एक बार भोजन, लहसुन-प्याज का त्याग, 40 डिग्री में 14 घंटे काम... जगन्नाथ यात्रा के रथ बना रहे 320 ''भोई'' का ये है रूटीन

punjabkesari.in Monday, May 27, 2024 - 04:53 PM (IST)

नेशनल डेस्क: ओडिशा में भगवान जगन्नाथ की नगरी पुरी में 10 मई से 320 कारीगर तीन पवित्र रथों को आकार दे रहे हैं। रथ निर्माण की यह कार्यशाला मंदिर के मुख्य सिंह द्वार से महज 70-80 मीटर दूर है। इन कारीगरों को पुरी में 'भोई' कहा जाता है। रथ यात्रा के प्रति इनकी श्रद्धा बहुत ही अटूट है, इसलिए ये सभी 10 जुलाई तक दिन में एक बार ही भोजन करेंगे। श्रद्धा का भोजन से क्या वास्ता? भास्कर के इस सवाल पर भोइयों के मुखिया रवि भोई कहते हैं कि रथ निर्माण से लेकर यात्रा के लौटने तक हममें से कोई भी लहसुन-प्याज नहीं खाता।

कोशिश करते हैं कि दिन में फल या हल्का-फुल्का कुछ खाकर रह लें। काम खत्म करने के बाद मंदिर प्रशासन की ओर से पूरा महाप्रसाद मिलता है। फिलहाल हम उमस और 35 से 40 डिग्री की तपती धूप में हर दिन 12 से 14 घंटे काम कर रहे हैं। आलस्य न आए, हम बीमार न पड़ें, इसलिए सख्त दिनचर्या का पालन करते हैं। रवि का परिवार 4 पीढ़ी से रथ बना रहा है। इस वक्त उनका नौजवान बेटा साथ है। अभी पहिए, कलश बन चुके हैं। तोता, घोड़ा, सारथी, द्वारपाल, देवा-देवी की मूर्तियों पर रंग चल रहा है।  

800 साल से 20 इंच की 'जादू की छड़ी' से बन रहा रथ
भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम नंदी घोष या गरुड़ध्वज, उनके बड़े भाई बलभद्र जी के रथ का नाम तालध्वज और बहन सुभद्रा के रथ को दर्प दलन कहते हैं। इन्हें लकड़ी के 812 टुकड़ों से बनाया जा रहा है। नंदी घोष रथ के मुख्य विश्वकर्मा विजय महापात्र बताते हैं, तीनों रथ अत्याधुनिक औजार से नहीं, बल्कि 20 इंच के लकड़ी के डंडे से नाप लेकर बनते हैं। यह 800 साल पुरानी परंपरा है। इस डंडे में 3 अंगुली, 4 अंगुली, आधा अंगुली के चिह्न हैं। दर्प दलन रथ के मुख्य विश्वकर्मा कृष्ण सी लकड़ी को रथ निर्माण के लिए आई लकड़ियों के ऊपर रखकर नाप लेते हैं। पहिया, ध्वज, सीढ़ियां, दीवारों की लकड़ी के नाप अंगुलियों से तय हैं। हम इसे जादू की छड़ी कहते हैं, क्योंकि इससे आज तक एक इंच भी इधरं से उधर नहीं हुआ।


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Content Editor

Mahima

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