझते हैं। नवोदय टाइम्स/ पंजाब केसरी के साथ विशेष बातचीत में उन्होंने आर्थिक स्थिति से लेकर कश्मीर समस्या तक कई विषयों पर खुलकर बातचीत की। प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश: 

जी.डी.पी. में 2 फीसदी से ज्यादा की गिरावट दर्ज हुई है, जैसा कि डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा था, क्या स्थिति और भी खराब हो सकती है?
अप्रैल-मई-जून के पिछले क्वार्टर में जी.डी.पी. का आंकड़ा 5.7 प्रतिशत रहा। हमने अर्थव्यवस्था की स्थिति खराब होने की बात कही तो सरकार ने इससे इंकार किया। दूसरे क्वार्टर जुलाई-अगस्त में भी आंकड़े पहले क्वार्टर वाले ही दिखे। दूसरे क्वार्टर का एक महीना सितंबर बचा है, जिसमें अब किसी सुधार की गुंजाइश नहीं दिखती। हां, तब अगर सरकार जाग जाती तो स्थिति को संभाल सकती थी। अभी भी अगर सरकार कुछ जरूरी कदम उठाए तो तीसरे-चौथे क्वार्टर में सुधार की उम्मीद की जा सकती है।

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वित्त मंत्री अरुण जेतली का कहना है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मंदी का माहौल है, जिसका असर हमारी अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा है। आपका क्या कहना है?
वित्तमंत्री गलत कह रहे हैं। वास्तव में वैश्विक अर्थव्यवस्था सुधर रही है। विश्व बैंक और आई.एम.एफ. के आंकड़े बता रहे हैं। हमारा निर्यात बढ़ा है। अगर वैश्विक गिरावट होती तो निर्यात कैसे बढ़ता। यह इस बात का संकेत है कि विश्व की अर्थव्यवस्था ठीक हो रही है। यह जरूर है कि 2013-14 जैसी स्थिति नहीं है, लेकिन हालात सुधरे हैं। इसलिए वित्तमंत्री का यह कहना गलत है कि वैश्विक मंदी के कारण देश की आर्थिक स्थिति बिगड़ी है।

नितिन गडकरी कह रहे हैं कि अगले 6 महीने में अर्थव्यवस्था पटरी पर आ जाएगी। राजनाथ सिंह और पीयूष गोयल कह रहे हैं कि दुनिया की सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था है..आप क्या मानते हैं?
इस पर पिछले 6 महीने, सालभर से मैं लगातार लिख रहा हूं। 2016 के मध्य से अर्थव्यवस्था में गिरावट के संकेत मिलने लगे थे। जुलाई-अगस्त-सितंबर 2016 के क्वार्टर में। सरकार ने इंकार किया। मैंने लगातार लिखा। अक्तूूबर-नवंबर-दिसंबर के आंकड़ों में भी गिरावट रही। फिर सरकार ने इंकार किया। 8 नवंबर को नोटबंदी करके स्थिति और खराब कर दी। नोटबंदी से अर्थव्यवस्था और तेजी से नीचे जाने लगी। मैंने कहा कि नोटबंदी का असर अगले 8 महीने तक रहेगा। जनवरी-फरवरी-मार्च 2017 के पहले क्वार्टर में गिरावट में तेजी बनी रही। इसके बाद अप्रैल में जी.एस.टी. लागू कर दिया गया, जबकि देश की अर्थव्यवस्था की हालत ठीक नहीं थी। सरकार की ओर से एक के बाद एक गलत कदम उठाए गए। गडकरी कहते हैं कि 6 महीने में अर्थव्यवस्था ट्रैक पर आ जाएगी। वे सरकार में हैं, इसके अलावा क्या कह सकते हैं। जहां तक राजनाथ सिंह और पीयूष गोयल की बात है तो मुझे नहीं लगता कि अर्थव्यवस्था को बेहतर तरीके से वे समझा सकते हैं।

बर्कली में राहुल गांधी ने कहा कि यू.पी.ए. सरकार युवाओं को रोजगार देने में असफल रही जिससे चुनाव हारे। आप क्या मानते हैं?
याद करें यू.पी.ए. सरकार के 10 साल के कार्यकाल में 2 प्रमुख अवरोध थे। 2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी और दूसरा 2013 का आर्थिक दबाव। 2011-12 में रोजगार बढ़े, लेकिन 2012-13 और 2013-14 मंदी का दौर रहा, जिससे रोजगार नहीं बढ़ सके। बीते 7-8 साल में सरकार ने क्या किया, यह लोगों को याद नहीं रहता। हाल के एक-दो साल से क्या हुआ, उसके आधार पर चुनाव में अपनी राय तय करता है। लोगों की इसी सोच का असर चुनाव पर पड़ा। राहुल गांधी ने जो कहा, सही है। लेकिन पूरे 10 साल को देखेंगे तो यू.पी.ए. सरकार में रोजगार का आंकड़ा 8.5 प्रतिशत पहले 5 साल में और 7.5 प्रतिशत दूसरे कार्यकाल में रहा।
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नोटबंदी की आपने बहुत आलोचना की, लेकिन उसके बाद ही उत्तर प्रदेश चुनाव में भाजपा को बड़ी जीत मिली। क्या माना जाए कि कांग्रेस की आलोचना केवल राजनीतिक है?
यह बहुत संकीर्ण विश्लेषण होगा। नोटबंदी के बाद एक ही दिन में 5 जगह चुनाव हुए। अगर नोटबंदी के पक्ष में उत्तर प्रदेश में लोगों ने वोट किया और भाजपा को अप्रत्याशित बहुमत दिया तो पंजाब में कांग्रेस जीती। क्या मानें कि वहां लोगों ने नोटबंदी के खिलाफ वोट किया? गोवा में कांग्रेस नंबर एक तो भाजपा दूसरे नंबर पर रही। मणिपुर में कांग्रेस नंबर एक पर थी और भाजपा दूसरे नंबर पर। इस लिहाज से नोटबंदी को अगर रैफरैंडम मानते हैं तो लोगों ने इसके खिलाफ वोट किया। दूसरा सवाल जहां तक है कि केवल राजनीतिक आलोचना किए जाने की है तो उन्हें क्या कहेंगे जो तमाम भारतीय अर्थशास्त्री विदेशी विश्वविद्यालयों में काम कर रहे हैं, उन्होंने भी नोटबंदी की आलोचना की है। उन्हें तो राजनीतिक नहीं कहा जा सकता।

राहुल गांधी कहते हैं कि मोदी उनसे ज्यादा बेहतर तरीके से भाषण देते हैं। आपको क्या लगता है?
यह सही है कि मोदी एक अच्छे वक्ता हैं लेकिन हिंदी भाषा और हिंदी भाषी क्षेत्रों में ही प्रभावशाली हैं। गैर हिंदी भाषी क्षेत्रों, खासकर दक्षिण भारत में वे प्रभावहीन हैं।

यह सब जानते हैं कि यू.पी.ए. कार्यकाल में देश की आर्थिक स्थिति ठीक हुई, घोटाले भी बढ़े। इस धारणा को कैसे दूर करेंगे?
मैं इंकार नहीं करता कि यू.पी.ए. सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान कुछ ऐसे निर्णय हुए और कुछ गड़बडिय़ां सामने आईं, लेकिन किसी में भी कांग्रेस पार्टी भ्रष्टाचार की दोषी करार नहीं दी गई। मैं मानता हूं कि हमें लोगों को समझाने का प्रयास करना होगा कि अगर कुछ मामले गड़बड़ रहे भी तो वह व्यक्ति विशेष से जुड़े हुए थे, उसमें पार्टी कहीं शामिल नहीं थी। जहां तक भाजपा सरकार के भ्रष्टाचारमुक्त दावे की बात है तो मध्य प्रदेश का व्यापंम घोटाला, ललित मोदी का मामला, विजय माल्या को भागने देना, गुजरात स्टेट पैट्रोलियम कार्पोरेशन की ओ.एन.जी.सी. के साथ डील, जैसे प्रकरण हैं जिन्हें हमारे प्रवक्ता लगातार उठा रहे हैं। यह कहना गलत है कि इनके शासनकाल में भ्रष्टाचार के कोई मामले नहीं हैं। वहां भी कई मामले हैं, जिन पर सवाल उठ रहे हैं। कांग्रेस लोगों को बेहतर तरीके से समझाने का प्रयास करेगी कि जो गड़बडिय़ां रहीं, उसका पार्टी से कोई लेना-देना नहीं था। पार्टी नई पीढ़ी के तमाम नेताओं को आगे ला रही है, जिन पर कोई आरोप नहीं है और न ही भ्रष्टाचार के दाग हैं।

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तीन तलाक पर आए सुप्रीमकोर्ट के फैसले पर आपकी क्या राय है?
मेरी अपनी निजी राय जो कि संभव है पार्टी की राय से थोड़ी भिन्न हो सकती है। सुप्रीमकोर्ट का फैसला तलाक के तीन रूपों में से केवल एक को लेकर है। मेरी अपनी निजी राय में यह शुरूआत है। मुस्लिम समुदाय, विद्वानों, धर्मगुरुओं को चाहिए कि तीन तलाक के तरीकों का परीक्षण करें और तय करें कि तलाक के बाकी दो और जो तरीके हैं उन्हें कैसे और अधिक न्यायसंगत, बराबरी वाला और मानवीय, बनाया जा सकता है। जहां विवाह है, वहां तलाक की भी व्यवस्था दी गई है। सभी धर्मों-समुदायों में विवाह और तलाक के नियम-कानून हैं। चाहे विधायी व्यवस्था हो या फिर परम्परागत। मुस्लिम समुदाय भी तय करे कि तलाक की और बेहतर व्यवस्था क्या हो सकती है।

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रोहिंग्या मामले पर सरकार का जो स्टैंड है, उसे किस रूप में देखते हैं?
मेरा मानना है कि जो श्रीलंकन रिफ्यूजी, चकमा रिफ्यूजी के मामले में किया गया, वही रोहिंग्या के मामले में अपनाया जाना चाहिए। अंतर्राष्ट्रीय कानून के मुताबिक उन्हें संरक्षण देना चाहिए साथ ही उस देश के साथ नैगोसिएशन करना चाहिए जहां से वे आ रहे हैं और बाद में उन्हें सुरक्षित वापस भेजे। जो श्रीलंकन रिफ्यूजी के मामले में किया गया तो रोहिंग्या के मामले में क्यों अलग स्टैंड?

आपने कहा कि इंडिया इंक में भय के कारण की कुछ कह नहीं रहा है। आपको क्या लगता है कि कोई कुछ क्यों नहीं बोलना चाहता?
यशवंत सिन्हा को पढि़ए। यह रेडराज है। विपक्ष कर आतंक की बात करता था, आज कर आतंक से भी कई गुना आगे की स्थिति है। तमाम व्यावसायियों ने निजी तौर पर बताया, लेकिन वे यह भी कहते हैं कि वे बोल नहीं सकते।

बैड लोन और एन.पी.ए. के चलते बैंकों की हालत खस्ता है। यह कैसे सुधर सकता है?
सरकार ने बैंक मैनेजरों का गला दबा रखा है। एन.पी.ए. समस्या पूर्व में भी रही। चाहे वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा 2002-03 में रहे हों या मैं वित्तमंत्री रहा लेकिन हमने कभी भी ऐसे हालात नहीं बनने दिए, जो आज हैं। हमने साफ कहा कि तुमने ऋण दिया, तुम रिकवर करो। बैंकर्स को हमने ऋण रिकवरी की छूट दी। आज सरकार बैंकर्स को धमका रही है और भय का माहौल बनाए हुए है। सी.बी.आई., सी.वी.सी., बैंक सुपरविजन ब्यूरो, रिजर्व बैंक सभी बैंकर्स का दबाव बना हुआ है। बैंकर्स क्या कर रहे हैं...एक बैंक चेयरमैन ने मुझसे कहा कि सर मैं तो वक्त गुजार रहा हूं रिटायरमैंट के लिए...

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राम रहीम के मामले में कांग्रेस हरियाणा सी.एम. खट्टर के इस्तीफे की मांग करती है, लेकिन गौरी लंकेश की हत्या के मामले में इसलिए कुछ नहीं कह रही क्योंकि कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है?
गौरी लंकेश केस हत्या का मामला है, हिंसा का नहीं। हम उस हत्या की निंदा करते हैं। हत्यारों को पकडऩे और न्याय दिलाने के लिए कर्नाटक सरकार प्रतिबद्ध है और वह अपनी जवाबदेही से भाग भी नहीं रही है लेकिन गौरी लंकेश हत्या, कुलबर्गी, दाभोलकर, पंसारे, यह सब घृणा के माहौल का नतीजा है। यह दक्षिणपंथी ग्रुपोंं द्वारा बनाया गया है, जिसे भाजपा और उसके कुछ नेताओं से समर्थन प्राप्त है। मेरा आरोप है कि यह सरकार घृणा के इस माहौल को खत्म करने का प्रयास क्यों नहीं कर रही? मैं यह नहीं कह रहा कि गौरी लंकेश की हत्या के लिए मोदी सरकार जिम्मेदार है, लेकिन दक्षिणपंथी ग्रुपोंं के खिलाफ वह कुछ कर भी तो नहीं रही है। वैसे जितना मुझे याद है प्रधानमंत्री ने गौरी लंकेश की हत्या की निंदा में एक शब्द भी नहीं बोला।

एयरसेल मैक्सिस और आई.एन.एक्स. केस पर क्या कहेंग?
मैं मीडिया से कुछ नहीं कहूंगा। मामला अदालत में है। हमने कहा है कि अगर सरकार को किसी भी तरह की प्रापर्टी और बैंक अकाऊंट दुनिया में कहीं भी मेरे परिवार के किसी सदस्य या मेरे नाम पर मिल जाए, जिसे सम्पत्ति और आयकर ब्यौरे में घोषित नहीं किया है, सरकार उसका नाम ले, मैं और मेरे परिवार के सदस्य उससे जुड़े जरूरी डाक्यूमैंट्स पर हस्ताक्षर कर सरकार को देने को तैयार हैं। सरकार कहे कि बकिंघम पैलेस मेरा है तो उससे जुड़े डाक्यूमैंट्स दे, मैं उसे भी साइन करके दे दूंगा।

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जी.एस.टी. तो लोगों के अच्छे के लिए लाया गया था लेकिन भाजपा के समर्थक व्यापारी ही उसका विरोध कर रहे हैं। ऐसा क्यों?
हमने जी.एस.टी. के वर्तमान स्वरूप को प्रस्तावित नहीं किया था। जी.एस.टी. का जो स्वरूप है, वह गलत है। हमने बार-बार बताया कि यह गलत है। दूसरी बात, देश अभी जी.एस.टी. के लिए तैयार ही नहीं था। जी.एस.टी. कारोबारी-व्यापारी वर्ग के लिए है। वे अभी तैयार ही नहीं थे। 50 साल से टल रहा था तो दो-तीन महीने और इंतजार किया जा सकता था। तीसरी बात यह कि जी.एस.टी. नैटवर्क का परीक्षण नहीं किया गया। मैं लगातार लिखता रहा, कहता रहा कि ट्रायल रन कर लें। पुराने सिस्टम और नए सिस्टम को कुछ वक्त के लिए एक प्रयोग के तौर पर समानांतर चलाते। एक बार नई व्यवस्था की आदत लोगों की बन जाती तो इसे लागू कर देते लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया। चौथी बात, दोहरा कंट्रोल सिस्टम भी भ्रमित कर रहा है। केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों ट्रेडर्स को कंट्रोल करेंगे। कोई भी टैक्स पेयर किसी एक टैक्स निरीक्षक के प्रति जवाबदेह हो सकता है, दो के प्रति कैसे? पांचवां बिंदु, सभी जी.एस.टी. पंजीकृत व्यापारी को महीने में तीन बार ऑन लाइन टैक्स फाइल करनी है। इस देश में कैसे संभव है? एक सामान्य व्यापारी जिसका साल का टर्नओवर एक करोड़ रुपए है, वह कैसे महीने में तीन बार टैक्स फाइल कर सकता है? जी.एस.टी. एक बहुत बढिय़ा आइडिया है, लेकिन इसे क्रियान्वित गलत तरीके से किया जा रहा है। 

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डोकलाम जैसी स्थिति फिर न बने और सीमा सुरक्षा को लेकर सरकार की नीति को किस तरह से देखते हैं?
डोकलाम जैसी समस्या समय-समय पर आती रहेंगी। भारत-चीन का सीमा विवाद समाप्त नहीं हुआ है। ऐसा फिर हो सकता है। मैं मानता हूं कि डोकलाम पर एन.डी.ए. सरकार ने परिपक्वता का परिचय दिया जैसा कि पूर्व की सरकारों में ऐसे मसलों का समाधान किया गया। चीन के साथ सरकार ने लगातार संवाद बनाए रखा और विदेश मामलों की परंपरागत नीति का पालन करते हुए विवाद का समाधान किया।

कश्मीर पर...
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कांग्रेस के समय से तुलना करें तो जम्मू-कश्मीर की हालत आज काफी खराब है। आप भी गृहमंत्री रहे हैं, आपके अनुसार कश्मीर समस्या का क्या समाधान है?
कांग्रेस और उस वक्त की अलायंस सरकार के कार्यकाल में 2010 तक तो हालात ठीक नहीं थे लेकिन उसके बाद हमने तमाम प्रयास शुरू किए। पहले तो सुरक्षा बलों की संख्या कम की। फिर घुसपैठ रोकने और पाकिस्तान सीमा पर आतंकियों से निपटने के लिए सेना को खुली छूट दी। साथ ही विभिन्न वर्गों के साथ बातचीत की शुरूआत की। इसका परिणाम यह हुआ कि 2011 से 2014 के बीच कश्मीर के हालात में तेजी से सुधार हुआ और हिंसात्मक घटनाओं में कमी आई। विशेषकर कश्मीर वैली में। मैंने अपने कॉलम और किताब में लिखा भी है। बड़ा प्रयास यह रहा कि यू.पी.ए. सरकार और तब की उमर अब्दुल्ला अलायंस सरकार ने वार्ताकारों के जरिए माहौल को बदलने का अद्भुत काम किया। वार्ताकार जिला मुख्यालय, ताल्लुक मुख्यालयों तक गए। उनसे जो रिपोर्ट आईं, उन्हें क्रियान्वित कराया, जिससे हालात में तेजी से सुधार हुए। इसके बाद मैं वित्त मंत्रालय में चला गया। जहां तक बात है कि एन.डी.ए.-भाजपा सरकार को क्या करना चाहिए तो इन्हें भी वार्ता शुरू करनी चाहिए। सभी वर्गों के लोगों से बातचीत करें। यहां तक कि कुछ बिंदुओं पर हुर्रियत से भी। सुरक्षा बलों को कम करें और कश्मीर वैली को भरोसे में लें कि सरकार संविधान के अनुच्छेद 370 के स्टेटस को मैंटेन करके रखेगी। दुर्भाग्य से आज की सरकार ठीक इसके विपरीत चल रही है। सभी तरह की बातचीत बंद हो चुकी है और सुरक्षा बलों की कार्रवाई बढ़ गई है। वैली में अलगाव की भावना बन चुकी है। अब लोग कह रहे हैं कि वैली की हालत 2010 से भी ज्यादा खराब हो चुकी है।

ऐसा कोई व्यक्ति नहीं, जिसका विकल्प नहीं

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बहुत से लोग नरेंद्र मोदी से संतुष्ट नहीं हैं, लेकिन वे यह भी मानते हैं कि उनका कोई विकल्प नहीं है। क्या राहुल गांधी उनका सामना करने की स्थिति में हैं?
मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि मोदी का विकल्प नहीं है। 2004 में क्या स्थिति थी। अटल बिहारी वाजपेयी का कद उस वक्त काफी बड़ा था। दूसरी तरफ मीडिया और एक बड़ा वर्ग मान रहा था कि वाजपेयी का कोई मैच नहीं था, लेकिन चुनाव में क्या हुआ। वाजपेयी हार गए। चुनाव वह पार्टी जीती, जिसने पी.एम. का कोई चेहरा नहीं दिया था। कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए भी सोनिया गांधी ने खुद को पी.एम. चेहरा नहीं प्रोजैक्ट किया। चुनाव के बाद आश्चर्यजनक तरीके से डा. मनमोहन सिंह का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए सामने लाया गया। इसलिए देखें तो 2019 में लोग सरकार के काम पर वोट करेंगे। अगर वे भाजपा को सत्ता में वापसी के लिए वोट करते हैं तो उनकी स्वीकृति मानी जा सकती है, लेकिन अगर भाजपा के अलावा दूसरे दल को वोट करते हैं और संसद में पर्याप्त संख्या देते हैं तो प्रधानमंत्री भी मिल जाएगा। कोई भी व्यक्ति इतना आवश्यक नहीं है और न ही ऐसा कि उसका रिप्लेसमैंट नहीं है। 

...तो क्या यह मानें कि इंडिया शाइनिंग जैसा फिर हो सकता है और इस बार भी कांग्रेस क्या 2004 की तरह अपना पी.एम. उम्मीदवार घोषित नहीं करेगी? 
इंडिया शाइनिंग एक फर्जी प्रचार था। यह उलटा पड़ा। अब मुझे नहीं लगता कि भाजपा के दोबारा अच्छे दिन आने वाले हैं जैसा नारा दोहराएगी। अब यह सब नहीं चलने वाला। दूसरा सवाल जहां तक कांग्रेस के पी.एम. चेहरे का है तो पार्टी के साथ-साथ राहुल गांधी भी लगातार कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री कौन होगा, यह चुनाव के बाद पार्टी संसदीय समिति तय करेगी। हां, अभी चुनाव महीने में कांग्रेस का चेहरा राहुल गांधी हैं।


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